खाद्य संकट की चुनौतियां से भुखमरी का दायरा गांवों, आदिवासी क्षेत्रों तक बढ़ने के आसार

कोरोना के कारण दूर दराज के अंचलों खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में जरूरी चीजों की आपूर्ति में बाधाओं का सीधा असर उन करोड़ों गरीब लोगों पर पड़ना आरंभ हो गया है जो 24 मार्च के लॉकडाउन के बाद किसी तरह सैकड़ों किलोमीटर चलकर अपने गांवों की ओर बदहवासी में भागने को विवश हुए थे।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया
user

उमाकांत लखेड़ा

कोरोना के कारण दूर दराज के अंचलों खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में जरूरी चीजों की आपूर्ति में बाधाओं का सीधा असर उन करोड़ों गरीब लोगों पर पड़ना आरंभ हो गया है जो 24 मार्च के लॉकडाउन के बाद किसी तरह सैकड़ों किलोमीटर चलकर अपने गांवों की ओर बदहवासी में भागने को विवश हुए थे। पिछड़े और आदिवासी क्षेत्रों से सैकड़ों ऐसे असंख्य परिवार भी गांवों में हैं, जो पहले से ही वहां आसपास मेहनत मजदूरी करके अपनी गुजरबसर करते थे उनमें से बड़ी तादाद में लोगों के भुखमरी के शिकार होने की सूचनाएं जुटने लगी हैं।

भूख से मरने वालों की सूचनाएं शहरों और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों से मिल रही हैं। मुंबई से लेकर देश के सभी औद्योगिक क्षेत्रों से लेकर बिहार के आरा और पूर्वी यूपी के कई हिस्सों से एक जैसी तस्वीरें दिख रही हैं। आर्थिक गतिविधियां एकदम ठप हो जाने से मुंबई की फैक्ट्री में मात्र 100 रुपए रोज और 1 हजार की विधवा पेंशन पर निर्भर मनीषा एक्का जैसे असंख्य, असहाय लोगों की सूची दिनों दिन लंबी हो रही है। कई क्षेत्रों तक तो मीडिया भी पहुंच नहीं पाया है। अंतर्राष्ट्रीय कार्यसमूह और लॉयर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने संयुक्त तौर पर किए गए एक ताजा सर्वेक्षण में पाया है कि देश के 10 आदिवासी आबादी वाले राज्यों में बड़ी तादाद में शहरों में काम करने वाले लोग रिवर्स पलायन कर गांव लौट रहे हैं। जेएनयू में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर जयति घोष ने आगाह किया है कि आदिवासी व पिछड़े गांवों में चूंकि स्वास्थ्य सेवाएं एकदम ठप हैं, ऐसी दशा में वायरस का विस्तार गांवों में फैला तो हालात भयावह हो सकते हैं।


लॉकडाउन के बाद सैकड़ों किलोमीटर चलने के बाद कई लोगों ने दुर्घटनाओं में जान गंवाने के अलावा रास्ते में भूखे प्यासे दम तोड़ दिया। बिहार के आरा शहर के जवाहर टोला टाउन में रोजगार छिनने से एक दिहाड़ी मजदूर के बेटे राहुल ने भूख से दम तोड़ा। स्थानीय पार्षद ने इसे भूख से हुई मौत की संज्ञा दी।

पिछले साल 2019 में ही भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 117 देशों की पांत में 102वें पायदान पर लुढ़क चुका था। यहां तक कि हम पड़ोसी पाकिस्तान, बंग्लादेश और नेपाल से भी पिछड़े हैं। संयुक्त राष्ट्र के तहत ग्लोबल फूड सिक्योरिटी ने हाल ही में भारत की इस चिंता को बढ़ा दिया है कि यदि खाद्य सुरक्षा प्रबंधन को ढंग से लागू नहीं किया गया तो पूरी दुनिया में अनाज का भीषण संकट खड़ा हो जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्युएचओ) के डायरेक्टर जनरल टेड्रोस अधानोम ने कहा है कि भारत जैसे देशों जिनके यहां मेडिकल सेवाएं बेहद कमजोर और लचर हैं, इसलिए सबसे ज्यादा खामियाजा बेरोजगारी से विस्थापित श्रमिकों को भुगतना पड़ सकता है। तमाम दावों के बावजूद भारत उन देशों की पांत में शामिल है, जिनके पास सामाजिक सुरक्षा तंत्र है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस महमारी के बाद जब देश के अग्रिम और विकसित देश भी महामारी की चपेट में बुरी तरह घिर गए हैं तो ऐसी दशा में दीर्घकाल तक उन लोगों में ज्यादा खतरा बढ़ेगा, जिनके शरीर में इस घातक रोग से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है। इस कड़ी में अधिक आबादी और खाद्यान्न के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहने वाले मुल्कों के लिए भीषण भुखमरी के हालात पैदा हो सकते हैं।

अन्न उत्पादन करने वाले कई अहम राज्यों से वृहद खाद्यान्न संकट के बाबत चिंताजनक रिपोर्टें मिल रही हैं। शहरी क्षेत्रों में तो यातायात की सुगमता के कारण सरकार और स्वयं सेवी संस्थाओं की सक्रियता के कारण भूखे प्यासे लोगों को सीमित मात्रा में राशन या खाने के पैकेट मिल रहे हैं लेकिन दूर दराज और पिछड़े क्षेत्रों में हालात खराब होने आरंभ हो गए हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में भी अनेकों परिवारों में भूख से मौतों की खबरें आनी आरंभ हो गई हैं। कई दिनों से भूखे परिवारों के लिए गांवों के लोग सहारा बने हैं। लेकिन ये हालात हर जगह नहीं हैं।

कई जगह दिहाड़ी मजदूर जो लॉकडाउन के बाद अपने गांव वापस न जाकर निर्माण या काम धंधे वाली जगहों पर ही रुकने को विवश हुए हैं, भूखे सोने को विवश हो रहे हैं। हरिद्वार से बिजनौर की ओर जाने वाले श्यामपुर थाने के गाजीवाली और कांगड़ी गांव में दर्जनों प्रवासी और स्थानीय मजदूरों के पास एक सप्ताह पूर्व जो थोड़ा बहुत राशन पानी था, वह खत्म हो चुका है। यह गांव हरिद्वार जिले में चंडीघाट पुल के पार है। कांगडी गांव के प्रधान राजेश कुमार के अनुसार इस पूरे क्षेत्र में लॉकडाउन के बाद काम ठप है। दिहाड़ी से रोज कमाकर खाने वाले मजदूरों के सामने भुखमरी के हालात हैं। इनमें से ज्यादातर लोगों के पास अंत्योदय कार्ड है। लेकिन सरकारी व्यवस्था के तहत उन्हें राशन नहीं मिल पा रहा। उन्हें शिकायत है कि चंडीघाट पुल के नीचे ही राशन बंट रहा है लेकिन उसके आगे रहने वालों की सुध नहीं ली गई।


खुद सरकारी एजेंसियां कोरोना के बाद देश में व्याप्त बेरोजगारी के एकाएक बढ़ते आंकड़ों से हतप्रभ हैं। केंद्र सरकार की सर्वोच्च संस्था सीएमआईई ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि लॉकडाउन के दौरान देश में बेरोजगारी की सकल दर बढ़कर 23.4 प्रतिशत हो गई। शहरों के आंकड़ा 30.9 फीसदी पहुंच चुका है।

कृषि विशेषज्ञ एम एस मनीक्कम कहते हैं किसान और खेती दोनों ही इस महामारी से इसलिए बचे हुए हैं क्योंकि दोनों ही प्रकृति और मवेशियों के करीब और अभिन्न तौर पर जुड़े हैं। सरकार को अगर देश को आने वाले दिनों में भुखमरी से बचाना है तो सबसे पहले उस 70 प्रतिशत आबादी की सुध लेनी होगी जिनके जिंदा रहने का आधार ही खेती और उससे जुड़े रोजगार हैं। कृषि के विस्तार के लिए वैसा ही राष्ट्रीय प्राधिकरण बने जैसे देश में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण बनाकर देश में राजमार्गों के निर्माण और विकास का काम युद्ध स्तर पर बीते वर्षो में हुआ।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia