विष्णु नागर का व्यंग्य: भारत में सबका अपना-अपना 'लोकतंत्र', ताकतवर का अलग, कमजोर का अलग, अमीर का अलग, गरीब का अलग!

यहां किसी को 'लोकतंत्र 'से वंचित नहीं किया जाता। सब अपने-अपने क्षेत्र में अपना-अपना विकास करने के लिए स्वतंत्र हैं। पढ़ें विष्णु नागर का व्यंग्य।

फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

भारत में लोकतंत्र है? बिलकुल है जी। यहां तो फुलम्मफुल 'लोकतंत्र' है, बल्कि 'लोकतंत्र ही लोकतंत्र' है, बाकी तो कुछ है नहीं। और सबसे बड़ी बात, सबका अपना-अपना 'लोकतंत्र' है! जो जितना ताकतवर, जितना अमीर, उसका उतना ही अधिक 'लोकतंत्र'! जो जितना छोटा, उसका उतना ही कम 'लोकतंत्र' बल्कि उसके छोटे होने से भी ज्यादा छोटा 'लोकतंत्र'। ज्यादा लोकतंत्र वह बेचारा ढो भी नहीं सकता! उसे वोट डालने की जितनी छूट है, भूखे रहने की उससे भी अधिक छूट दी गई है। बेरोजगारी की, धक्के और लातें खाने की, धूल में मिल जाने की तो 101 प्रतिशत छूट है। उसके बच्चे बीमारी से, भूख से रोते रहें दिनभर-रातभर, तड़पते रहें, मर जाएं, छूट ही छूट है। और कोई सरकार इससे अधिक क्या छूट दे सकती है? और कितना 'लोकतंत्र' दे सकती है? इतना 'लोकतंत्र' तो विकसित से विकसित लोकतंत्रों  में भी नहीं पाया जाता!

सरकार का कोई आदमी कभी भी इस स्वतंत्रता में बाधा नहीं डालेगा, ये हमारे आका की गारंटी है बल्कि जितनी उससे हो सकेगी, उससे भी अधिक मदद वह करेगा। और गलती से, ऊपर के आदेशों की अवहेलना करते हुए अगर कोई दिक्कत करे तो हेल्पलाइन नंबर 420 पर फोन करें। उसे ठीक कर दिया जाएगा। किसी को हंसने से, दहाड़ने से रोका नहीं जा सकता तो किसी को रोने- बिलखने से भी रोकना नियम विरुद्ध है। चाहे बच्चों के साथ बड़े भी रोने लगें! रो- रोकर चाहें तो मर-खप जाएं! आकाजी ने  छूट दी है तो पूरी दी है। कोई माई का लाल उसमें कटौती नहीं कर सकता।


यहां किसी को 'लोकतंत्र 'से वंचित नहीं किया जाता। सब अपने-अपने क्षेत्र में अपना-अपना विकास करने के लिए स्वतंत्र हैं। भूखे, भूख का विकास करें, अमीर, अमीरी का विकास करें। सरकार सबकी मदद करने के लिए तत्पर है। पहले आका जी दिन में सोलह घंटे काम करते थे। अब चौबीस घंटे काम करते हैं। कभी भी फोन करिए, आका जी स्वयं उठाएंगे क्योंकि वे कहीं से भी महज एक टेलीफोन की दूरी पर हैं। फौरन लपक कर आएंगे। जैसे द्रौपदी की लाज बचाने किशन जी आए थे।

यहां तो जी, चूहे का भी अपना लोकतंत्र है और बिल्ली का भी अपना। बिल्ली, चूहे को खाने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है तो चूहा भी बिल्ली को खाने के लिए उतना ही  स्वतंत्र है। अब यह चूहे की क्षमता पर निर्भर करता है कि वह बिल्ली को खा सकता है या नहीं? चबा- चबाकर खाना चाहता है या एक ही बार में निगलना चाहता है ।हलाल करके खाना चाहता है या झटका करके, उसे छूट है। मगर खा न सके, डर जाए, बिल्ली ही उसे खाने लग जाए तो इसकी शिकायत भी न करे क्योंकि यह 'लोकतंत्र' की भावना के विरुद्ध है।

और गरीब में क्षमता हो तो वह अमीर को कच्चा चबा ले। उसे भी इसकी छूट है। और ध्यान रहे, न चूहे की शिकायत सुनी जाएगी, न बिल्ली की। बिल्ली को यह कहने का अधिकार नहीं कि मेरे साथ यह अन्याय है। अब स्थिति यह आ गई है कि चूहा मुझे निगलेगा! और न गरीब की शिकायत सुनी जाएगी, न अमीर की। जब सबको लोकतांत्रिक स्वतंत्रता दी गई है तो शिकायत कैसी? आपने सुनी होगी न, वह कहानी कि एक चींटी भी हाथी की चीं बुलवा सकती है तो चूहा भी चाहे तो बिल्ली को चीं बुलवा ले! 'लोकतंत्र' में अनंत संभावनाएं हैं।

यहां तो कोरोना भी तब आया था, जब उसे विश्वास हो गया था कि उसे आकाजी यहां फलने-फूलने की पूरी गारंटी देंगे। आक्सीजन की कमी से लोगों को मरने की भी संपूर्ण स्वतंत्रता देंगे। किसान भी इसीलिए आंदोलन करने को तैयार हुए कि उन्हें आतंकवादी, नक्सली, खालिस्तानी, देशद्रोही, पाकिस्तानी कहने वाले इस दुनिया में हैं।

आकाजी ने कभी किसी को किसी बात से नहीं रोका। कोरोना तक को  नहीं रोका। आओ भाई, तुम भी आओ। अतिथि देवो भव:। महंगाई को नहीं रोका। उसका भी स्वागत किया। उन्होंने तो प्याज और टमाटर जैसी मामूली चीजों को भी खूब सस्ते से खूब महंगा होने का सम्मान दिया, इतना महंगा होने का कि अच्छे-अच्छों के छक्के छूट गए। छूटे तो छूटे, आकाजी किसी की स्वतंत्रता को रोकते नहीं। सरकार में हैं, इस दंभ में रोज किसी की स्वतंत्रता छीनें, यह उनसे कभी नहीं हो सकता। वह' पक्के लोकतांत्रिक' हैं।


और जहां तक राजनीति की बात है, उनकी 'न्यायप्रियता' देखिए, उन्होंने विपक्ष को नहीं रोका कि वह संसद की सुरक्षा का सवाल उठाए तो गृहमंत्री को भी आजादी दी कि वह इस सवाल का जवाब न दें। यही नहीं, आकाजी ने 146 विपक्षी सांसदों को पूरे सत्र के लिए निष्कासित करने की लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति को स्वतंत्रता दी! यही लोकतंत्र है! सब आजाद हैं। विधानसभाओं में विपक्ष दलों की सरकारों को जो चाहे विधेयक पारित करने की स्वतंत्रता है तो राज्यपालों को इन्हें रोकने की स्वतंत्रता भी है। अदालतों को सरकार की हां में हां मिलाने का पूरा अधिकार है तो आकाजी को जजों की नियुक्ति में अड़ंगा डालने की भी पूरी आजादी भी ‌है। दरअसल जिस देश की सरकार विपक्ष से, उसके विरुद्ध बोलने वालों से आजाद नहीं, वह सरकार, सरकार नहीं। वह 'लोकतंत्र, लोकतंत्र'  नहीं। वह तानाशाही है, फासीवाद है और आकाजी इस देश में तानाशाही न लाने के लिए पूरी तरह  प्रतिबद्ध हैं। आज इसीलिए दुनिया अमेरिका और चीन की ओर नहीं, भारत की ओर देख रही है और देखे ही जा रही है। मान ही नहीं रही है। रुक ही नहीं रही है! आकाजी कहते हैं कि दूसरों की ओर भी देख लिया करो मगर नहीं, उन्हें तो भारत की ओर ही देखना है, देखो। आज अमेरिका और कनाडा तक आज केवल भारत की ओर ही देख रहे हैं। ऐसा आकर्षण भारत में। देखो, हमारा क्या दोष? देखो और देखते रहो। थक जाओ तो बता देना!

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