विष्णु नागर का व्यंग्य: दुखी रहना भक्तों के जीवन का ध्येय है और उनका पहला और आखिरी प्यार भी!

भक्तों, माफ करना यह याद दिलाने के लिए कि कल प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन है। तुममें से कई को बाल दिवस की याद हो तो शायद हो।

फोटो: सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

भक्तों, माफ करना यह याद दिलाने के लिए कि कल  प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन है। तुममें से कई को बाल दिवस की याद हो तो शायद हो। हो सकता है,  तुम भूल गए होंगे, तो सोचा याद दिला दूं उस 'मुसलमान ' की, जिससे सिवाय नफ़रत करने के तुम्हें कुछ नहीं आता। कट्टर संस्कारी हो न! 

वैसे नेहरू जी, मुसलमान होते तो भी मैं उन्हें उतना ही प्यार करता, जितना ग़ालिब, मंटो और फैज़ को करता हूं। तुम्हारी खुशी के लिए मान लेता हूं कि नेहरू जी 'मुसलमान' थे। तुम चाहो तो उन्हें ईसाई बना दो, यहूदी बना दो। जो बनाना हो, बना दो। फर्क तुमको पड़ता है, नेहरू जी को नहीं। वजह यह है कि नेहरू जी अगर 'मुसलमान' थे तो भी आजादी की लड़ाई के अग्रिम सिपाहियों में थे। कोई संघी नहीं था। न तुम्हारे डाक्टर साहब थे, न गुरुजी थे। नौ साल तक अंग्रेजों की जेल में वही 'मुसलमान' रहे थे, मुंजे जी नहीं रहे थे। और नेहरू जी ने कभी अंग्रेजों से माफी नहीं मांगी, माफीवीर वह नहीं बने। माफीवीर बन जाते तो तुम उनसे इतना प्यार करते, जितना प्यार उन्हें अपने आप से भी नहीं था!

 'मुसलमान' थे मगर पाकिस्तान नहीं गए थे! 'मुसलमान' थे मगर भारत के प्रधानमंत्री वही बनाए गए थे। 'मुसलमान' थे और प्रधानमंत्री भी थे मगर उन्होंने कभी जेल में अपने दुखों-कष्टों की दुकान नहीं लगाई, उसका चुनावी पोस्टर नहीं बनाया। झूठ दर झूठ नहीं बोला। यह नहीं कहा कभी कि व्यापार मेरे खून में है। वह 'संस्कारी' नहीं थे,  इसलिए वह कपड़ों से किसी के धर्म को पहचानना सीख नहीं पाए। 'मुसलमान' थे मगर  हिंदू गांधी जी की 'गलती' से उन्हें ही अपना उत्तराधिकारी  बताया था, श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नहीं! इसका न तुम अब कुछ कर सकते हो, न हम! तुम्हारे इतिहासकार भी इसका कुछ नहीं कर सकते! वे ताजमहल को तेजोलय बनाना चाहते थे मगर नहीं बना पाए! कुछ सड़कों-शहरों , रेलवे स्टेशनों के नाम बदलवाकर  खुश हैं तो रहें खुश! फिर भी मुगलसराय आज भी मुगलसराय है और आगे भी मुगलसराय ही रहेगा।


 ये सब तुम्हें तकलीफ़ देनेवाली बातें हैं। सोच रहा था, आज संडे है, आज तुम्हें दुखी करना ठीक नहीं मगर फिर लगा, संडे हो या मंडे, दुखी तो तुम हर हालत में, हर दिन रहते हो। दुखी रहना तुम्हारी आदत है, जीवनशैली है, जीवन का ध्येय है! तुम्हारा पहला और आखिरी प्यार है। तुम सहजन का पराठा खाए बगैर पूरे एक दिन जिंदा रह सकते हो मगर दुखों के बिना एक पल भी नहीं! दुखों के महासागर की मछली जो हो तुम। बाहर निकालोगे तो तड़प कर थोड़ी देर में अनंत में समा जाओगे!

लगता है कि पिछले आठ साल में तुम एक दिन भी सुखी नहीं रहे बल्कि दुख होता है यह देख कर कि तुम पहले से अधिक दुखी हो! दुखों का जैसे पहाड़ तुम पर टूट पड़ा है और तुम  मलबे के नीचे दबे कराह रहे हो! तुम लोगों को निकालने कोई नहीं आता! और अगर ग़लती से कोई आ जाता है तो शाखा के डंडे से मार- मार कर उसका भुर्ता बना देते हो। फिर से कराहना शुरू कर देते हो।

 मुसलमानों से तो तुम इतने ज्यादा दुखी हो कि रात को तुम्हें नींद नहीं आती, दिन में चैन नहीं आता। तुम्हारा यह दुख देख कर मुसलमान पिघल गए हैं। कुछ ने बताया कि हम और तो कोई सेवा इनकी कर नहीं सकते थे मगर हमने चंदा करके इन्हें रूमालों के दस हजार सेट भेज दिए हैं, ताकि अपनी आंख-नाक ठीक से पोंछ सकें! कुछ ने बताया कि हम इन्हें नैपकिन खरीद कर दे आए हैं। और चाहिए होंगे तो और दे आएंगे! इन दुखियों की सहायता करना भारतीय और ऊपर से मुसलमान होने के कारण हमारा विशेष कर्तव्य है, धर्म है और हम इससे कभी पीछे नहीं हटेंगे! हमारा आज एक ही दुख है कि ये दुखी हैं, बाकी हमारा अपना कोई दुख नहीं! है भी तो हम इनके दुख के आगे उसे भूल गए हैं। रूमाल और नैपकिन का चंदा उगाहने में, खरीदने में व्यस्त हो गए हैं। 


वैसे ये दुखी हर बात से हैं। एक दुख हो तो कोई इनकी मदद करे, इसलिए केवल रूमाल और नैपकिन से ही इनकी मदद की जा सकती है,जो उदारतापूर्वक की जा रही है! वामपंथियों और कांग्रेसियों से ये दुखी। सेकुलरिज्म से ये दुखी। संविधान से ये दुखी, विभाजन के बाद सारे मुसलमान पाकिस्तान क्यों नहीं चले गए, इससे ये दुखी! सरदार पटेल प्रधानमंत्री क्यों नहीं बने, इससे ये दुखी। अनुच्छेद 370 क्यों था, इससे ये दुखी थे और हट गया तो और भी ज्यादा दुखी! भारत1947 में हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं बना, इससे ये दुखी! दुखी तो ये तिरंगे से भी हैं, गांधी जी और बाबासाहेब अंबेडकर से भी हैं पर मजबूरी है। पहले दुखी थे कि सत्ता इन्हें क्यों नहीं मिली, अब दुखी हैं कि इन्हें अब जाकर क्यों मिली है!

 इसलिए आज,नेहरू जी के जन्मदिन से ठीक पहले  इनके स्थायी दुखों की याद दिलाकर इन्हें और दुखी नहीं करना चाहता था मगर कर बैठा! मैं सुखियों को तो दुखी करता आया हूं मगर दुखियों को दुखी नहीं करना ठीक नहीं समझता मगर आज ये पाप  मुझसे हो गया।

कान तो नहीं पकड़ना पड़ेगा न!

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