'न्यू इंडिया' में एक तरफ भुखमरी, कुपोषण तो दूसरी ओर अनाज की बर्बादी, लेकिन मोदी सरकार की नौटंकी में कोई कमी नहीं

संसद का पूरा सत्र बीत गया, पर सरकार ने भूख और किसानों के ऊपर कोई चर्चा नहीं की, अलबत्ता इसी बीच में मीडिया के कैमरों के सामने थैले पर लटके मोदी जी का सरकारी उत्सव और जश्न आजोजित किया गया जिसमें अत्यधिक गरीबों को 5 किलो अनाज देने का नाटक किया गया।

फोटो: सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2021 के अनुसार दुनिया के 116 देशों के सबसे भूखे लोगों की सूची में मोदी जी के सपनों का न्यू इंडिया 101वें स्थान पर काबिज है। पिछले वर्ष, यानि 2020 में कुल 107 देशों में हमारा स्थान 94वें था। अब आप जल्दी ही प्रधानमंत्री समेत मंत्रियों और संतरियों से देश की महान खानपान परंपरा और विरासत, प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की भूखमरी में देन, किसान आन्दोलनों के कारण भूखमरी और वैश्विक इंडेक्स में भारत के साथ सौतेले व्यवहार पर लम्बे प्रवचन सुनाने को तैयार रहिए और साथ ही मीडिया, बीजेपी आईटी सेल और सोशल मीडिया पर सम्बंधित फेक न्यूज़ और दुष्प्रचार की मार झेलने के लिए भी तैयार रहिए। यही इस सरकार की चारित्रिक विशेषता है, जमीनी हकीकत से कोसों दूर केवल दुष्प्रचार से अपना विकास और देश का विनाश करना।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में हमारा देश सोमालिया, येमन, अफ़ग़ानिस्तान जैसे देशों के समकक्ष खड़ा है। दरअसल दुनिया के केवल 15 देश ऐसे हैं जो हमसे भी खराब हालत में हैं– पापुआ न्यू गिनी, अफगानिस्तान, नाइजीरिया, कांगो, मोजांबिक, सिएर्रे लियॉन, तिमोर-लेस्टे, हैती, लाइबेरिया, मेडागास्कर, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, चाड, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, यमन और सोमालिया। हमारी महान सरकार सचमुच इस महान उपलब्धि पर गर्व कर रही होगी, और अपने सपनों को साकार होता देख रही होगी। बात-बात में हमारे मंत्री-संतरी सरकार से प्रश्न पूछने वालों को जिस पाकिस्तान भेजने की बात करते हैं, वही पाकिस्तान 92वें स्थान पर है जबकि नेपाल और बंगलादेश संयुक्त तौर पर 76वें स्थान पर हैं। तथाकथित भूखे विश्वगुरु की यही वास्तविकता है।

इस इंडेक्स को कंसर्नवर्ल्डवाइड और जर्मनी की वेल्टहंगरहिलफे नामक संस्था हरेक वर्ष संयुक्त तौर पर प्रकाशित करती है। इस इंडेक्स के मानदंड हैं – कुपोषण, 5 वर्ष के कम उम्र के बच्चों का वजन और लम्बाई का अनुपात, 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की लम्बाई और शिशु मृत्यु दर। इस इंडेक्स का पैमाना 0 से 100 तक रहता है, 0 यानि सबसे अच्छा और 100 मतलब सबसे खराब। 50 से अधिक अंक वाले देशों को भूख के सन्दर्भ में खतरनाक माना जाता है – इस वर्ष केवल सोमालिया ही 50 अंक से ऊपर वाला देश है, इसका अंक 50|8 है।


इस इंडेक्स के अनुसार दुनिया ने भूख कम करने के क्षेत्र में जितनी भी तरक्की की थी, सब धीरे-धीरे ख़त्म हो रहा है और यदि यही हाल रहा तो संयुक्त राष्ट्र के भूख को समाप्त करने के सतत विकास लक्ष्य को कभी हासिल नहीं किया जा सकेगा, अभी दुनिया से भूख खत्म करने का लक्ष्य वर्ष 2030 है। दूसरी तरफ कुल 47 देश ऐसे हैं, जो भूखमरी को ख़त्म करना तो दूर, इसे वर्ष 2030 तक कम भी नहीं कर पायेंगें। इस समय भूखमरी का सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन, कोविड 19 और अनेक देशों में पनपे गृहयुद्ध हैं। भूखमरी से सबसे अधिक प्रभावित सहारा के आसपास बसे अफ्रीकी देश और दक्षिण एशिया है। दुनिया के 5 देशों में भूखमरी खतरनाक स्तर पर है, जबकि अन्य 31 देशों में इसकी स्थिति गंभीर है।

हमारे देश में पिछले कुछ वर्षों से सरकार इस इंडेक्स को झूठा और तथ्यहीन बता रही है। इसी वर्ष 20 मार्च को राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के संजय सिंह द्वारा इंडेक्स पर पूछे गए प्रश्न के जवाब में तत्कालीन कृषि राज्य मंत्री ने बयान दिया था कि यह इंडेक्स बकवास है, तथ्यहीन है और हमारे देश में भुखमरी का सवाल ही नहीं है क्योंकि यहां तो सड़क के कुत्ते को भी खाना देने की परम्परा है। 4 अगस्त को लोकसभा में उपभोक्ता मामलों की राज्य मंत्री निरंजन ज्योति ने भी इंडेक्स से सम्बंधित एक हास्यास्पद बयान दिया था उनके अनुसार भारत इंडेक्स में वर्ष 2015 में 80वें, 2016 में 97वें, 2017 में 100वें, 2018 में 103वें, 2019 में 102 वें और 2020 में 94वें स्थान पर रहा है, जिससे साबित होता है कि इस इंडेक्स में वर्ष 2014 से देश की स्थिति लगातार बेहतर हो रही है।

संसद का पूरा सत्र बीत गया, पर सरकार ने भूख और किसानों के ऊपर कोई चर्चा नहीं की – अलबत्ता इसी बीच में मीडिया के कैमरों के सामने थैले पर लटके मोदी जी का सरकारी उत्सव और जश्न आजोजित किया गया जिसमें अत्यधिक गरीबों को 5 किलो अनाज देने का नाटक किया गया। फिर भी किसानों का जीवट देखिये, वे पूरी निष्ठां और लगन से अपना काम कर रहे हैं, अनाज के गोदाम भर रहे हैं और सरकार इन अनाजों को बर्बाद कर रही है। हाल में ही कृषि पर संसद की स्टैंडिंग कमिटी की एक रिपोर्ट के अनुसार देश के सरकारी गोदामों में पिछले तीन वर्ष के दौरान 406 करोड़ रुपये का अनाज बर्बाद हुआ है और 1.39 करोड़ रुपये का अनाज चोरी हो गया है। राहुल गांधी ने इस बर्बादी पर कहा है कि अनाज की बर्बादी गरीबों के खाने की सरकारी चोरी है। कुछ समाचार पत्रों के आंकलन के अनुसार यदि यह अनाज बर्बाद नहीं होता तो इससे देश की आधी बेघर आबादी का तीन महीने तक पौष्टिक आहार दिया जा सकता था।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में शामिल कुल 116 देशों में से हमारा देश 101वें पायदान पर है, फिर भी सरकारी भंडारों में अन्न बर्बाद हो रहा है। अन्न की बर्बादी के आंकड़े भी अलग-अलग है। जब राम बिलास पासवान कृषि मंत्री थे, तब उन्होंने बताया था कि अनाज का भंडारण वैज्ञानिक तरीके से किया जाता है और इसमें बर्बादी महज 0.002 प्रतिशत है। दूसरी तरफ फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया, जो अनाज का भंडारण करती है, के अनुसार अनाज की बर्बादी औसतन 0.7 प्रतिशत होती है, जबकि जानकारों के अनुसार यह बर्बादी 1 प्रतिशत से अधिक होती है।

मई-जून 2020 में जब देश के गरीब भूख से तबाह हो रहे थे, पैदल सैकड़ों किलोमीटर चल रहे थे और रास्ते में भूख से दम तोड़ रहे थे, तब सरकारी गोदामों में अनाज की बर्बादी अपने चरम पर थी। मिनिस्ट्री ऑफ़ कंज्यूमर अफेयर्स के अनुसार वर्ष 2020 में मई से अगस्त के बीच सरकारी गोदामों में 1550 लाख टन से भी अधिक अनाज की बर्बादी हुई। आंकड़ों के अनुसार मई में 26 लाख टन, जून में 1453 लाख टन, जुलाई में 41 लाख टन और अगस्त में 51 लाख टन अनाज भंडारण के दौरान बर्बाद हुआ। फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया के अनुसार यह बर्बादी सामान्य से 15 प्रतिशत से भी अधिक थी। मिनिस्ट्री ऑफ़ कंज्यूमर अफेयर्स के अनुसार वर्ष 2020 में जनवरी से अप्रैल के बीच 65 लाख टन अनाज बर्बाद हुआ। इसी मंत्रालय ने लोक सभा में बताय था कि वर्ष 2017 से 2020 के बीच अनाज के भंडारण के दौरान 11520 टन अनाज बर्बाद हुआ, जिसकी कीमत 15 करोड़ रुपये थी।

वर्ष 2016 के दौरान संसद में बताया गया था कि देश में प्रतिवर्ष औसतन 92651 करोड़ रुपये मूल्य का लगभग 7 करोड़ टन अनाज बर्बाद होता है। संयुक्त राष्ट्र के फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाईजेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में अनाज पैदा करने से लेकर इसके उपभोग के बीच लगभग 40 करोड़ अनाज बर्बाद चला जाता है, जिसमें लगभग 2 करोड़ टन गेहूं होता है। अनुमान है कि देश में 14 प्रतिशत से अधिक आबादी कुपोषित है, फिर भी प्रति व्यक्ति औसतन 50 किलोग्राम प्रतिवर्ष खाने की बर्बादी की जाती है।

जाहिर है, मोदी जी के न्यू इंडिया में एक तरफ तो भुखमरी और कुपोषण बढ़ रही है तो दूसरी तरफ अनाज की बर्बादी बढ़ती जा रही है। इन सबके बीच सरकार गरीबों को हरेक महीने 5 किलो अनाज बांटने का जश्न मना रही है, या यो कहें कि जश्न मनाने के लिए अनाज बांटने का नाटक किया जा रहा है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि इस रिपोर्ट को सरकार नकार दे या फिर विपक्षी दलों या पाकिस्तान की साजिश करार दे क्यों कि देश के आकाओं को सब ठीक लगता है।

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