विष्णु नागर का व्यंग्यः जिसकी लाठी, उसकी भैंस और जहां योगी भी हो, छप्पन इंची भी हो, तो कौन किसे रोकेगा!

वक्त आ चुका है कि अब लोकतंत्र, न्याय, समानता, समाजवाद सब भूलकर सबकुछ सहना सीखा जाए। भूख, बेरोजगारी, बलात्कार और मजबूती से सहना सीखा जाए। अगर मुसलमान हो तो नागरिकता कानून, नागरिक रजिस्टर भूलना सीखा जाए। विरोध करना, धरने देना लोकतांत्रिक है, यह भूलना सीखें।

फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

भाइयों- बहनों आप बिल्कुल गलत मत समझना कि मैं किसी अदालत के किसी फैसले पर कोई टिप्पणी कर रहा हूं। ऐसी गलती कभी की होगी, तो की होगी, अब मैं मैच्योर हो गया हूं। जानता हूं कि जहां सबकुछ सरेआम हुआ है, वहां भी अगर प्रमाण न मिलना है, तो प्रमाण नहीं मिलेंगे, जहां मिलना निश्चित हुआ है, वहां मिलकर रहेगा। जहां कानून और संविधान का उल्लंघन नहीं होना तय है, वहां कितना ही कोई जोर लगा ले, नहीं होगा। जहां षड़यंत्र नहीं मिलना है, वहां नहीं  मिलेगा!

जहां अपराधियों को हीरो और हीरो को अपराधी बनाना है, वहां वैसा ही होगा। जहां षड़यंत्र की पूर्वयोजना नहीं मिलना निश्चित हुआ है, वहां नहीं मिलेगा। जहां मानकर चला जा रहा है कि जनता को भड़ाकाया नहीं गया है, वहां वह दंगे पर उतर आए तो भी जनता भड़की हुई नहीं होगी। जहां गवाह नहीं मिलने हैं, वहां नहीं मिलेंगे, जहां गवाहों को पलटना होगा, वहां हर हाल में उन्हें पलट दिया जाएगा। जहां हत्या को आत्महत्या, आत्महत्या को हत्या बनाना है, वहां तदनुसार हो जाएगा।टीवी फुटेज, फोटो, भाषण से क्या होता है! जहां 'न्याय की विजय' होनी है, होनी है, वहां किसी का बाप इसे रोक नहीं सकता!

यानी जहां, जो सिद्ध करना है, हो जाता है। बलात्कृता जेल में होती है और बलात्कारी सीना तानकर घूमता है। लड़की दलित हो तो उसके साथ हुआ बलात्कार भी बलात्कार नहीं होता। अपराधी, अपराधी नहींं होते, बलात्कृता और उसका परिवार अपराधी होता है। जहां योगी भी हो, छप्पन इंची भी हो, वहां कौन किसे रोकेगा!

ऐसे में एक ही दोस्ताना सलाह है कि ये लोकतंत्र, सेकुलरिज्म, समाजवाद, धार्मिक और नागरिक अधिकार और स्वतंत्रताएं, जिसने जब तक एनज्वाय कर ली, कर ली। अब बाबाजी का ठेंगा! ये गुजरे जमाने की बातें हैं। चंदामामा की कहानियां हैं, स्पाइडरमैन, आयरनमैन, कैप्टन अमेरिका की वेब सीरीज हैं। ये कवियों-कलाकारों के काम की बातें हैं, हालांकि अब वे भी ऐसी खतरनाक कल्पनाएं नहींं करते। ऐसों को वे गधा और मूर्ख मानते हैं। लाइलाज बताते हैं। कोरोना का रोगी समझकर उन्हें मरने के लिए छोड़ देते हैं। उनकी अंत्येष्टि से भी दूर रहते हैं। हां ट्विटर पर भावुक श्रद्धांजलि दे देते हैं!

तो छोड़ो इन बातों को, भूल जाओ सब। सही कहते थे हमारे पूर्वज कि जिसकी लाठी, उसकी भैंस।अब मजबूत लाठी ही काफी नहीं, अब लाठीवाला 'फिटनेस इंडिया' की बिरादरी का सदस्य होना चाहिए। लाठी से ज्यादा वह मजबूत होना चाहिए। योगी होना चाहिए वरना कोई भी उसकी लाठी उसी के सिर में ऐसे मारेगा कि वह कब धरती पर था, कब ऊपर उठ गया, इसका पता उसे क्या दूसरों को भी नहीं चलेगा।

लाठी और शरीर दोनों मजबूत हैं तो फिर न्याय भी, लोकतंत्र भी, सेक्युलरिज्म भी, समाजवाद भी, धार्मिक-नागरिक स्वतंत्रताएं भी लाठी वाले की हैं। वह जिसे चाहे लोकतंत्र कहे, जिसे चाहे सेकुलरिज्म कहे। वह चाहे कम्युनल को सेकुलर कहे, बर्बर को संन्यासी कहे। उसकी परिभाषा ही अंतिम है। ये लोकतंत्र वगैरह शब्द भी जब तक संविधान की शोभा बढ़ाते हैं, तब तक ठीक हैं।उससे आगे बढ़ाने की कोशिश किसी ने की तो ठांय-ठांय शुरू, जमीन पर पटककर मारना शुरू, देशभक्ति-देशद्रोह शुरू, पाकिस्तान की भाषा बोलना शुरू। हिन्दू-मुसलमान शुरू।

वक्त आ चुका है कि अब लोकतंत्र, न्याय, समानता, समाजवाद सब भूलकर सबकुछ सहना सीखा जाए। भूख सहना, बेरोजगारी झेलना, बलात्कार सहना और मजबूती से सीखा जाए। अगर मुसलमान हो तो नागरिकता कानून, नागरिक रजिस्टर भूलना सीखा जाए। दूसरे दर्जे के नागरिक हैं, यह मानना सीखा जाए। दलित-आदिवासी भी सीखें, वामपंथी भी यह सीखें। विरोध करना, धरने देना लोकतांत्रिक है, यह भूलना सीखें। दंगाई सिद्ध किए जाने की संभावना के साथ जेल में जीना और मरना सीखें।

शिक्षा और स्वास्थ्य की मांग को फिजूल मानना सीखें। शिक्षा गलती से मिल चुकी है तो चुपचाप बेरोजगार रहना सीखें। बच्चे छोटे हों तो उनको पढ़ाने के सपने को देखना छोड़ना सीखें। बेरोजगारों की फौज में शामिल करवा कर उन्हें मजदूर बनाना सीखें। अब तो सब प्राइवेट है, सरकार भी, भूख भी, रोग भी। अपने दर्द को, अपनी मौत को प्राइवेट रखना सीखें। सरकार जनता द्वारा, जनता के लिए होती है, इस भूल को सुधारना सीखें। न्यू इंडिया की तारीफ करना सीखें। अरे क्या सभी हम बताएंगे, खुद भी तो अपनी अकल लगाना सीखें!

अरे ओ  चिरकुट, तू दूसरों से क्या कहता है? तू  खुद भी तो पहले कुछ सीख ले!

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