खरी-खरी: खामोश ! यह 'न्यू इंडिया' है, यहां किसी भी मुद्दे पर चर्चा की इजाजत नहीं है...

बीजेपी की केन्द्र सरकार अब एक नई प्रणाली चला रही है। सरकार की किसी बात पर किसी भी प्रकार की चर्चा की कोई आवश्यकता नहीं है। न संसद के भीतर और बस चले तो न संसद के बाहर, अब किसी प्रकार की चर्चा नहीं होगी।

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ज़फ़र आग़ा

संसद ठप है, न्यायपालिका पर उंगलियां उठ चुकी हैं। कार्यपालिका सरकार के आगे नतमस्तक है। मीडिया अब गोदी मीडिया कहलाता है। क्या भारतवर्ष अभी भी एक लोकतंत्र है! जब तक चुनाव हो रहे हैं, तब तक यह नहीं कहा जा सकता है कि भारत में चुनावी लोकतंत्र नहीं चल रहा है। परंतु अभी त्रिपुरा में नगरपालिका चुनाव में जिस प्रकार की लूट की खबरें आईं, उससे खतरा लगता है। त्रिपुरा से पहले उत्तर प्रदेश में नगरपालिका चुनाव से भी चिंताजनक खबरें आई थीं। बहरहाल, चुनाव प्रणाली पर भी प्रश्न उठ रहे हैं। क्या लोकतंत्र का भविष्य भी खतरे में है?

कुछ खुलकर कहना अभी उचित नहीं लगता। कारण यह कि भारत की आत्मा में लोकतंत्र रचा- बसा है। हजारों वर्षों से यहां पीपल की छांव तले गांव-गांव में सर्वसम्मति से मामले तय होते रहे हैं। तब ही तो सन 1952 में स्वतंत्र भारत के पहले चुनाव से लेकर अब तक भारत के लोकतंत्र की संसार में चर्चा है। परंतु हर लोकतंत्र का सर्वप्रथम मूल सिद्धांत ही चर्चा एवं बहस है। लोकतंत्र की पहली सीढ़ी ही चुनाव है। आखिर चुनाव होते क्यों हैं। चुनाव में होता क्या है। चुनाव प्रणाली का सिद्धांत यह होता है कि हर राजनीतिक दल प्रचार के माध्यम से अपना-अपना एजेंडा जनता के सामने रखता है। फिर जनता आपस में चर्चा एवं विचार-विमर्श से वोट डालकर बहुमत के आधार पर अपना-अपना प्रतिनिधि चुनती है। अंततः बहुमत प्राप्त दल जनता की चर्चा के बाद सरकार बनाता है। फिर सरकार हर मामले को संसद में चर्चा के लिए पेश करती है। फिर संसद में चर्चा के बाद कानून पास होते हैं। इस प्रकार चर्चा के माध्यम से लोकतांत्रिक प्रणाली कार्य करती है।

लेकिन बीजेपी की केन्द्र सरकार अब एक नई प्रणाली चला रही है। सरकार की किसी बात पर किसी भी प्रकार की चर्चा की कोई आवश्यकता नहीं है। न संसद के भीतर और बस चले तो न संसद के बाहर, अब किसी प्रकार की चर्चा नहीं होगी। संसद इसी बात पर तो ठप है। हुआ क्या! सरकार ने तय किया कि वह तीनों कृषि कानून वापस लेगी। नियमानुसार सरकार ने संसद के दोनों सदनों के पटल पर कृषि कानून वापस लेने का बिल रखा। विपक्ष ने लोकतांत्रिक अधिकार के तहत सदन में चर्चा के लिए समय मांगा। दोनों सदनों में विपक्ष को चर्चा की मनाही का हुकुम आ गया। कृषि कानून बिना किसी चर्चा के वापस ले लिए गए।

भाइयो! यह मोदी का एक नया लोकतंत्र है। इस लोकतंत्र में कानून पारित करने के लिए संसद को भी चर्चा का अधिकार नहीं होगा। वह भी कैसे कानून के संबंध में चर्चा नहीं की गई। कृषि कानून वापस लेने पर संसद को चर्चा की अनुमति नहीं दी गई। वह कानून जिसने देश भर के किसानों को विचलित कर दिया। वे हजारों की तादाद में सड़कों पर निकल पड़े। एक वर्ष से वे किसान दिल्ली की सरहदों पर खुले आसमान के नीचे बैठे हैं। किसान आंदोलन इतना बड़ा आंदोलन है कि उसकी मांगों के सामने तीन कृषि कानून हटाने पर स्वयं नरेन्द्र मोदी जैसे नेता को भी घुटने टेकने पड़े और कृषि कानून वापस लेने की घोषणा करनी पड़ी। तीनों कृषि कानूनों को वापस करवाने के लिए सात सौ से अधिक किसानों ने अपना जीवन दान किया। इसी काले कानून को हटाने के लिए सरकार की ओर से चर्चा की अनुमति नहीं है।

यह एक नया लोकतंत्र है। इस लोकतंत्र में चर्चा की अनुमति नहीं है। भारतीय जनता पार्टी ‘न्यू इंडिया’ में ‘नए लोकतंत्र’ की नींव रख रही है। यदि आप चर्चारहित लोकतंत्र को लोकतंत्र मानते हैं तो यह आपका अपना फैसला होगा।


यूपीए कमजोर हुआ, तो बीजेपी मजबूत होगी

वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में यह स्पष्ट है कि देश में बीजेपी विरोधी शक्तियों की एकता अनिवार्य है। बीजेपी की हिन्दुत्ववादी राजनीति के उत्थान से देश गहरे संकट में है। देश का संवैधानिक ढांचा खतरे में है। संसद में जिस प्रकार बीजेपी सरकार ने चर्चा पर रोक लगा रखी है, उसने भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। अतः इस गंभीर अवस्था में सारी चिंताओं के बीच विपक्ष पर बड़ी जिम्मेदारी है। ऐसी अवस्था में बीजेपी की चुनौती से निपटने के लिए बहुत समझदारी की आवश्यकता है। जमीनी स्थिति यह है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी इस देश की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है। उससे भी चिंताजनक बात यह है कि एक बड़ी जनसंख्या हिन्दुत्व विचारधारा से प्रेरित है। बीजेपी अपने अकेले दम पर संघ की संगठनात्मक शक्ति के साथ बाकी सभी दलों पर भारी है।

उधर, बीजेपी विरोधी दल खंडित हैं। बीजेपी विरोधी सेकुलर दलों में दो समूह हैं। इसमें सबसे बड़ा दल कांग्रेस पार्टी है। कांग्रेस पार्टी लगातार विफलताओं के बावजूद अकेली सबसे बड़ी राष्ट्रव्यापी पार्टी है। आज भी भारत की बात कांग्रेस के बगैर नहीं की जा सकती है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश के विभिन्न हिस्सों में पार्टी का संगठन भी है। देश को स्वतंत्रता दिलाने वाली एवं आधुनिक भारत का निर्माण करने वाली कांग्रेस पार्टी की केन्द्रीय भूमिका की बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है। अतः कोई भी बीजेपी का विकल्प कांग्रेस के बिना संभव ही नहीं हो सकता। परंतु इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि आज की परिस्थितियों में छोटे दलों एवं क्षेत्रीय पार्टियों की भी अहम भूमिका है।

वर्तमान समय में बीजेपी का विकल्प क्षेत्रीय दलों के साथ के बिना सफल नहीं हो सकता है। स्पष्ट है कि कांग्रेस पार्टी विपक्ष को एकजुट कर बीजेपी एवं हिन्दुत्व का सामना कर सकती है। इसी राजनीतिक दृष्टि से सन 2004 में सोनिया गांधी ने सफलतापूर्वक यूपीए का गठन किया था और सबको साथ लेकर बीजेपी का मुकाबला किया था। यूपीए आज भी बीजेपी का विकल्प हो सकता है। अतः कांग्रेस एवं क्षेत्रीय दलों का दायित्व है कि यूपीए में पुनः जान डालें क्योंकि यदि य़ूपीए टूटा तो खंडित विपक्ष से बीजेपी और मजबूत होगी।

वैक्सीन की दूसरी डोज तुरंत लगवाइए

लीजिए, अब फिर से महामारी की तलवार सिर पर है। जी हां, हम भारतवासी जब कुछ चैन की सांस ले रहे थे और यह सोच रहे थे कि कोविड से पीछा छूटने का समय आ गया है तो फिर यकायक हमारे सिरों पर कोविड की तीसरी लहर का खतरा मंडराने लगा। आप अवगत ही हैं कि इस बार खतरे की घंटी चीन से नहीं बल्कि दक्षिण अफ्रीका से बजी है। डब्ल्यूएचओ ने संसार में चल रही महामारी के नए वेरियंट का नाम ओमीक्रोन रखा है। यह कितना खतरनाक है, अभी यह निश्चित नहीं है। लेकिन दक्षिण अफ्रीका में लोग बहुत तेजी से बीमार पड़ रहे हैं। ओमीक्रोन के लक्षण भी कुछ अलग ही हैं। कहते हैं, इससे तेज बुखार नहीं आता। गले में भी बहुत दर्द नहीं होता। लेकिन पैरों में दर्द एवं कमजोरी बहुत होती है।

अभी तक यह भी नहीं पता कि इस नए वेरियंट ओमीक्रोन से कितने व्यक्तियों की मृत्यु हो चुकी है। परंतु कोविड महामारी की ऐसी दहशत है कि इसके नाम से ही सारे संसार की अर्थव्यवस्था अभी से गड़बड़ाने लगी है। भारत सहित सारे संसार में शेयर बाजार में हाहाकार मच गया। इसका प्रभाव फिर से नौकरियों एवं दूसरे क्षेत्रों में पड़ सकता है। स्कूल-कॉलेज जो खुलने शुरू हो चुके थे, फिर से बंद होने लगे। आगे-आगे देखिए, होता है क्या।

अब सवाल यह है कि ओमीक्रोन से बचा कैसे जाए। सरकारी कोताही के कारण छह माह पहले गाजर-मूली के समान भारत में जिस प्रकार हजारों भारतीय कोविड के घाट उतर गए, उस आधार पर हम और आप सरकार के भरोसे नहीं रह सकते हैं। कोविड का अभी तक कोई इलाज नहीं है। केवल अच्छी बात इतनी है कि वैक्सीन से राहत है। वैक्सीन से भी यह गारंटी नहीं कि आपको बीमारी नहीं होगी। हां, इतना अवश्य है कि मौत की आशंका बहुत कम हो जाती है। यह अच्छी खबर है कि भारत की अधिकांश आबादी वैक्सीन का कम-से-कम एक डोज लगवा चुकी है। अब जरूरत इस बात की है कि जल्दी-से-जल्दी हर व्यक्ति वैक्सीन की दूसरी डोज लगवा ले।

कोविड महामारी से बचने का अभी तक केवल एकमात्र रास्ता वैक्सीन ही है। अतः वैक्सीन से हरगिज परहेज न करें। पहली डोज हो चुकी है तो दूसरी डोज तुरंत लगवाइए। फिर जो सामाजिक पाबंदियां हैं, उनका पालन करें। मास्क पहनना, घर से कम-से-कम निकलना-जैसे अन्य उपाय ही आपका जीवन बचा सकते हैं। कोविड की तीसरी लहर भी दरवाजा खटखटा रही है। अपना जीवन सुरक्षित कीजिए।

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