विष्णु नागर का व्यंग्य: भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए प्रधानमंत्री जी दिन रात कर रहे मेहनत, यकीन नहीं?
में देख रिया हूं कि प्रधानमंत्री जी, उनके मंत्री तो 2047 में भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में दिन-रात लगेई रेते हैं, पन अब उनने राष्ट्रपति जी और उपराष्ट्रपति जी को बी इस काम पे लगा दिया हे। पढ़ें विष्णु नागर का व्यंग्य!
![फोटो: सोशल मीडिया](https://media.assettype.com/navjivanindia%2F2023-07%2Fe51600c1-4939-4fa3-8027-0e1be01258ab%2F_114403409_modi.jpg?rect=0%2C0%2C640%2C360&auto=format%2Ccompress&fmt=webp)
मेर को यार ये समझ में नी आ रिया कि मेरा भारत महान, 2047 में क्यों, आज और अब्बी का अब्बी क्यों नी, विकसित राष्ट्र बन सकता? प्राबलम क्या हे? मेर को तो कोइ नी लग री हे। आज मतलब में आज, 12 नोबंर, 2023 को, मतलब दीपावली के शुभ मुहूर्त के दिन ये बात में चाता हूं। इसके भोत फायदे हें। एक तो मेरे जैसे 70 के ऊपर के या उसके आसपास के जीत्ते भी लोग हें नी, ऊपर जाने से पेले अपनी आंख से देश को विकसित राष्ट्र बनता हुआ देख लेंगे तो अपने को संतोस रेगा कि यार अपनी जिनगी सार्थक हुइ। ये बी हो सकता हे, तब मेरे सरके लोग ऊपर जाने से मना कर दें कि अपन को नी जाना! तुम हमपे अब जबरदस्ती नी कर सकते, हम अब एरेगेरे नी रिये, विकसित राष्ट् के नागरिक हें। क्या समजे? इसका पूरा मजा ले के, जब जाना होगा, तब जायंगे! पेले नी जायेंगे। भोत से लोग दुखी होयंगे कि यार ये बुड्डा अबी तक यईं का यईं हे, मरता ज नी साला। अब ये बताव भईसाब अपन इनका दुख देखें कि अपना सुख? सब अपना- अपना सुख देखते हें, तो अपन बी देखें तो क्या बुरई हे? पर ये भी सुन लो, परिवारजनो कि अगर ये विकसित राष्ट्र, गुजरात माडल वाला फोक्टिया टाइप बना तो अपनी ये गेरंटी हे कि अपन बिना देर किए, फटाकदनी से उप्पर चले जायंगे। देर नी करेंगे। अपने को चोराये पे फांसी देने का कष्ट किसि को नी करना पड़ेगा। क्या केते हो आप? गलत के रिया हूं क्या?
दूसरों की तकलीप अपन से देखी नी जाती! आप ये मत समझना कि में फर्जी गेरंटी दे रिया हूं, ये विष्णु नागर की गेरंटी हे। एकदम पक्की, मालवी गेरंटी। पेले इस्तेमाल करें, फिर बिस्वास करें जेसी एकदम हंड्रेड परसेंट गेरंटी। उस बिस्कुट के जेसी, जिसे मेंने आज तक चखा बी नी।
में स्वारथी हूं, ये तो में खुद के रिया हुं दादा मगर इतना जास्ती बी नी कि दूसरों की बिल्कुल सोचूंज नी। में देख रिया हूं कि प्रधानमंत्री जी, उनके मंत्री तो 2047 में भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में दिन-रात लगेई रेते हैं, पन अब उनने राष्ट्रपति जी और उपराष्ट्रपति जी को बी इस काम पे लगा दिया हे। उनको तो बकस देते? मैं तो चाता हूं कि रोज-रोज का सबका कष्ट मिट जाय ओर भारत आज नी तो कल और कल नी तो परसूं और परसूं बी नी तो अप्रेल, 2024 तक तो विकसित राष्ट्र बन ई जाय! अरे उनको मोका भी तो मिलना चय्ये नी कि देखो हम कित्ते होसियार हें कि 2047 में जो करने का पलान किया था, हमने उसको 2024 मेंई कर दिखाया, इस नाम पे नरे वोट मिल जायंगे। ओर विकसित राष्ट्र बनाने के लिए कोई खास तकलीप नी करना हे। बस केना सुरू कर दो, भारत विकसित राष्ट्र बन गया। टीवी, रेडियो पे रोज सो बार विज्ञापन दो, बन गया हिन्दू राष्ट्र, भोत इजी है। हिंग लगे नी फिटकरी, रंग चोखो आय!
एक ओर बात हे। ये तो मेर से लिखवा के ले लो कि अगर इनने 2047 का इंतजार किया तो ये समझ लो कि भारत की जनता भोली-भाली हे, पन इत्ती बेवकूफ बी नी हे कि 2047 तक आज के इन तीस, चालीस, पचास मार खांओं को सिर पे बेठा के रखेगी! इनको गुड़का केइ रेगी।इनका कल्याण करकेज मानेगी,चाय जित्ता दम लगा के ये देख लें! तो ये बात जानते- बूजते भी 2047 का इंतजार क्यों करना? केते हें नी कि तुरत दान, महाकल्यान! आज जो बनाना हे, तुमको बना दो और छुट्टी पाव। वेसे भी इनकी उमर हो गई हे। इनके भी घुटने अब दुखने लगे हें, सांस फूलने लगे हें। किसी तरह बेचारे शो मेनेज कर रिये हें। इसलिए अच्छा है, जो करना है, अबी कर लें। असली नी तो फरजी ई सइ मगर करें तो! वैसे बी ये पचास काम फरजी करते हें, एक ओर सइ! क्या फरक पड़ता हे!
पन इनके सामने मुस्किल बी तो हे। अबी तो बेचारी गरीब ईडी का काम बहुत बच रिया हे। रोज बेचारे अधिकारी होन पूजा-पाठ छोड़के मुं अंदेरे माय से काम में लग जाते हें मगर काम इत्ता जास्ती हे कि इस जनम में तो पूरा होता नि दिखता। ये तो अनएंडिंग सीरियल टेप हे। दस-बीस साल तो ये चलेगाई-चलेगा ओर तब तक राज इनका रेगा बी नी। इनकी एक मुस्किल ये हे। दूसरी ये हे कि आझादी 1947 में नी मिलि, ये लेटेस्ट खोज हे इनकी। अब्बी जुम्मा - जुम्मा नो साल पेले यानी 2014 में तो आझादी अइ हे इनकी वाली। इत्ती जल्दी भारत को इनने विकसित राष्ट्र बना दिया तो फिर आगे कुछ करने- धरने को रेगा नी। विकास की चिड़िया फुर्र हो जायगी तो बचेगा क्या? मंदिर का कोई भरोसा नी। काम आय नी आय। ओर अबी तो 80 करोड़ को हर मेने पांच किलो अनाज बी तो देना हे! अबी तो लाभार्थी होन का आंकड़ा अस्सी करोड़ से सौ करोड़ तक पोंचाना हे। अबी तो ओर उन्नति- प्रगति करना हे नी!
अबी से केसे बना दें ये विकसित राष्ट्र? घाटे का सोदा क्यों करें? जिनके खून में बेपार होता हे, वे घाटे का सौदा नी करते भई साब, वो करते हैं जे, नी फिर श्री ने बाद में राम! क्या केते हो?
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