अब जनता ही बचा सकती है भारतीय लोकतंत्र को

कर्नाटक में जो कुछ हुआ, वह आने वाले वक्त का रिहर्सल है। संघ का एजेंडा है कि किसी भी तरह 2019 में मोदी का वापस लाया जाए। उद्देश्य है कि संविधान को क्षतिग्रस्त किया जाए और वीर सावरकर के सपनों का हिन्दू राष्ट्र बनाया जाए।

फोटो: सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

जिन्हें इस बात का भ्रम था कि कर्नाटक के राज्यपाल नियमों के मुताबिक काम करेंगे, उनका भ्रम कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के 24 घंटे के भीतर ही चूर-चूर हो गया। प्रधानमंत्री मोदी ने जैसे ही इस बात की घोषणा की कि ‘बीजेपी को मिले जनमत’ को बीजेपी ‘किसी भी कीमत पर’ किसी और के कब्जे में नहीं जाने देगी, वैसे ही चीजें पूरी तरह साफ हो गई थीं। इसने इस बात का भी इशारा किया कि हिंदुत्व ब्रिगेड येदियुरप्पा को चुनाव से पहले उनके द्वारा तय तारीख और समय के अनुसार ही उनका राजतिलक कराने की रणनीति के साथ तैयार है।

यह रणनीति बुधवार रात को सामने आना शुरू हुई जब कर्नाटक के डीजीपी ने शपथ-ग्रहण की पूरी योजना को जाहिर कर दिया। कुछ मिनटों बाद ही बीजेपी कर्नाटक ने इस ‘खबर’ को ट्वीट किया और तुरंत ही डिलीट भी कर दिया क्योंकि राजभवन ने तब तक कोई औपचारिक सूचना जारी नहीं की थी। फिर औपचारिक सूचना आई कि राजभवन ने बीजेपी के सरकार बनाने के दावे को स्वीकार कर लिया है और येदियुरप्पा को अगले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ-ग्रहण के लिए आमंत्रण दे दिया है।

नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी ने 2019 के संसदीय चुनाव में सत्ता पर कब्जा करने के लिए पूरी तरह मन बना चुकी है। 2019 से पहले बीजेपी सारे राज्यों में या ज्यादा से ज्यादा राज्यों में सत्ता पर कब्जा करना जरूरी समझती है। मोदी के मुख्य कर्ता-धर्ता अमित शाह ने कुछ दिनों पहले यह घोषणा की थी कि “सभी 26 राज्यों में” भगवा झंडा जल्द ही फहराया जाएगा। येदियुरप्पा सरकार को बनाना उस दिशा में ही एक कदम है।

संवैधानिक नियमों और लोकतांत्रिक तरीकों की किसे परवाह है? जब गोवा और मणिपुर में सत्ता हासिल करने के लिए बीजेपी को यह जरूरी लगा तो उन्होंने चुनाव-उपरांत गठबंधन को सही तरीका ठहराया। लेकिन इस तर्क को सिर के बल खड़ा कर दिया गया जब कर्नाटक में बीजेपी की विरोधी पार्टियों को चुनाव-उपरांत गठबंधन से फायदा मिलता दिखा, जहां सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने का पहले न्योता मिला।

बीजेपी अलग-अलग समय में अलग-अलग तरीकों से अपने सुविधानुसार संविधान की व्याख्या कर रही है ताकि वह अपने राजनीतिक और चुनावी हितों को आगे बढ़ा सके। इस प्रक्रिया में राज्यपाल के संवैधानिक पद की गरिमा को घटा दिया गया और राज्यपाल पीएमओ की बात पर अमल करने वाला एक पद बनकर रह गया।

अब इसे लेकर कोई भ्रम नहीं बचा रह सकता कि बीजेपी-आरएसएस मशीन संविधान को क्षतिग्रस्त करने के लिए नहीं निकली हुई है। जब सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों ने जस्टिस चेलमेश्वर के नेतृत्व में एक ऐतिहासिक प्रेस कांफ्रेंस की और राष्ट्र को यह चेतावनी दी कि ‘लोकतंत्र खतरे में है’, तो उनका मतलब बहुत साफ था। उस प्रेस कांफ्रेंस का पूरा मतलब अब समझ में आ रहा है।

माननीय जजों द्वारा दी गई वह कोई अगंभीर चेतावनी नहीं थी। उन्हें इस बात का अनुभव हुआ होगा कि किस तरह व्यवस्थित ढंग से मौजूदा सत्ता लोकतांत्रिक संस्थाओं के साथ छेड़छाड़ कर रही है। संसद पर उस समय दाग लग गया जब खुद लोकसभा स्पीकर ने आखिरी बजट सत्र के दौरान अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार करने से मना कर दिया, जबकि सरकार गिरने का कोई खतरा नहीं था। चुनाव आयोग का कई मौकों पर पर्दाफाश हो चुका है जब उसने सत्ताधारी समूह के खिलाफ की गई शिकायतों के प्रति आंखें मूंद लीं। भारत के चीफ जस्टिस के खिलाफ 60 से ज्यादा सांसदों द्वारा लाए गए महाभियोग प्रस्ताव के बाद से न्यायपालिका में अंधेरा छा गया है। मीडिया पहले ही समझौता कर चुकी है और जनता के चौकीदार की बजाय सत्ता का पालतू कुत्ते की तरह काम कर रही है। ऐसी स्थिति में कोई भी यह सकता है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र तेजी से एक हास्य में तब्दील होता जा रहा है।

लेकिन यह सबकुछ आने वाले वक्त का रिहर्सल है। संघ का एजेंडा है कि किसी भी तरह 2019 में मोदी का वापस लाया जाए। उद्देश्य है कि संविधान को क्षतिग्रस्त किया जाए और वीर सावरकर के सपनों का हिन्दू राष्ट्र बनाया जाए। लेकिन बड़े पैमाने पर कमजोर मोदी के नेतृत्व में यह संभव नहीं हो सकता, जिनकी लोकप्रियता दिनोंदिन गिर रही है और उनका हर गुजरते दिन के साथ पर्दाफाश हो रहा है। करोड़ों रोजगार देने के उनके फर्जी वादे, विदेश में जमा काले धन के वापस आने से हर भारतीय को 15 लाख देने जैसे कई और वादे सोशल मीडिया पर मजाक में तब्दील हो गए हैं।

भारतीय धन नीरव मोदी जैसे चोर विदेश लेकर जा रहे हैं, जबकि बैंक बढ़ते एनपीए के बोझ से त्राहिमाम कर रहे हैं। नोटबंदी और जीएसटी जैसे जल्दबाजी में उठाए गए कदम की वजह व्यापार, अर्थव्यवस्था और नौकरियां तबाह हो गई हैं। 2018 के नरेन्द्र मोदी 2014 के नरेन्द्र मोदी नहीं रह गए हैं जब उन्होंने अकेले बीजेपी के लिए लोकसभा में बहुमत जुटाया था।

फिरभी, 2019 में संघ के एजेंडे के अधूरे काम को पूरा करने के लिए नरेन्द्र मोदी को वापस लाना है। इसलिए, संस्थाओं को तोड़ो, राज्यपाल जैसे संवैधानिक पदों से खिलवाड़ करो, न्यायपालिका को कठपुतलियों से भर दो, मीडिया को खरीद लो। अगर कुछ भी नहीं काम करता तो लालू प्रसाद जैसे विपक्षी नेताओं को जेल भेज दो। दिल्ली के राजनीतिक जगत में दबी जुबान में यह कहा जा रहा है कि विपक्षी एकता तोड़ने के लिए विपक्ष के किसी वरिष्ठ नेता को सतही आरोपों के आधार पर जेल भेजा जा सकता है। अगर यह भी बीजेपी के काम नहीं आता है तो वे अयोध्या में राम मंदिर बनाने के नाम पर पूरे देश को 2002 के गुजरात में बदल सकते हैं।

खैर, भारत पहले ही स्वतंत्रता के बाद के अपने सबसे खतरनाक दौर में पहुंच चुका है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में येदियुरप्पा को शपथ दिलाने का कर्नाटक के राज्यपाल का फैसला अभी से 2019 के बीच जो होने वाला है उसकी सिर्फ एक झांकी है। एक संगठित सेकुलर और उदार विपक्ष द्वारा जनता की अदालत में जाना लोकतंत्र को बचाने का एकमात्र रास्ता है। भारतीय लोकतंत्र की हत्या की जा रही है। सिर्फ इसका हाहाकार मचाने से इसे नहीं बचाया जा सकता। जितनी जल्दी विपक्ष जनता के पास जाए, उतना ही अच्छा। 2019 के चुनावी संघर्ष का इंतजार करने का अब सुझाव नहीं दिया जा सकता और हो सकता है कि यह देर से किया गया बहुत थोड़ा काम हो।

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Published: 18 May 2018, 6:59 AM