जी 20 के नाम पर अब एक साल तक चलेगा तमाशा, लेकिन इससे क्या होगा हासिल और कितनी बड़ी बात है इसका अध्यक्ष होना!

जी 20 असली शक्तियों और अधिकार वाले संयुक्त राष्ट्र के विपरीत सिर्फ बातचीत या विमर्श का मंच भर है। इसके पास कोई अधिकार या शक्ति नहीं है और इस ग्रुप यानी जी 20 की अध्यक्षता बारी-बारी से सदस्य देशों को सौंपी जाती है।

फोटो : सोशल मीडिया
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आकार पटेल

यदि कोई हकीकत में नेता नहीं है, तो वह नेता होने का दिखावा कर सकता है। बिल्कुल उसी तरह जैसे कोई जंगी पोशाक पहनकर खुद को असली योद्धा समझने लगे या उसकी तरह अकड़ दिखाने लगे। लेकिन ये सब तब चल जाता है जब देखने वालों को पता नहीं हो कि कोई नाटक कर रहा है और मीडिया भी इसमें उसका साथ दे रहा है।

जी 20 की स्थापना वैश्विक आर्थिक और वित्तीय मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एशियाई वित्तीय संकट के बाद की गई थी। इसका अर्थ है कि वास्तविक शक्तियों और अधिकार वाले संयुक्त राष्ट्र के विपरीत यह सिर्फ एक बातचीत या विचार-विमर्श का मंच भर है। इसका एक प्रमुख संकेतक यह भी है कि इसके पास कोई अधिकार या शक्ति नहीं है और इस ग्रुप यानी जी 20 की अध्यक्षता बारी-बारी से सदस्य देशों को सौंपी जाती है। यानी सभी देशों को अध्यक्षता का मौका मिलता है।

कहा जा सकता है कि अध्यक्षता का सम्मान आपको अपने देश में करदाताओं के पैसे से दूसरों देशों का आतिथ्य या आवभगत करने का मौका देता है। जी 20 में देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों पर भी बातचीत होनी होती है, लेकिन इस समूह में ऐसे देश भी हैं जिनके बीच कारोबारी युद्ध (अमेरिका और चीन) जारी है। या, फिर ऐसे देश जिनके दूसरे देशों को साथ मुक्त व्यापार समझौते नहीं हैं।

इस मंच पर जलवायु पर चर्चा होनी चाहिए, लेकिन इसमें ऐसे सदस्य देश भी हैं जिन पर कार्बन उत्सर्जन के बड़े आरोप हैं। इसमें वे राष्ट्र शामिल हैं जो सैन्य मामलों (यूरोप और अमेरिका) में संधि सहयोगी हैं, जिसका अर्थ है कि उनमें से किसी एक पर हमला उन सभी पर हमले को ट्रिगर करता है। और इसमें वे राष्ट्र भी शामिल हैं जिनके खिलाफ विशेष रूप से ये संधियाँ (रूस) की गई हैं और जिनके खिलाफ ये राष्ट्र वर्तमान में प्रतिद्वंद्वियों को हथियार दे रहे हैं।

इसमें ऐसे देश भी हैं जिनके लिए सीमाएं नहीं है और जिनके नागरिक एक दूसरे देश में (यूरोपीय यूनियन) काम कर सकते हैं या निवेश कर सकते हैं। इसमें ऐसे राष्ट्र भी हैं जो लोकतंत्र हैं लेकिन जहां या तो तानाशाही है या राजशाही (सऊदी अरब) है।

जी 20 का सबसे अमीर देश अमेरिका है, जिसकी प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 70,000 डॉलर या 56 लाख रुपए है। भारत इसमें सबसे गरीब देश है जिसकी प्रति व्यक्ति सालाना आय 2,000 डॉलर यानी 1.60 लाख रुपए है।


कम लोगों को पता है कि इससे पहले जी 20 की अध्यक्षता किसके पास (इंडोनेशिया) थी या उससे पहले किसके (ब्राजील) पास थी। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस समूह की अध्यक्षता न तो प्रतिष्ठा की बात है और न ही इससे कुछ अधिक अधिकार मिलते हैं। लेकिन हमें तो बताया जा रहा है कि यह तो बहुत अद्भुत बात हो गई है कि भारत को एक साल के लिए इस समूह की अध्यक्षता मिल गई है। पूरे देश में जगह-जगह आयोजन किए जाएंगे, खासतौर से उन राज्यों में जो 2024 के लिए महत्वपूर्ण हैं।

इस सबके प्रबंधन जिम्मेदारी प्रधानमंत्री ने नीति आयोग के पूर्व प्रमुख को सौंपी है। नीति आयोग वही संस्था है जिसे योजना आयोग का नाम बदलकर बनाया गया है। वैसे तो इसे सरकार का थिंक टैंक या विचारक मंडल कहा जाता है, लेकिन इसकी भनक किसी को नहीं है कि अब तक इस आयोग ने क्या किया है सिवाए सरकारी योजनाओं पर ताली बजाने के। हो सकता है कि जी 20 के प्रबंधन का काम मिलने से उसके पास वाकई करने को कुछ होगा।

जी 20 का कोई स्थाई सचिवालय नहीं है और इस पर होने वाले खर्च को सभी देश मिलकर उठाते हैं, खासतौर से वर्तमान, इससे पहले वाला और आगे आने वाला अध्यक्ष देश मिलकर खर्च साझा करते हैं। यानी इसके आयोजन पर होने वाले खर्च को हम इस साल ही नहीं बल्कि अध्यक्षता खत्म होने के बाद भी उठाएंगे।

कई अन्य आयोजनों के अलावा जी 20 शिखर सम्मेलन देश के नागरिक समाज (सिविल सोसायटी) और एनजीओ के साथ भी बैठकें करता है। यह देखना काफी रोचक होगा कि इस मामले में भारत जी 20 सदस्य देशों को क्या बताता है कि इसने तो 2014 से इस क्षेत्र से जुड़े लोगों के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजा रखा है, जबकि यही एनजीओ जी 20 के बाकी सदस्य देशों में (कम से कम लोकतांत्रिक देशों में) काम कर रहे हैं।

इसके अलावा सांसदों के साथ भी बैठकें होती हैं, और शायद भारत के विपक्षी नेताओं को भी बोलना का मौका मिले। ऐसा होगा ही, इसका हमें इंतजार करना होगा। हो सकता है कि विपक्ष की आवाज को ऐसे ही दबाया जाता रहे और हमारे नेता जी 20 सांसदों को अपने ही हिसाब से लोगों से मिलने दें। यह भी हो सकता है कि अभिव्यक्ति की आजादी और सहिष्णुता पर हमें कुछ नए शब्द सुनने को मिलें।


हमारी समस्याओं पर अधिक चर्चा होने की संभावना बहुत कम है। सीमा के मुद्दे पर चीन बात नहीं करना चाहता, हमारे साथ ही नहीं, किसी तीसरे पक्ष के साथ भी। लद्दाख में समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। जी 20 देशों में हमारे कामगारों और पर्यटकों को सस्ता और आसान आना-जाना सुलभ हो, इस पर बात होने की भी संभावना नहीं है। और हमें इससे आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए क्योंकि इन सब मुद्दों पर तो हरकत होनी चाहिए न कि सिर्फ जुबानी जमा-खर्च।

कोई 50 साल पहले जुल्फिकार अली भुट्टो ने इस्लामी शिखर सम्मेलन आयोजन किया था और मकसद था इस्लामी देशों के नेताओं के सामने पाकिस्तान को एक मजबूत इस्लामी देश का नेता के तौर पर पेश करना। बेशक ऐसा कुछ नहीं था लेकिन फिर सिर्फ दिखावा करने में क्या हर्ज है?

जी 20 शिखर सम्मेलन हमारे नेता को वैश्विक स्तर का एक आयोजन कर इवेंट मैनेजमेंट करने का मौका भर है और इसे इसी तरह देखना ही चाहिए। देश की बड़ी आबादी के लिए इसका कोई खास अर्थ नहीं है, लेकिन हां मनोरजंन खूब होगा। और यह दिखाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जाएगी कि भारत को दुनिया की अगुवाई करने का मौका मिला है, कम से कम अगले साल तक तो ऐसा ही होगा।

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