जागी हैं उम्मीदें, छंटने लगे हैं भविष्य पर छाए काले बादल 

4 जून जैसे दिन यह ढांढस बंधाते हैं कि दुनिया में सबकुछ बुरा ही नहीं, कुछ अच्छा भी है!

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के घर पर 5 जून 2024 को नई दिल्ली में हुई महत्वपूर्ण इंडिया ब्लॉक बैठक के बाद मीडिया को संबोधन (फोटो - Getty Images)
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के घर पर 5 जून 2024 को नई दिल्ली में हुई महत्वपूर्ण इंडिया ब्लॉक बैठक के बाद मीडिया को संबोधन (फोटो - Getty Images)
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आकार पटेल

4 जून से जुड़ी कई तरह की सकारात्मक बातें हैं। आइए, उनपर गौर करते हैं। 

जहां तक विपक्ष की बात है, उसे बधाई और शुभकामनाएं। आपने तमाम बाधाओं के बावजूद बहादुरी से चुनाव लड़ा। आपके पास संसाधन नहीं थे, मीडिया बात-बात में आपको ही कठघरे में खड़ा कर रहा था, सरकारी एजेंसियां आपके पीछे पड़ी थीं, आपके कई नेता जेल में थे, फिर भी आपने अच्छा प्रदर्शन किया।

मतगणना से ठीक पहले के दिनों में सोशल मीडिया पर कई लोगों ने कहा कि जिस तरह से विपक्ष ने चुनाव लड़ा, उस पर उन्हें गर्व है। अगर उसकी हार हो जाती तो भी वह सम्मानजनक होती लेकिन उसका तो प्रदर्शन शानदार रहा- उम्मीद से कहीं बेहतर।

अगले पांच साल और उससे भी आगे के लिए आपके सामने बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, आपको बहुत काम करना है। लेकिन फिलहाल वक्त इस बारे में बात करने का नहीं है। यह वक्त है जश्न मनाने का। आपने बहुत अच्छा काम किया, लिहाजा अपने बेहतरीन प्रदर्शन का आनंद उठाएं।

प्रधानमंत्री को बधाई और शुभकामनाएं। आप वापस सत्ता में आ गए हैं लेकिन लोगों ने आपको ताकीद कर दी है कि फैसले लेने में ज्यादा समावेशी हों। उम्मीद है, आपके लिए यह संभव होगा। हममें से कई लोग चाहते हैं कि आप कुछ तरह की हरकतों से तौबा कर लें, खास तौर पर वैचारिक नजरिये से प्रेरित कदमों से। खैर, फिलहाल हम इसकी बात नहीं करते हैं। उम्मीद है कि जनता ने आपको जिस तरह पर कतरकर जीत थमाई है, वह आपको और आपकी पार्टी को बदलाव के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करेगी।

भारत की संस्थाओं, पिछले एक दशक के दौरान आप शर्म से लिपटी रहीं लेकिन यह सोचने का वक्त है कि आप खुद को कैसे आजाद कर सकती हैं। एक भी संस्था ऐसी नहीं है जो पूरी तरह संविधान के लिए खड़ी रही हो।

चुनाव आयोग जो अब स्वतंत्र भी नहीं रहा क्योंकि इसमें नियुक्ति सत्ताधारी पार्टी द्वारा की जाती है, उसे इस मौके का उपयोग जनता को यह यकीन दिलाने के लिए करना चाहिए कि वह ईमानदार भी हो सकता है। जिस तरह से उसने आंकड़ों को रोके रखा, उसने जिस लहजे में विपक्ष को संबोधित किया, जिस तरह उसने एक व्यक्ति के अनुकूल चुनाव कार्यक्रम बनाया और जिस तरह उसने उसके अपमानजनक भाषणों को नजरअंदाज किया... इनमें से कोई भी बात लोगों की नजर से छिपी नहीं थी। लेकिन अब ‘ऊपर से’ वह दबाव कम हो गया है। आपके पास चुनाव आयोग को उसकी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस दिलाने का मौका है। उम्मीद है कि इस मौके को जाया नहीं जाने दिया जाएगा।


जांच एजेंसियों के बारे में हम भला क्या कह सकते हैं? ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) और सीबीआई (केन्द्रीय जांच ब्यूरो) ने खुद को बीजेपी की कठपुतली बन जाने दिया है। दुर्भाग्य से इस मामले में कुछ भी सकारात्मक नहीं है, इसलिए इस मामले में कुछ भी कहने का मतलब नहीं। अतीत में उन पर ‘पिंजरे में बंद तोता’ होने का आरोप सही ही लगाया गया है; अब वे पट्टे से बंधे कुत्तों की तरह हैं जिन्हें जब चाहें विरोधियों पर छोड़ा जा सकता है। लेकिन उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि समय बदलता है, सरकारें बदलती हैं, लोग आते हैं और जाते हैं।

भारत के नागरिक समाज के लिए, केवल सम्मान ही है- राजनीतिक नेताओं के साथ, उन्होंने सत्तावादी कानून का खामियाजा भुगता और उन्होंने पूरी गरिमा के साथ यह सब झेला। उनमें से कई अब भी जेल में हैं। उनके धैर्य ने करोड़ों लोगों को प्रेरणा दी है।

जरा सोचिए, हमने कौन-कौन से खतरे को टाल दिया है? कि भारत गुजरात की तरह एकपक्षीय राज्य में बदल जाता जहां लोकतंत्र तो है लेकिन विपक्ष का दम घोंट दिया गया है, जहां संविधान के मुताबिक एक ही काम होता है- नियमित चुनाव, जो न तो स्वतंत्र हैं और न निष्पक्ष।

और आखिर में मतदाताओं का धन्यवाद। आंकड़े बताते हैं कि मोदी और/या हिंदुत्व को वोट देने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं आई। लेकिन इस बार, दूसरा पक्ष मजबूती के साथ सामने आया और उसने दिखाया कि वह भारत के संविधान की रक्षा करने में सक्षम है। ऐसे लोगों की बड़ी तादाद थी जो अक्सर सोचते थे कि भारत का अब कुछ नहीं होने वाला और मैं भी उन्हीं लोगों में शुमार था। लेकिन ऐसे दिन हमें एहसास कराते हैं कि दुनिया उतनी भी बुरी नहीं। यहां तक कि चिलचिलाती गर्मी भी अचानक से सहनीय हो जाती है। संदेह नहीं कि भविष्य को लेकर अब भी चिंताएं हैं लेकिन इसमें भी शक नहीं कि काले बादल छंट रहे हैं।

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