विष्णु नागर का व्यंग्य: एक था कैमराजीवी, कैमरे के बगैर दस मिनट जीना भी उसके लिए था मुश्किल!

जिस आक्सीजन के बगैर हम जी नहीं सकते, उसने सफलतापूर्वक यह प्रयोग करके दुनिया को दिखा दिया था कि उसके बगैर वह अच्छी तरह जी सकता है मगर कैमरे के बगैर दस मिनट जीना भी उसके लिए मुश्किल है।

फोटो: सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

किसी युग में एक कैमराजीवी हुआ करता था। इतिहास की पुस्तकों में उसका नाम ठीक-ठीक  नहीं मिलता मगर इतना अवश्य ज्ञात होता है कि उसके नाम के अंत में इन्द्र जैसा कोई शब्द था। सुरेन्द्र, धनेन्द्र, सत्येन्द्र, धर्मेन्द्र, वीरेन्द्र या नरेन्द्र टाइप कुछ। वैसे उसका सबसे प्रचलित नाम कैमराजीवी था। उस समय दुनिया में किसी से पूछने पर कि कैमराजीवी किस देश के, किस शहर के, किस पथ के, किस बंगले में रहता है, कोई भी मुस्कुराते या हंसते हुए बता देता था।बताते हैं कि असली नाम से पूछने पर उसके पड़ोसी तक कन्फ्यूजिया जाते थे। वैसे सच यह है कि उसका कोई पड़ोसी नहीं था। वह भी किसी का पड़ोसी नहीं था। वही अपना पड़ोसी, मित्र, पत्नी, भाई, बहन, बेटा, बेटी, चाचा, ताऊ, मां, पिता सबकुछ था। अपना पूर्वज भी वही था।

खैर। उसकी विशेषता यह थी कि कैमरे के बिना वह जी नहीं सकता था। कैमरा ही उसकी आक्सीजन था। उसकी रोटी, दाल, चावल, खिचड़ी, फाफड़ा  था। जिस आक्सीजन के बगैर हम जी नहीं सकते, उसने सफलतापूर्वक यह प्रयोग करके दुनिया को दिखा दिया था कि उसके बगैर वह अच्छी तरह जी सकता है मगर कैमरे के बगैर दस मिनट जीना भी उसके लिए मुश्किल है।

शुरू में सुबह वह बिस्तर से उठता ही तब था, जब कैमरा आन मिलता था। कैमरामेन के देर से आने की वजह से एक बार उसे दस मिनट तक बिस्तर में यूं ही पड़े रहना पड़ा। तब उसकी सांस ऊपर-नीचे होने लगी थी। अब गया, तब गया जैसा कुछ होने लगा था। खैर दस मिनट तक वह इस आक्सीजन के बगैर किसी तरह जिंदा रह गया। इसे वह प्रभु की विशेष कृपा मानता है और इसके लिए वह ईश्वर को धन्यवाद देना कभी नहीं भूलता। इधर वह दूसरों से कहता है, मुझे धन्यवाद दो। उधर वह ईश्वर को बिलानागा इतनी बार धन्यवाद दे चुका है कि बोर होकर ईश्वर ने उसके धन्यवाद को हमेशा के लिए ब्लाक कर दिया है।


एक दिन भगवान राम उसके सपने में मात्र यह बताने के लिए आए थे कि तू अपने प्रातः कालीन कर्मों को कैमरे में दर्ज मत करवाया कर। अच्छा नहीं लगता। यह सभ्यता के विरुद्ध है। मैं तुझे गारंटी देता हूं कि तू जब तक तैयार होकर ब्रेकफास्ट की टेबल तक नहीं पहुंच जाएगा, तुझे कुछ नहीं होगा। उसके बाद के एक मिनट की भी गारंटी नहीं। उसने यह सुन लिया। फिर उसे ख्याल आया कि वह कितनी बड़ी तोप है। उसने पूछ लिया- 'आपकी तारीफ? और यह भी बताएं कि आप मेरे सपने में किसकी इजाजत से आए हैं? आपने जो किया है, यह प्रोटोकॉल के खिलाफ है‌। इससे मेरी सुरक्षा खतरे में पड़ सकती थी।'

खैर उन्होंने बताया कि मैं फलां-फलां हूं। तब उसने पूछा- आपके पास अपना आधार कार्ड तो होगा। दिखाइए प्लीज़ वरना मैं कैसे मान लूं कि आप भगवान राम हैं? मेरे सपने में तो मेरे स्वर्गीय पिताश्री भी आते हैं तो अपना आधार कार्ड साथ लेकर आते हैं और मुझे दिखाते हैं। आप ब्रह्मा, विष्णु, महेश हों तो भी आपको मेरे सपने में आने के लिए थ्रू प्राप्त चैनल आना होगा। अपना आधार कार्ड दिखाना होगा। सेक्युरिटी क्लीयरेंस लेना होगा। जाइए अब जल्दी भागिए यहां से।मेरी सेक्युरिटी को पता चल गया तो आपकी खैर नहीं। मैं आपको अब एक मिनट भी इंटरटेन नहीं कर सकता मगर कैमराजीवी की पश्चात बुद्धि ने चमत्कार दिखाया। उसने उसी सुबह से दैनिक कर्मों को कैमरे की नजर से बाहर करवा दिया।


कैमरा इससे दुखी बहुत हुआ। कैमराजीवी ने कैमरे से कहा कि भाई, दुखी तो मैं भी हूं  मगर लगता है कि सपने में स्वयं जयश्री राम आए थे‌। उनकी सलाह को न मानना मैं अफोर्ड नहीं कर सकता। फिर भी तुम्हें इस वजह से जो आत्मिक कष्ट हुआ है,उसके लिए मैं क्षमा मांगता हूं।

बताते हैं जीवन में उसने पहली और आखिरी बार किसी से माफी मांगी थी। उपलब्ध जानकारी के अनुसार कैमरे से माफी मांगनेवाला वह दुनिया का पहला और अभी तक का आखिरी इनसान है।

क्षमा मांगने पर कैमरे ने हृदय की उदारता का परिचय देते हुए कैमराजीवी के इस पहले अपराध को माफ कर दिया‌ मगर यह शर्त रखी कि आगे से ऐसी कोई अपराध क्षम्य नहीं होगा।कैमराजीवी ने भगवान की कसम खाकर कहा कि चाहे जो हो जाए, सपने में या प्रत्यक्ष प्रकट होकर ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी आ जाएं तो वह उनकी बात नहीं मानेगा। कैमरे को उसके वचनों पर विश्वास तो नहीं था क्योंकि छाती ठोककर दिए गए ऐसे वचनों को न निभाना उसका स्वभाव था मगर फिर भी कैमरा मान गया कि चलो, देखते हैं, होता क्या है।

कहते हैं कि कैमराजीवी ने जीवन में किसी एक से किया गया वचन निभाया तो वह केवल और केवल कैमरा था। आज भी उसकी इस वचनबद्धता को याद करते हुए लोगों की आंखों में आंसू आ जाते हैं। अब विवाह समारोहों में दूल्हा-दुल्हन से सात नहीं, आठ वचन लेने को कहा जाता है। उसमें एक वचन यह होता है कि जैसे कैमराजीवी ने कैमरे से आजीवन अपना वचन निभाया, उसी तरह हम भी परस्पर वचन निभाएंगे। इस वचन के बगैर हुआ विवाह अनैतिक और  अमान्य माना जाता है। 

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