विष्णु नागर का व्यंग्य: ये नफरती 'न्यू इंडिया' नहीं, सबके बराबरी का भारत है, अब तुम जाओ, अपना रास्ता नापो!

ये ओछे-घटिया लोगों का देश नहीं है। ये मुसहरों से लेकर मुसलमानों तक का देश है। हिंदुओं से लेकर सिखों, ईसाइयों, पारसियों का देश है। ये सबका बराबरी का भारत है।

फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

 2022  पुराना पड़ गया। गया। नया साल आ गया। फिर 2023 भी चला जाएगा। रुक ही नहीं सकता, जाएगा ही जाएगा। ये भी पुराना पड़ जाएगा। फिर 2024 आएगा। फिर उसका अगला, फिर अगला, फिर अगला। नया साल आएगा, मनाया जाएगा। फिर वही होगा, फिर वही। खैर जी, चिंता छोड़ो। मुबारक हो जी, हर बार का हर नया साल। आइए इस साल सबको मुबारकबाद दें और लें। कुछ लोगों को तो मुबारकबाद शब्द से भी दिक्कत हो सकती है तो जी वे, मुबारकबाद वापस करें, शुभकामनाएं लें। और जी किसी को दोनों से परेशानी हो तो अपने पास हैप्पी न्यू ईयर देने को भी है। जो चाहो ले लो। अपने को सब देना और सब लेना आता है।आज के दिन किसी से कोई झगड़ा- झंझट नहीं मांगता। जो मांगता है, लो, जो देना हो, दो। नहीं देना है,न दो। नहीं लेना है, न लो। जो दे, उसका भी भला। जो न दे, उसका भी भला।

अब जी बहुत से लोग नये साल के नये संकल्प लेते हैं। लो जी, जरूर लो। अपने को ये सब जमता नहीं। अपन ने तो जी, 2021, 2022 में भी कोई संकल्प नहीं लिया था, न इस साल लेंगे।जैसे 2022 में थे, वैसे ही 2023 में भी रहनेवाले हैं। जब तक हैं, ऐसे ही रहेंगे। 

खैर हमारी बात छोड़ो। 125- 130 करोड़ आबादी में हम तो एक भुनगे हैं। हमारी बात क्या! लेकिन जो भुनगे नहीं हैं, मतलब जो समझते हैं हम खुदा हैं, इस देश का नसीब लिख रहे हैं, पचास साल राज करने आए हैं, वे क्या नये साल में कुछ नया करनेवाले हैं? कुछ नहीं करेंगे। वही करेंगे, जो करते आए हैं। नफ़रत की मिकदार बढ़ाते जाएंगे । पड़ोसी, पड़ोसी में अभी भी कुछ भरोसा बचा होगा तो उसे भी नष्ट करेंगे। बुलडोजर चलाएंगे और जोर-शोर से चलाएंगे।364 दिन की बजाय 365 दिन भी चलाएंगे। जो घर बचे हैं, जो लोग सुरक्षित हैं, इनकी निगाह उन पर भी है। मैं हिन्दू या मुसलमान नहीं कह रहा, हमसब भारत के नागरिक हैं, एक मां की संतान हैं। हमारी एक ही विरासत है। बुलडोजर इनकी विरासत है, हमारी नहीं।


तो सारी शुभकामनाओं, मुबारकबाद, हैप्पी न्यू ईयर के बीच इस बात का भी खयाल रखिए। उम्मीद है कि भारत जोड़ो यात्रा जारी रहने दी जाएगी। उम्मीद की इस हल्की सी किरण से भी इन्हें बहुत परेशानी है। ये कायरों में कायरतम लोग हैं। ये हर बात से डरते हैं। इनका तो बस नहीं चलता वरना ये सूरज  और चांद की रोशनी भी अपने पास रख लें। फिर उसका अपने हिसाब से, जाति-धर्म में बंटवारा करें। कुछ तक कभी न इसे पहुंचने दें। और कुछ को चौबीस घंटे दें। सूरज को सूरज न कहने दें, चांद को चांद। एक देश, एक भाषा, एक धर्म, एक चुनाव, एक मूर्खता की नीति पर चलते हुए ये डिक्शनरी में सूरज और चांद के सभी पर्यायवाची शब्द हटवा दें। केवल एक रहने दें-सूर्य और चंद्रमा। अध्यादेश जारी कर दें कि हिंदी ही नहीं तमिल, तेलुगू, ओड़िया, बांग्ला किसी में इसके अलावा कोई और शब्द इस्तेमाल नहीं होगा। रवीन्द्रनाथ टैगोर और  प्रेमचंद  ने भी कोई और शब्द किसी रचना में इस्तेमाल किया हो तो उसे भी बदलवा दें! दुष्टों का भी दुनिया पर पूरा बस नहीं चलता, इसलिए अंततः ये भी बेचारे हैं!

हां आज के दिन मुझे ऐसी बात नहीं करना चाहिए। क्षमा कीजिए। आपमें से कुछ ने नये साल के स्वागत में कुछ पी भी होगी, गाने गाए होंगे। हुड़दंग मचाया होगा, मस्ती छानी होगी। कल रात के बारह बजे और उसके बाद परस्पर हैप्पी न्यू ईयर दिया होगा, हैप्पी न्यू ईयर लिया होगा और सुबह यह पढ़कर आपके मुंह से मेरे लिए विशुद्ध गालियां निकलें। मैं यह चाहता तो नहीं मगर कोई बात नहीं, प्रेमपूर्वक दीजिए या चाहें तो इसे अधबीच में पढ़ना बंद कर दीजिए। मन करे तो मुझे ब्लाक कर दीजिए। और ये भी कर सकते हैं कि इसे कल या परसों या जब भी मन हो,  पढ़िए। तब शायद इतना बुरा न लगे। तब नये साल का खुमार उतर चुका होगा। होश आ चुका होगा।


हां उम्मीद तो मैं भी रखता हूं मगर मेरी नजर निराशाओं-हताशाओं पर भी बराबर जाती है। थोड़ी सी तो शायद 31 की रात मैं भी पी लूं। थोड़ा सा तो माडर्न मैं भी हूं। थोड़ा सा तो लीक पर चलनेवाला मैं भी हूं। हां उम्मीद मुझे भी है। 2024 में ही क्यों 2023 में भी नया बहुत कुछ हो सकता है और होगा। जो भी होगा, इससे बेहतर होगा। सौ प्रतिशत नहीं, बीस प्रतिशत-तीस प्रतिशत पर तब भी बहुत सावधानी और सतर्कता की जरूरत है। ये सत्ता के लिए कुछ भी कर सकते हैं। ये सत्ता के बगैर अब जी नहीं सकते। सब खत्म हो जाए तो भी इन्हें चिंता नहीं मगर हर हाल में सत्ता इनके पास रहना चाहिए। ये 2014 के पहलेवाले सत्ताधारी नहीं हैं। ये अलग कौम, अलग नस्ल के लोग हैं। इन जैसे अभी तक हुए नहीं हैं।

ये लोकतंत्र, चुनाव, संसद, अदालत किसी की परवाह नहीं करते। ये चुनाव जरूर लड़ते हैं, लड़ाते हैं। चुनाव में जीतने को लोकतंत्र समझते हैं मगर लोगों की फिर भी ये परवाह नहीं करते।इनकी लोगों की परवाह करने की लक्ष्मण रेखा पांच किलो अनाज है, जिसके बदले मोदी जी को धन्यवाद भी चाहिए और वोट भी।

लोगों को इन्हें सिखाना होगा कि ये भारत है और 2023 का भारत है‌। ये किसी की बपौती नहीं है। ये एक- एक हिंदुस्तानी का भारत है,एक -एक का। एक-एक बच्चे का, एक-एक-औरत, एक -एक मर्द का। एक- एक मेहनतकश का, एक- एक किसान का, एक-एक खेत मजदूर का, एक-एक छोटे छोटे दुकानदार और नौकरीपेशा का। एक-एक आदिवासी का।

ये ओछे-घटिया लोगों का देश नहीं है। ये मुसहरों से लेकर मुसलमानों तक का देश है। हिंदुओं से लेकर सिखों, ईसाइयों, पारसियों का देश है। ये सबका बराबरी का भारत है। ये न कभी भाजपाइयों का था, न कांग्रेसियों का। ये न किसी का कम रहा है, न किसी का ज्यादा। ये तुम्हारा नफरती 'न्यू इंडिया' नहीं है। ये हम सब का भारत है और रहेगा। बहुत हो चुका। बहुत सह लिया तुम्हें। अब तुम जाओ, अपना रास्ता नापो। हमारा नमस्कार और प्रणाम स्वीकार करो।

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