विष्णु नागर का व्यंग्यः मोदी जी का 'नैतिक आधार' इतना कमजोर नहीं, वे इस्तीफा मांगने वाले का इस्तीफा ले लेते हैं
वैसे हमारे यहां इस्तीफा दो, इस्तीफा दो का खेल रोज ही चलता रहता है। पहले विपक्ष, सरकार में बैठे लोगों से इस्तीफे मांगता था, अब सत्ताधारी लोग विपक्ष के लोगों से इस्तीफे मांगते हैं। मदर आफ डेमोक्रेसी की संतान हैं न हम!

अभी कुछ दिन पहले मंगोलिया के प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा। त्यागपत्र देने का कारण हमारे देश की दृष्टि से इतना मामूली था कि इस पर तो चूहा भी भारत के प्रधानमंत्री से इस्तीफा नहीं मांगता। उन प्रधानमंत्री जी का कसूर यह था कि हमारे प्रधानमंत्री के विपरीत वह एक लड़के के पिता हैं। प्रधानमंत्री के साहबजादे हैं तो जाहिर है, ऐश करना उनका परम कर्तव्य है। तो इस कर्तव्य के निर्वहन के लिए वह अपनी मंगेतर के साथ छुट्टियां मनाने कहीं गए। स्वाभाविक है कि उन्होंने मंगेतर को महंगे-महंगे ढेर सारे तोहफे भी दिलवा दिए। इंटरनेट पर सारा मामला सामने खुल गया (अपने यहां भी खुलता है मगर बंद होता रहता है)।
बस फिर क्या था लोग साहबजादे जी की महंगी जीवनशैली के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। प्रधानमंत्री से इस्तीफा मांगने लगे। सामान्यत: कोई प्रधानमंत्री कुछ भी हो जाए मगर इस्तीफा देना नहीं चाहता। उसे मरना मंजूर है मगर इस्तीफा देना नहीं! इधर संसद में उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आ गया और गजब यह कि पास भी हो गया! उन बेचारों को त्यागपत्र देना पड़ा। उन्होंने कहा भी कि मेरे त्यागपत्र देने से लोकतंत्र कमजोर हो जाएगा मगर वहां भी लोकतंत्र की किसे परवाह है! चुनांचे वे भूतपूर्व हो गए। भूतपूर्वों का पुनर्वास उतना ही मुश्किल होता है, जितना कि झुग्गी-बस्ती टूटने पर दिल्ली के गरीबों का!
हमारा लोकतंत्र इतना 'आदर्श' है कि यहां ऐसी सड़ी-सड़ी बातों को कोई मुद्दा नहीं बनाता। प्रधानमंत्री तो क्या किसी राज्य के राज्य मंत्री का बेटा भी रोज-रोज अय्याशी करे, रोज नई-नई प्रेमिकाएं बनाए और रोज-रोज उन्हें छोड़े और छोड़ने से पहले उन्हें महंगे से महंगे तोहफे समर्पित करे तो भी कोई चूं नहीं करेगा। किसी का सिंहासन नहीं डोलेगा क्योंकि मंत्री होने का मतलब है ऐश करना और अपनों को ऐश करवाना! बाकी बातें बाद में आती हैं और कई बार तो बाद में भी नहीं आतीं!
यही जनता की वास्तविक सेवा है, लोकतंत्र की मर्यादा का पालन है। और मान लो, कोई इस पर चूं कर ही दे तो चूं करके भी देख ले, लोकतंत्र में चूं करने का अधिकार सबको है। उसके पास जितनी भी ताकत है, सब चूं करने में लगा दें! इसके अलावा कुछ नहीं होगा कि वह जेल में होगा और उस पर ऐसी-ऐसी धाराएं मंत्री जी लगवाएंगे कि जज उसे जमानत पर छोड़ने से डरेगा।जिंदगी भर फिर कभी न चूं करेगा, न चां क्योंकि भारत में अब सच्चा लोकतंत्र आ चुका है! 2014 से पहले तो यहां तानाशाही थी!
पिछले साल नवंबर में सर्बिया के प्रधानमंत्री के इस्तीफे का कारण बना एक रेलवे स्टेशन की छत का गिर जाना और इस कारण पंद्रह लोगों की जान चली जाना! बताइए ऐसे-ऐसे मामूली कारण हैं दुनिया में इस्तीफा मांगने के और देने के! इसी तरह कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने इस्तीफा दे दिया। वजह यह थी कि अगला चुनाव पास था और उनकी लोकप्रियता घटती जा रही थी। पार्टी के अंदर से उनके त्यागपत्र की मांग भी उठ रही थी। इस मांग के आगे ट्रूडो जी ने समर्पण कर दिया। अपने यहां बीजेपी के अंदर ऐसी मांग उठ सकती है? इसके आगे समर्पण करने की बात तो अकल्पनीय है! सच्चे लोकतंत्र में वही होता है, जो हमारे यहां इन दिनों हो रहा है!
बताइए ऐसी मामूली मामूली बातों पर वहां इस्तीफे हो जाते हैं। वैसे अफवाह तो हमारे यहां भी फैलाई जा रही थी कि संघ प्रमुख, प्रधानमंत्री जी से उनका इस्तीफा लेने उनके घर गए थे। एक अफवाह यह चल रही है कि 17 सितंबर को जीवन के 75 वर्ष पूरे करने के बाद प्रधानमंत्री नैतिक आधार पर इस्तीफा दे देंगे क्योंकि इसी आधार पर उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी आदि से इस्तीफे मांग लिये थे और उन्हें किसी अज्ञात मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया था। वैसे मोदी जी का 'नैतिक आधार' इतना कमजोर भी नहीं है, जितना इन बुजुर्गों का था! वह सेंत-मेंत में इस्तीफा देने वालों में नहीं! वे इस्तीफा मांगनेवाले का इस्तीफा ले लेते हैं! वैसे भी हमारा लोकतंत्र मात्र लोकतंत्र नहीं है, मदर आफ डेमोक्रेसी है! चाइल्ड, मदर को अपना इस्तीफा सौंप सकता है मगर मदर, चाइल्ड का इस्तीफा स्वीकार नहीं करती! वह मां होने की जिद पर अड़ी रहती है!
वैसे हमारे यहां इस्तीफा दो, इस्तीफा दो का खेल रोज ही चलता रहता है और चूंकि यह खेल है, इसलिए कभी कोई किसी भी बात पर इस्तीफा नहीं देता! पहले विपक्ष, सरकार में बैठे लोगों से इस्तीफे मांगता था, अब सत्ताधारी लोग विपक्ष के लोगों से इस्तीफे मांगते हैं। मदर आफ डेमोक्रेसी की संतान हैं न हम!
लोग तो मुझसे भी लेखक पद से नैतिक आधार पर इस्तीफा मांगने लगे हैं क्योंकि मैं लेखक होते हुए मोदी जी और उनकी सरकार के विरुद्ध लिखता रहता हूं। मुझे बार-बार बताया जाता है कि यह लेखक का काम नहीं है मगर मैं भी इस्तीफा नहीं दूंगा क्योंकि मोदी जी भी इस्तीफा नहीं देंगे बल्कि यह असंभव संभव भी हो जाए तो भी मैं इस्तीफा नहीं दूंगा क्योंकि पद पर बने रहने का लालच सबको होता है! कोई हटा सकता है तो हटा के देख ले मुझे! हिम्मत हो तो अविश्वास प्रस्ताव लाकर देख ले। पास करा ले, फिर भी अपुन इस्तीफा नहीं देगा!
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