कमाई की तमाम गुंजाइश भी नहीं लुभा रही निजी निवेश, इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास का लक्ष्य भी जुमले जैसा

पीएम मोदी के अगले पांच साल में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर 100 लाख करोड़ खर्च करने की घोषणा के बाद अमलीजामा पहनाने में लगी वित्त मंत्रालय के इकोनॉमिक अफेयर्स विभाग की टास्क फोर्स भी नीति आयोग की तरह ही सरकारी कंपनियों और संपत्तियां को बेचने पर ज्यादा जोर दे रही है।

फोटोः सोशल मीडिया
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एस राहुल

आर्थिक मंदी से जूझ रहे लोगों के लिए ठोस योजना देने की बजाय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) के नाम पर इन्फ्रांस्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स का 102 लाख करोड़ रुपये का जो झुनझुना पकड़ाया है, उसकी असलियत जानने वाली है। वित्तमंत्री की घोषणा से ऐसा लगता है कि अकेले नरेंद्र मोदी सरकार अगले पांच साल में 102 लाख करोड़ रुपये खर्च करने जा रही है लेकिन ऐसा नहीं है। इस कुल निवेश के 78 प्रतिशत में केंद्र और राज्यों की सरकारें बराबर-बराबर की देनदारी करेंगी, जबकि बाकी 22 प्रतिशत निजी क्षेत्र से आएगा, यानी केंद्र सरकार लगभग 39 लाख करोड़ रुपये ही निवेश करेगी। बाकी 39 लाख करोड़ रुपये राज्य सरकारों को खर्च करने हैं, जबकि जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों की माली हालत न केवल खराब हुई है, बल्कि केंद्र सरकार जीएसटी में उनका हिस्सा भी नहीं दे रही है।

वहीं, प्राइवेट सेक्टर की हालत भी ऐसी नहीं है कि वे इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर निवेश करने के लिए आगे आएं। खासकर, एनपीए बढ़ने के बाद बैंकों द्वारा दीर्घ अवधि लोन देने से हाथ खींचने के बाद इन्फ्रास्ट्रक्चर पर निवेश करने वाली कंपनियों की हालात काफी खराब है। ऐसी स्थिति में मोदी सरकार का अगले पांच साल में 102 लाख करोड़ रुपये निवेश की बात करना एक जुमला जैसा लग रहा है। ऊपर से तुर्रा यह है कि यह सब सरकार पांच ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनने के लिए कर रही है।

दरअसल, मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से अगले पांच साल में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर 100 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की घोषणा की थी। बस, इस घोषणा को अमलीजामा पहनाने के लिए वित्त मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक अफेयर्स की टास्क फोर्स ने पूरा कार्यक्रम तैयार कर लिया। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह टास्क फोर्स भी नीति आयोग की तरह ही सरकारी कंपनियां और संपत्तियां बेचने पर ज्यादा बात कर रही है, जिसकी चर्चा अभी तक आम नहीं हुई है। आइए, टास्क फोर्स की रिपोर्ट पर सेक्टर वाइज बात करते हैं।

ऊर्जा

वित्त मंत्री ने कहा है कि सबसे ज्यादा निवेश ऊर्जा क्षेत्र पर किया जाएगा। टास्क फोर्स की रिपोर्ट बताती है कि ऊर्जा क्षेत्र पर लगभग 24.54 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इसमें से 11.75 लाख करोड़ रुपये बिजली, 9.29 लाख करोड़ रिन्यूएबल एनर्जी पर खर्च किए जाएंगे। बिजली क्षेत्र पर खर्च होने वाले 11.75 लाख करोड़ में से 57 फीसदी पैसा राज्यों को खर्च करना है, जबकि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में शुरू हुई उदय योजना की वजह से राज्यों की माली हालत बिगड़ चुकी है। अलग-अलग राज्यों की सीएजी रिपोर्ट में इसका खुलासा भी किया गया है।

वहीं, बिजली की मांग न होने के कारण पिछले लगभग छह माह से लगातार बिजली का उत्पादन घट रहा है। हर माह जारी होने वाले औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में यह जानकारी सामने आती रही है। दरअसल, देश में अभी लगभग 3.56 लाख मेगावाट क्षमता के पावर प्लांट लगे हुए हैं जबकि देश में बिजली की अधिकतम मांग 1.80 लाख मेगावाट तक ही पहुंच पाती है। बावजूद इसके देश को बिजली कटौती का सामना इसलिए करना पड़ता है क्योंकि ये पावर प्लांट क्षमता के मुकाबले 50 से 60 फीसदी ही उत्पादन कर पाते हैं। ऐसी परिस्थिति में नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन प्रोग्राम में अगले पांच साल में बिजली की उत्पादन क्षमता 6.19 लाख मेगावाट क्यों की जा रही है, यह समझ से परे है।


हां, इतना जरूर है कि सरकार चाहती है कि बिजली घर-घर तक पहुंचाने का काम प्राइवेट कंपनियां करें। ऐसी स्थिति में सरकार का काम केवल बिजली पैदा करना और बिजली ट्रांसफार्मर तक पहुंचाना ही रह जाएगा, बाकी घरों तक बिजली पहुंचा कर बिल वसूलने का काम प्राइवेट कंपनियां करेंगी। जाहिर-सी बात है कि इसका फायदा प्राइवेट कंपनियों को ही होने वाला है। सरकार के इस प्रोग्राम में रिन्यूएबल एनर्जी को दूसरे प्रमुख सेक्टर में रखा गया है और इस पर 9.3 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है लेकिन यह सारा पैसा प्राइवेट सेक्टर ही खर्च करेगा।

दरअसल, अभी देश में कुल बिजली उत्पादन क्षमता में थर्मल की हिस्सेदारी 66 फीसदी है जबकिरिन्यूएबल एनर्जी की उत्पादन क्षमता 22 फीसदी है और हाइड्रोकी क्षमता 13 फीसदी है लेकिन सरकार थर्मल और हाइड्रोकी हिस्सेदारी घटाकर 50 और 9 फीसदी करना चाहती है जबकिरिन्यूएबल एनर्जी की हिस्सेदारी बढ़ा कर 39 फीसदी करना चाहती है। इसके लिए ऐसे नियम भी बनाए जा रहे हैं, जिससे रिन्यूएबल एनर्जी को बढ़ावा मिले, लेकिन इसका फायदा प्राइवेट सेक्टर को ही मिलने वाला है।

रेलवे

ऊर्जा के बाद रेलवे पर सबसे अधिक खर्च करने की योजना बनाई गई है। टास्क फोर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2024-25 तक रेलवे पर 13.7 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इसमें से 87 फीसदी केंद्र और 12 फीसदी प्राइवेट सेक्टर खर्च करेगा। मोदी सरकार के प्राइवेटाइजेशन लक्ष्य में रेलवे भी प्रमुख है। इसका खुलासा इस टास्क रिपोर्ट से भी होता है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि विजन-2025 में 500 यात्री रेलगाड़ियों का निजीकरण किया जाएगा। साथ ही, नेट कारगो वॉल्यूम का 30 फीसदी और 750 रेलवे स्टेशनों का 30 फीसदी और रोलिंग स्टॉक का भी निजीकरण किया जाएगा। इसका सीधा-सा अर्थ यह लगाया जा सकता है कि केंद्र सरकार रेलवे का इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करेगी और प्राइवेट सेक्टर उस इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल करके कमाई करेगा।

एयरपोर्ट

सरकार के इस नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन में 1.4 लाख करोड़ रुपये एयरपोर्ट्स पर खर्च करने की योजना है। इसमें जेवर और नवी मुंबई एयरपोर्ट का विशेष जिक्र है। साथ ही, इस खर्च में सबसे अधिक हिस्सेदारी निजी क्षेत्र की बताई गई है। निजी क्षेत्र द्वारा 39% खर्च किया जाएगा। यह रिपोर्ट बताती है कि 2025 तक देश के 30-35 एयरपोर्ट्स का निजीकरण किया जाएगा। यहां यह उल्लेखनीय है कि सरकार अब तक 6 एयरपोर्ट का निजीकरण कर चुकी है और सभी छह एयरपोर्ट अडानी समूह को सौंपे गए हैं।


सोशल से ज्यादा डिजिटल

डिजिटल इंडिया का वादा कर चुकी मोदी सरकार ने लगभग पूरे सेक्टर को निजी हाथों में सौंपने का मन बना लिया है। नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन प्रोग्राम के तहत 2025 तक 3.2 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का दावा किया गया है। इसमें से 71 फीसदी हिस्सेदारी प्राइवेट सेक्टर की होगी, जबकि 24 फीसदी हिस्सेदारी केंद्र सरकार की होगी। यहां उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार देश की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी बीएसएनएल की संपत्ति बेचना चाहती है। वहीं, 5जी स्पेक्ट्रम की बोली लगने वाली है। ऐसे में, इस सेक्टर में निजी कंपनियों की ही चांदी होगी। दिलचस्प बात यह है कि हेल्थ और एजुकेशन से ज्यादा डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च होगा। हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर पर 1.7 लाख करोड़, उच्च शिक्षा पर 1.2 लाख करोड़ रुपए खर्च का दावा किया गया है, लेकिन इस सेक्टर में प्राइवेट इन्वेस्टमेंट नहीं होगा।

ग्रामीण और खेती

टास्क फोर्स की इस रिपोर्ट में ग्रामीण, खेती और सिंचाई के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर पर अच्छी-खासी रकम खर्च करने का दावा किया गया है। रिपोर्ट बताती है कि अभी लगभग 49 फीसदी इलाके में सिंचाई की व्यवस्था है, जिसे बढ़ाकर 61 फीसदी किया जाएगा। इसके अलावा माइक्रो इरिगेशन को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके लिए 7.7 लाख करोड़ रुपये खर्च का प्रावधान है। इसमें से 78 फीसदी खर्च राज्य सरकारें करेंगी। इसी तरह ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी 7.7 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है।

कुल मिलाकर, मोदी सरकार के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्लान में जहां कमाई की गुंजाइश नहीं है, वहां का काम राज्य सरकारों से कराया जाएगा और जहां कमाई की गुंजाइश है, वहां प्राइवेट सेक्टर को भागीदार बनाया गया है।

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