‘थर्ड वर्ल्ड’ क्या बला और भारत इसमें है भी या नहीं?
अपने वर्ग में उत्कृष्ट होने की तो बात छोड़िए, आईएमएफ से भारत को ‘सी’ ग्रेड मिलता है और ज्यादातर विकास सूचकांक पर वह फिसड्डी साबित होता है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2025 में तो भारत की हालत ‘गंभीर’ बताई गई है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 27 नवंबर को ‘ट्रुथ सोशल’ पर घोषणा की कि वह ‘थर्ड वर्ल्ड’ देशों से माइग्रेशन रोक देंगे। यह ऐलान तब हुआ जब एक अफगान नागरिक ने पिछले दिनों वाशिंगटन में दो नेशनल गार्ड सैनिकों को गोली मार दी थी। खैर, इसके बाद से ही भारत में गरमागरम बहस छिड़ गई है कि क्या हम ‘तीसरी दुनिया’ के देश हैं और अगर हैं, तो क्या ट्रंप प्रशासन हमें भी निशाने पर रखेगा?
भारत का बहुत कुछ दांव पर है। वह लगातार सबसे ज्यादा एच-1बी वीजा हासिल करता रहा है और अमेरिका में सबसे ज्यादा छात्रों के मामलों में भी उसने हाल ही में चीन को पीछे छोड़ दिया है। अमेरिका की सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज का आकलन है कि 2023 में जारी किए गए 3.8 लाख एच-1बी वीजा में 72 फीसद भारतीयों को मिले जिनमें ज्यादातर ‘स्टेम’ (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथेमेटिक्स) क्षेत्र में नौकरियों के लिए थे, जहां उन्हें औसतन 1.18 लाख डॉलर सालाना वेतन मिलता है। हालांकि, एच-1बी नियमों में बदलाव करने वाली ट्रंप की नीति ने भारत पर पहले ही असर डालना शुरू कर दिया है।
नेशनल फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी ने बताया कि भारत की शीर्ष सात आईटी कंपनियों के वित्त वर्ष 2025 में नई नौकरी के लिए सिर्फ 4,573 एच-1बी आवेदन मंजूर हुए जो 2015 से 70 फीसद कम है और वित्त वर्ष 2024 की तुलना में 37 फीसद कम। इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एजुकेशन की ‘ओपन डोर्स 2024 रिपोर्ट’ कहती है कि शैक्षणिक वर्ष 2023-24 में अमेरिकी यूनिवर्सिटी में 3.31 लाख भारतीय छात्र थे, जबकि चीन के छात्रों की संख्या 2.77 लाख थी। उस साल अमेरिका में कुल 11 लाख विदेशी छात्र थे और इनमें 29.4 फीसद भारत से थे। 2025 की रिपोर्ट में विदेशी छात्रों की संख्या में बड़ी गिरावट रही लेकिन भारतीय छात्रों की संख्या बढ़कर 3.6 लाख हो गई।
बड़ी संख्या में भारतीय छात्र और एच-1बी धारक अमेरिका में ही बस जाते हैं। डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी के मुताबिक, 2022 में अमेरिका में 1.1 करोड़ गैर-कानूनी प्रवासी थे जिनमें 22 लाख भारतीय थे। इस बीच, अमेरिका ने बिना कागज रह रहे 15 लाख लोगों को वापस भेजने का फैसला किया जिनमें करीब 18,000 भारतीय थे। खैर, भारत के तीसरी दुनिया के देश के दर्जे पर उठते सवालों के बीच वस्तुस्थिति का आकलन करते हैं।
2025 के प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत को 180 देशों में 151वीं रैंक मिली है और उसे ‘बहुत गंभीर’ श्रेणी में रखा गया है। नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश भी हमसे ऊपर हैं। यह रैंकिंग मीडिया का मालिकाना हक कुछ हाथों में सिमट जाने, पत्रकारों को डराने-धमकाने के लिए देशद्रोह और मानहानि कानूनों के इस्तेमाल को दिखाती है।
-भारत के सबसे बड़े अंग्रेजी अखबार ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने सवाल उठाया, ‘क्या भारत एक थर्ड वर्ल्ड देश है?’ और बिना कोई वजह बताए इसका जवाब दिया- ‘बिल्कुल नहीं’। टाइम्स ने कहा कि ‘थर्ड वर्ल्ड’ शब्द शीत युद्ध के दौरान चलन में आया था, लेकिन अब इसका इस्तेमाल आमतौर पर ‘गरीब और कम विकसित देशों’ को संबोधित करने के लिए होता है और जाहिर है कि भारत वैसा तो नहीं रहा।’ लेकिन लेख में नहीं बताया गया कि कैसे। लेख में भारत के लिए अलग-अलग वर्गीकरण की बात की गईः विश्व बैंक के हिसाब से ‘निम्न आय’, संयुक्त राष्ट्र मानव विकास रिपोर्ट के मुताबिक, ‘मध्यम’ और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के नजरिये से ‘उभरता हुआ और विकासशील’।
सोशल मीडिया पर भी बीजेपी सरकार की तारीफ में कसीदे पढ़े गए कि उसने 2025 में भारत को दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया है, भारत ने 4.2 खरब डॉलर जीडीपी के साथ जापान को पीछे छोड़ दिया है और जीडीपी वृद्धि में अचानक बढ़ोतरी हुई है। एनएसओ (नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस) ने जुलाई-सितंबर में छह तिमाहियों की सबसे ज्यादा 8.2 फीसद की वृद्धि बताई, जो अप्रैल-जून में 7.8 फीसद थी। बीजेपी समर्थकों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बार-बार किए गए इस दावे पर खुशी जताई कि भारत की अर्थव्यवस्था तीन साल में 5 खरब डॉलर और 2030 तक 7 खरब डॉलर तक पहुंच जाएगी।
जीडीपी वृद्धि दर को लेकर मोदी सरकार के जुनून को शायद अनुमानित वृद्धि दर को किसी भी तरीके से, चाहे गणना के तरीके बदलना हो, डेटा में हेराफेरी हो या फिर ऐसे ही कोई और तिकड़म, ज्यादा दिखाने का जुनून कहना बेहतर होगा।
वित्त वर्ष 2026 की तीसरी तिमाही के लिए 8.2 फीसद जीडीपी वृद्धि का जो आंकड़ा सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने जारी किया, उसके कुछ ही दिन पहले, आईएमएफ ने 2025 की अपनी सालाना रिपोर्ट में भारत के लिए ‘सी’ ग्रेड बनाए रखा, जिससे पता चलता है कि मुद्रा कोष को दिए गए जीडीपी आंकड़े में ‘कुछ कमियां थीं जिससे उनकी पुष्टि नहीं हो सकी।’
जीडीपी वृद्धि पर सरकार की बातों को सही नहीं मानने वाले अर्थशास्त्रियों ने यह भी कहा है कि सही तस्वीर के लिए हमें प्रति व्यक्ति जीडीपी को देखना होगा, जो आय वितरण और जीवन स्तर में अंतर को दिखाता है। भारत, जिसकी प्रति व्यक्ति जीडीपी 2,820 डॉलर होने का अनुमान है, अभी मुद्रा कोष के अनुसार 136वें नंबर पर है, जो घाना, मंगोलिया, अंगोला, भूटान, ईरान, जिबूती, इंडोनेशिया, नामीबिया और यूक्रेन जैसे देशों से भी पीछे है। भारत में शीर्ष 1 फीसद लोगों के पास देश की लगभग 40 फीसद संपत्ति है और सबसे निचले 50 फीसद लोगों के पास सिर्फ 6.4 फीसद।
ज्यादातर भारतीयों के लिए, वेतन वृद्धि बढ़ती एग्जीक्यूटिव सैलरी से बहुत पीछे है। सीईओ स्तर के अधिकारी 2024 में 2019 के मुकाबले 50 फीसद ज्यादा ले गए। ‘हुरुन इंडिया रिच लिस्ट 2025’ के मुताबिक, एशिया के सबसे अमीर इंसान- मुंबई के मुकेश अंबानी- की पारिवारिक संपत्ति भारत की जीडीपी का करीब 8 फीसद है। एक अन्य स्रोत के मुताबिक, सभी 284 भारतीय अरबपतियों की कुल संपत्ति करीब 1.2 खरब है, जो देश की जीडीपी का करीब एक तिहाई है।
‘थर्ड वर्ल्ड’ देशों की 2025 की आबादी समीक्षा में 0.685 एचडीआई (ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स) वाले भारत को ‘विकासशील अर्थव्यवस्था’ और ‘निम्न आय देश’ के तौर पर वर्गीकृत किया गया है, जहां गरीबी रेखा का स्तर 4.2 डॉलर प्रति दिन है। एचडीआई के हिसाब से, भारत 193 देशों में 130वें नंबर पर है- ईरान, इराक, श्रीलंका, अल्बानिया और क्यूबा के भी नीचे। 2024 के यूएएनडीपी वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक के मुताबिक, भारत में बहुआयामी गरीबी में रहने वाले सबसे ज्यादा लोग हैं- 23.4 करोड़ या दुनिया के 1.1 अरब गरीबों का करीब एक चौथाई।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2025 में भारत की हालत ‘गंभीर’ बताई गई है। 123 देशों में उसका नंबर 102 और वह पाकिस्तान (94), बांग्लादेश (88) और श्रीलंका (66) से भी नीचे है। लगभग 80.6 करोड़ लोग जो भारत की 1.46 अरब की आबादी का 55 फीसद है- अभी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत अत्यधिक सब्सिडी वाले अनाज के हकदार हैं।
भारत में शिक्षा एक और बड़ी चुनौती है। भारत जीडीपी का सिर्फ 4.6 फीसद इस पर खर्च करता है जो 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति द्वारा सुझाए गए 6 फीसद के लक्ष्य से बहुत कम है और इस मामले में वह किर्गिस्तान, सेनेगल और बुर्किना फासो से भी पीछे है। ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में 11.7 लाख से ज्यादा बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं, जिससे यह सवाल उठता है: जब देश की 19.1 फीसद वयस्क आबादी अनपढ़ है, तो भारत वैश्विक टेक्नोलॉजी हब बनने का अपना मकसद कैसे पूरा कर पाएगा?
समाज और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में अपनी सरकार की जबरदस्त कामयाबी की तारीफ करते हुए मोदी ने एक बार कहा था, ‘मैं उस दिन का इंतजार कर रहा हूं जब अमेरिकी भारतीय वीजा के लिए लाइन में लगेंगे।’ यह उनके विदेश मंत्रालय ने ही 2023 में संसद को बताया था कि 2014-जिस साल मोदी ने पद संभाला- और जून 2023 के बीच रिकॉर्ड 13.8 लाख भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी।
लेकिन इन खराब रेटिंग्स का क्या मतलब है, अगर आप मीडिया में यह शोर मचा सकते हैं कि सब ठीक है?
(सरोश बाना, बिजनेस इंडिया, मुंबई के एग्जीक्यूटिव एडिटर हैं।)