दुनिया भर में सिकुड़ रहा है प्रजातंत्र, कट्टर और निरंकुश शासन का हो रहा बोलबाला, भारत में भी राजशाही जैसा हाल

प्रजातंत्र के अवमूल्यन का सबसे बड़ा कारण निरंकुश सत्ता द्वारा देशों के राजनैतिक ढांचे को खोखला करना, चुनावों में व्यापक धांधली, निष्पक्ष मीडिया को कुचलना, संवैधानिक संस्थाओं पर अधिकार करना और न्यायिक व्यवस्था पर अपना वर्चस्व कायम करना है।

दुनिया भर में सिकुड़ रहा है प्रजातंत्र, कट्टर और निरंकुश शासन का हो रहा बोलबाला
दुनिया भर में सिकुड़ रहा है प्रजातंत्र, कट्टर और निरंकुश शासन का हो रहा बोलबाला
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नवजीवन डेस्क

एक बड़े अध्ययन का निष्कर्ष है कि यूरोप में अब एक-तिहाई आबादी परम्परागत प्रजातंत्र वाले दलों या उम्मीदवारों के बदले लोकलुभावनवादी दलों या फिर कट्टर दक्षिणपंथी या फिर कट्टर वामपंथी दलों या उम्मीदवारों के समर्थन में मतदान करती है। यूरोप के 31 देशों के 100 से अधिक राजनैतिक विशेषज्ञों के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि अब गैर-परम्परागत और निरंकुश सत्ता का समर्थन और वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। पिछले वर्ष, यानि 2022 में यूरोप में जितने भी चुनाव हुए उसमें 32 प्रतिशत मत गैर-परम्परागत प्रजातंत्र के विचार वाले दलों और उम्मीदवारों को दिए गए, जबकि वर्ष 2000 के शरुआती दशक में यह आंकड़ा 20 प्रतिशत से कम और 1990 के दशक में महज 12 प्रतिशत ही था।

इस अध्ययन के निष्कर्ष वैश्विक स्तर पर प्रजातंत्र के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। परम्परागत प्रजातंत्र के मजबूत गढ़ रहे हमारे देश में वर्ष 2014 के बाद से प्रजातंत्र के सभी संकेत विलुप्त होते जा रहे हैं और अब हम एक निरंकुश शासन में हैं जो राजशाही जैसा है। डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका के प्रजातंत्र को चार वर्षों के भीतर ही राष्ट्रवादी और लोकलुभावनवादी सत्ता में बदल दिया। अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के अधिकतर देशों में प्रजातंत्र दम तोड़ रहा है। ऐसे में यूरोप के कुछ देश और ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड जैसे देशों में ही परम्परागत प्रजातंत्र का अस्तित्व बचा था, पर अब यूरोप में भी यह खतरे में है।

अमेरिका के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन ने भारत समेत दुनिया के 30 देशों में व्यापक सर्वेक्षण कर बताया है कि सत्ता के तौर पर प्रजातंत्र लोकप्रिय तो है, पर असमानता और जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक समस्याओं का कोई हल न निकल पाने के कारण युवा वर्ग प्रजातंत्र से विमुख होता जा रहा है। वैश्विक स्तर पर 86 प्रतिशत लोगों ने प्रजातंत्र का समर्थन किया जबकि 20 प्रतिशत लोगों ने निरंकुश या तानाशाही का समर्थन किया। 18 से 35 वर्ष के आयुवर्ग के 57 प्रतिशत प्रतिभागियों ने ही प्रजातंत्र का समर्थन किया जबकि 56 वर्ष से अधिक आयुवर्ग में 71 प्रतिशत प्रतिभागियों ने प्रजातंत्र का समर्थन किया था।

दूसरी तरफ 18 से 35 वर्ष के प्रतिभागियों में से 42 प्रतिशत ने सैन्य शासन का समर्थन किया। जबकि दूसरे आयु वर्गों में से महज 20 प्रतिशत ने ही इसका समर्थन किया था। युवा प्रतिभागियों में से 35 प्रतिशत ऐसे भी हैं जिन्हें ऐसा निरंकुश शासक चाहिए जिसे चुनाव की जरूरत ही ना पड़े और जो संविधान से ना बंधा हो। इस रिपोर्ट का नाम है, कैन डेमोक्रेसी डेलीवर।


जाहिर है, पीढी-दर-पीढी प्रजातंत्र से लोगों का मोहभंग हो रहा है। यह मोहभंग प्रजातंत्र की संरचना से नहीं है बल्कि लोगों को इसके परिणाम से परेशानी है। वैश्विक स्तर पर एक बड़ी आबादी को यह महसूस होने लगा है कि प्रजातंत्र से उनका जीवन स्तर नहीं सुधर रहा है और सामाजिक और आर्थिक समस्याएं विकराल होती जा रही हैं। यह एक विरोधाभास ही है कि प्रजातंत्र से विमुख होती आबादी भी मानवाधिकार चाहती है, इसे खोना नहीं चाहती। सर्वेक्षण के दौरान हरेक भौगोलिक क्षेत्र में 85 से 95 प्रतिशत आबादी ने मानवाधिकार को सुरक्षित रखने पर जोर दिया, इसकी साथ ही वर्ण, जाति और लिंग आधारित भेदभाव का विरोध किया।

इस सर्वेक्षण ने सबसे प्रमुख वैश्विक समस्याएं गरीबी और असमानता, जलवायु परिवर्तन और भ्रष्टाचार उभर कर सामने आया है। कुल 23 प्रतिशत प्रतिभागियों ने भ्रष्टाचार, 21 प्रतिशत ने गरीबी और असमानता, 7 प्रतिशत ने विस्थापन और प्रवासी को सबसे बड़ी समस्या बताया। 53 प्रतिशत प्रतिभागियों ने अपने देश के सन्दर्भ में बताया कि उनकी देश गलत दिशा में जा रहा है और लगभग एक-तिहाई प्रतिभागियों ने बताया कि सत्ता में बैठे लोग जनता के आकांक्षाओं की उपेक्षा कर रहे हैं। सत्ता की नजर में आबादी कितनी उपेक्षित है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 49 प्रतिशत प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि पिछले वर्ष कम से कम एक दिन ऐसा था, जब पैसे की कमी के कारण उन्हें भूखा रहना पड़ा। कुल 58 प्रतिशत प्रतिभागियों को लगता है कि राजनैतिक अस्थिरता से हिंसा के संभावना बढ़ जाती है। लगभग 42 प्रतिशत लोगों के अनुसार उनके देश में नागरिकों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त क़ानून नहीं हैं।

सर्वेक्षण में 70 प्रतिशत लोगों ने बताया कि जलवायु परिवर्तन भविष्य का सबसे बड़ा खतरा है, जिससे वे और उनका रोजगार प्रभावित होगा। बांग्लादेश के 90 प्रतिशत प्रतिभागी, तुर्की के 85 प्रतिशत, केन्या ए 83 प्रतिशत, भारत के 82 प्रतिशत, चीन के 45 प्रतिशत, रूस के 48 प्रतिशत और यूनाइटेड किंगडम के 54 प्रतिशत प्रतिभागी जलवायु परिवर्तन को भविष्य का सबसे बड़ा खतरा मानते हैं।

सर्वेक्षण में 45 प्रतिशत प्रतिभागियों की राय थी कि चीन की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होने पर वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ उनके देश में सुधार होंगें। पहले पसंद के देशों में सबसे आगे 29 प्रतिशत प्रतिभागियों ने अमेरिका का नाम लिया, दूसरे स्थान पर 27 प्रतिशत के साथ यूनाइटेड किंगडम, तीसरे पर 20 प्रतिशत के साथ फ्रांस, छठे स्थान पर साउथ अफ्रीका 17 प्रतिशत, पांचवें स्थान पर चीन 15 प्रतिशत, छठे स्थान पर 12 प्रतिशत के साथ रूस और सातवें स्थान पर 10 प्रतिशत के साथ भारत है।


इस सर्वेक्षण से इतना तो स्पष्ट है कि आज का युवा प्रजातंत्र से विमुख होता जा रहा है, उसे प्रजातंत्र के सिद्धांतों से समस्या नहीं है पर उसे लगता है कि प्रजातंत्र जीवन स्तर सुधारने में असफल रहा है। वैश्विक स्तर पर लोगों की द्विविधा यह है कि उन्हें मानवाधिकार तो प्रिय है, पर सैन्य शासन और तानाशाही से भी उन्हें परहेज नहीं है।

पूरी दुनिया में जीवंत प्रजातंत्र मृतप्राय हो चला है और निरंकुश प्रजातंत्र का दौर चल रहा है। पिछले एक दशक के दौरान जीवंत प्रजातंत्र 41 देशों से सिमट कर 32 देशों में ही रह गया है, दूसरी तरफ निरंकुश शासन का विस्तार 87 और देशों में हो गया है। दुनिया की महज 8.7 प्रतिशत आबादी जीवंत प्रजातंत्र में है। प्रजातंत्र का सबसे अधिक और अप्रत्याशित अवमूल्यन जिन देशों में हो रहा है, उनमें भारत, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका भी शामिल हैं। हंगरी, तुर्की, फिलीपींस भी ऐसे देशों की सूचि में शामिल हैं जहां प्रजातंत्र के आधार पर निरंकुश सत्ता खडी है। जीवंत प्रजातंत्र की मिसाल माने जाने वाले यूनाइटेड किंगडम में आज के दौर में जन-आंदोलनों को कुचला जा रहा है और अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश है।

प्रजातंत्र के अवमूल्यन का सबसे बड़ा कारण निरंकुश सत्ता द्वारा देशों के राजनैतिक ढांचे को खोखला करना, चुनावों में व्यापक धांधली, निष्पक्ष मीडिया को कुचलना, संवैधानिक संस्थाओं पर अधिकार करना और न्यायिक व्यवस्था पर अपना वर्चस्व कायम करना है। स्टॉकहोम स्थित इंस्टिट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्शन असिस्टेंस के अनुसार दुनिया में जितने देशों में प्रजातंत्र है उनमें से आधे में इसका अवमूल्यन होता जा रहा है। कुल 173 देशों की शासन व्यवस्था के आकलन के बाद रिपोर्ट में बताया गया है कि महज 104 देशों में प्रजातंत्र है और इसमें से 52 देशों में इसका अवमूल्यन होता जा रहा है। इनमें से 7 देश– अमेरिका, एल साल्वाडोर, ब्राज़ील, हंगरी, भारत, पोलैंड और मॉरिशस - ऐसे भी हैं, जिनमें यह अवमूल्यन सबसे तेजी से देखा जा रहा है।

दुनिया के 13 देश ऐसे हैं जो निरंकुशता या तानाशाही से प्रजातंत्र की तरफ बढ़ रहे हैं, तो दूसरी तरफ 27 ऐसे देश हैं जो प्रजातंत्र हैं पर तेजी से निरंकुशता की तरफ बढ़ रहे हैं। अफ़ग़ानिस्तान, बेलारूस, म्यांमार, कम्बोडिया, कोमोरोस और निकारागुआ में प्रजातंत्र था, पर अब नहीं है और जनता का दमन सत्ता द्वारा किया जा रहा है। एशिया में महज 54 प्रतिशत आबादी प्रजातंत्र में है। अफ्रीका में निरंकुश सत्ता वाले देश बढ़ते जा रहे हैं, पर अधिकतर देशों में जनता प्रजातंत्र चाहती है और इसके लिए आन्दोलन भी कर रही है। गाम्बिया, नाइजर, ज़ाम्बिया, घाना, लाइबेरिया, सिएरा लियॉन जैसे अफ्रीकी देशों में जनता में प्रजातंत्र स्थापित कर लिया है। यूरोप में 17 देश ऐसे हैं, जहां प्रजातंत्र का अवमूल्यन हो रहा है। मध्य-पूर्व में केवल तीन देशों- इराक, लेबेनान और इजरायल में प्रजातंत्र है, पर तीनों ही देशों में यह खतरे में है।

जाहिर है, विगत वर्ष को प्रजातंत्र के अवमूल्यन के वर्ष के तौर पर याद किया जाएगा, पर यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले वर्षों में यह परंपरा बने रहेगी, या फिर जीवंत और परम्परागत प्रजातंत्र वापस आएगा।

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