विष्णु नागर का व्यंग: नींबू की आसमान छूती कीमतों ने किया मन खट्टा, परेशान हों, मोदी जी घर-घर नींबू पहुंचाने खुद आएंगे!

शर्म करो कुछ। मोदी जी से सीखो , जो आजकल उपवास कर रहे हैं। उनकी जान तो नींबू में अटकी हुई नहीं है और तुम बेशर्मी सै नींबू-नींबू कर रहे हो! अरे ये वैश्विक संकट गुजर जाने दो, मोदी जी घर-घर नींबू पहुँचाने खुद आएंगे।

फोटो: Getty Images
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विष्णु नागर

महंगाई-महंगाई की चें-चें, पें-पें से मेरा तो अब सिर घूमने लगा है। इधर पेट्रोल-डीजल-गैस की महंगाई का रोना चल ही रहा था कि उधर दवाइयों, सब्जियों, फलों और यहां तक कि नींबू की महंगाई का रोना भी शुरू हो गया है। कहने लगे हैं लोग कि दवाई तो दवाई, साहब मोदी राज में तो नींबू तक तीन-चार सौ रुपये किलो हो गया है। ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ था। एक मित्र ने कहा कि पहले मैं चाय में एक नींबू निचोड़ता था, आज आधा ही निचोड़ा। एक ने कहा, मैंने गुस्से में दो नींबू निचोड़़ डाले। अब अफसोस हो रहा है कि हाय ये मैंने क्या कर दिया!

पहली बात समझने कि यह है कि इस वैश्विक संकट के समय नींबू खाना ही क्यों? सच तो यह है कि रोटी भी खाना क्यों? उधर यूक्रेन में निर्दोष नागरिक मारे जा रहे हैं और तुमको हाय नींबू, हाय नींबू सूझ रहा है! शर्म करो कुछ। मोदी जी से सीखो , जो आजकल उपवास कर रहे हैं। उनकी जान तो नींबू में अटकी हुई नहीं है और तुम बेशर्मी सै नींबू-नींबू कर रहे हो! अरे ये वैश्विक संकट गुजर जाने दो, मोदी जी घर-घर नींबू पहुँचाने खुद आएंगे। रोटी मत खाना, फिर नींबू ही खाते रहना! ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर सब उसी का करना! अब तो खुश?


मेरा नींबू प्रेमियो से सीधा सवाल है कि तुमसे किसने कहा था कि नींबू की चाय पिया करो?मोदी जी ने कहा था ? तुमने नींबू की आदत डालने से पहले मोदी जी से एक बार भी पूछा था ? पूछते कुछ हो नहीं, अपने मन की करते रहते हो और फिर शिकायत करने बैठ जाते हो! मोदी जी सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि मैं सिर्फ़ एक टेलीफोन की दूरी पर हूँ। उनको टेलीफोन करोगे नहीं,देश को बदनाम करना शुरू कर दोगे कि बताइए नींबू तो आयात नहीं हो रहा,फिर भी देश की जनता नींबू के लिए तरस रही है। बताओ, यह देशद्रोह नहीं है तो और क्या है?

वैसे मैं तो चाय में नींबू निचोड़ता ही नहीं। मैंने पहले ही मोदी जी को फोन करके पूछ लिया था कि बताइए रूस-यूक्रेन संकट के समय मुझे क्या-क्या त्याग करना चाहिए? गाड़ी में पेट्रोल भरवाऊं या नहीं? उन्होंने मुझे कसकर डाँटा। कहा तुम्हारी और मेरी उम्र लगभग बराबर है मगर अकल तुम्हें आज तक नहीं आई! तुम्हें खुद ही समझ लेना चाहिए था कि नहीं भरवाना है। दवाइयां महंगी हो जाएंगी, ये भी अभी नहीं खाना है। बाद में सारी एकसाथ खा लेना। और सुनो, आज से बता रहा हूँ तुम्हें मगर सबको बताना मत कि नींबू भी बहुत महंगा होनेवाला है। जितने खरीद सकते हो अभी खरीद लो। दिन में जितने नींबू जिसमें भी निचोड़़ लो। मजे कर लो। ये खत्म हो जाएं तो नींबू को भूल जाना। नींबू की चाय पीते हो तो समय रहते छोड़ देना। बाद में कष्ट नहीं होगा। हाँ याद आया, तुम तो किसान आंदोलन के बड़े समर्थक बनते थे न, तो नींबू खरीदते रहो। नींबू की कीमत बढ़ेगी तो किसान का ही फायदा होगा। करवाओ, उनका फायदा। अब दो, किसानों के असली हितचिंतक होने की परीक्षा दोगे? और सुन लो, मुझे ये रोज-रोज की शिकवा शिकायत पसंद नहीं। उनका अगला वाक्य अंग्रेजी में था। आई एम अगेंस्ट इट। यू अंडरस्टैंड? आखिरी वाक्य से मैं समझ गया कि बात जेनुइन है और मैंने अपने प्राण के अलावा सब छोड़ दिया। भाड़ में जाएँ किसान। मैंने क्या उनका ठेका ले रखा है? मैंने तो दवाई लेना तक छोड़ दिया है। सोचा एक न एक दिन तो मरना ही है। कुछ जल्दी मर जाऊंगा तो देश का घाटा नहीं हो जाएगा। देश प्रथम है, व्यक्ति नहीं।


और मोदी जी के बारे में आपके जो भी विचार हों मगर एक बात पक्की है कि वह बहुत उदार हृदय हैं। मैं उन्हें वोट नहीं देता, न दूँगा, ये बात वो जानते भी थे और मैंने उन्हें साफ बता भी दी।उन्होंने कहा, तुम भारतीय तो हो न? इतना काफी है। यह बताने के बाद भी मुझे वह सही सलाह दे सकते हैं तो आपको क्यों नहीं देंगे? वह तो पुतिन और जेलेंस्की को भी सही सलाह देते हैं। करो टेलीफोन अभी। उनके नंबर पर फोन लगाने का पैसा नहीं लगता। करो फोन,करो न!

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