विष्णु नागर का व्यंग्य: कानून, अदालत ये सब कल की बात, आजकल तो सबकुछ हम ही हैं!

लोकतंत्र- फोकतंत्र की बातें अमेरिका में करने के लिए अच्छी लगती हैं। यहां तो वही डंडा तंत्र चलता है और वही चलेगा। पढ़ें देश की आज की स्थिति पर विष्णु नागर का व्यंग्य।

Modi in Papua
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विष्णु नागर

ऐ बाबा,  किधर जाते हो ?

बाजार। क्यों? क्या काम है?

नहीं, आजकल बुड्ढे लोग बाजार तो बिलकुल ही काम से नहीं जाते हैं। उनके घर में सरकार सब ऊपर से टपका देती है। खाना -पीना-कपड़े-लत्ते-पैसा सब। हम जैसे घर में बैठे -बैठे बोर हो जाते हैं तो भरी गर्मी में भी टहलने चले जाते हैं, लड़कियां छेड़ आते हैं। आओ, तुम भी चलो। तुम्हारी जवानी चली गई तो क्या हुआ, अभी अधेड़ तो हो‌। चलो। मजा करेंगे दोनों मिलकर। एक से दो भले।

ऐ बुड्ढे, पुलिसवाले से मज़ाक करता है? बुजुर्ग है, इसलिए लिहाज़ कर रहा हूं वरना साले के पिछवाड़े दो लगाता, तो तबीयत हरी हो जाती! बता, किसलिए जा रहा है?

पहले तमीज से बात कर।

ये क्या चीज़ होती है? अच्छा छोड़ बता, क्यों जा रहा है?

बताया तो और क्या बताऊं?

सच-सच बता।

सच-सच? तू किस जमाने की बात कर रहा है- पुलिस वाला होकर? सच कौन बोलता है आजकल? जिसकी शामत आई हुई होती है, वही ऐसी गुस्ताखी करता है वरना तो सब वही बोलते हैं,जो ऊपर वाले बुलवाते हैं। वे क्या बुलवाते हैं,ये तू भी समझता है और मैं भी।

पहेली मत बुझा। ये क्या बक रहा है? मुझे कुछ समझ में नहीं आया। तो तू ये बता, ये तू पूछ क्या रहा है? अरे जा रहे हैं तो किसी काम से ही जा रहे होंगे। तू इन्क्वायरी करनेवाला है कौन? बातें मत बना। बता किस काम से जा रहा है? किसी भी काम से। क्यों बताऊं? अब पुलिसवालों ने ये भी पूछना शुरू कर दिया है?


सबकुछ पूछेगी और अब पुलिस ही पूछेगी। जो जवाब नहीं देगा, उसको अंदर करेगी। अंदर जाना है? जाना है तो बता। और ऊपर जाना हो तो वो भी बता। उसका भी फूलप्रूफ इंतजाम है। तू है किस मुगालते में? जिसे नौ साल में भी कुछ समझ में नहीं आया, उसे कभी समझ में नहीं आएगा। लोकतंत्र- फोकतंत्र की बातें अमेरिका में करने के लिए अच्छी लगती हैं। यहां तो वही डंडा तंत्र चलता है और वही चलेगा।

तो ऐसा कर मुझे अंदर कर दे। मैं भी देखता हूं। अंकल जी, मैं फिर कह रहा हूं, अब देखने के लिए कुछ बचा नहीं। गये वो जमाने और वो लोग। एक बार अंदर गए तो उसके बाद कुछ पता नहीं चलेगा। अंदर ही हो कि ऊपर चले गए हो? पुलिस कहेगी कि अंदर नहीं है और ऊपरवाला कहेगा नहीं कि हां जी वे ऊपर आ चुके हैं। धमकाता है? धमका नहीं रहा, आज का सच बता रहा हूं और सिर्फ तुमको बता रहा हूं। अच्छा छोड़ो।ये बताओ कि क्यों जा रहे हो?  सौदा-सुलूफ लेने और क्या?

गोलमोल से काम नहीं चलेगा। ठीक- ठीक बताओ, क्या लेने जा रहे हो। सब्जी वगैरह लेने। कौन-सी? सब्जी तो खैर समझ में आ गया। ये वगैरह क्या होता है? मतलब पैसा बचा तो कुछ फल- फ्रूट भी खरीद लूंगा‌। जेब में कितने पैसे हैं? कितने भी हों? दो रुपए हों या दो हजार रुपए। तुम पुलिस वाले हो। अपनी ड्यूटी करो। तुम्हें इससे क्या मतलब कि कौन कहां जा रहा है? क्या और कितना खरीदने जा रहा है? कितने पैसे हैं उसके पास? ऊपर से आदेश है, इसलिए पूछ रहा हूं। पूछ रहा हूं, मतलब तुमको बताना है। हमारी ड्यूटी है आज से, हम जिस से, जो भी सवाल- जवाब करना चाहें, कर सकते हैं, चेकिंग कर सकते हैं। हम जहां चाहें, जाने दें, जहां, जब चाहें, रोक दें। अंदर कर दें और अंदर से जब चाहें, तब ऊपर कर दें। ऐसा तो कोई कानून नहीं है।


कानून क्या होता है? ये अदालत में बहस करने की चीज़ कभी हुआ करती थी मगर ऐसा कल तक होता था। अब हमीं अदालत हैं। हम जो बताएं,वही कानून है। संसद-विधानसभा, अदालत सब हमीं हैं। अब समझ में आया? आया हो तो बताओ, कितने पैसे साथ लेकर जा रहे हो और ये पैसे कब और कहां से आए? मैं नहीं बताता, नहीं बताता, नहीं बताता। मैं स्वतंत्र देश का स्वतंत्र नागरिक हूं।

स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक,  उधर  पुलिस वैन खड़ी है, उसमें बैठ जा। थाने में तुझे बता देंगे, तू कितना स्वतंत्र है और कितना स्वतंत्र नागरिक है? तू अब उसमें बैठ ही जा। बहुत सिर खा लिया। अभी तेरी बहस करने की आदत गई नहीं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र हमारे डीएनए में है और तूने मान लिया कि वाकई है। लोकतंत्र उनकी और हमारी जेब में है और एक दिन देखना, वे भी हमारी जेब में होंगे। जा उधर बैठ। देर मत कर। ले जा भई इस 'स्वतंत्र देश 'के 'स्वतंत्र नागरिक ' को। और सुन, पूछ लेना इनसे। बुड्ढे आदमी हैं, अंदर रहना पसंद करेंगे या सीधे ऊपर जाना। इसके फायदे- नुकसान भी बताना देना और फैसला इन पर छोड़ देना। जबर्दस्ती मत करना। जाओ बाबाजी, जाओ। जय हिंद ,जय भारत।  जाओ, आपको भी देर हो रही है, मुझे भी।

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