इतनी नफरतें तो विभाजन के समय भी नहीं थीं : कुलदीप नैयर

कुलदीप नैयर से मुलाकात, एकयुग से मुलाकात करने जैसा अनुभव रहा है। कुलदीप नैयर मानते थे कि आज देश में जो नफरत का माहौल है, उतनी नफरत तो बंटवारे के समय भी नहीं थी। अभी पिछले साल ही उनसे मुलाकात के दौरान लंबी बातचीत हुई थी।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया

कुलदीप नैयर किसी परिचय के मोहताज नहीं। उनका जन्म गुलाम भारत में हुआ था लेकिन उन्होंने जिंदगी आजाद देश में गुजारी है। उन्होंने न सिर्फ बंटवारे का दर्द देखा है बल्कि आंखों में आंखें डाल कर उसका मुकाबला भी किया है। उन्होंने अपनी युवावस्था में लाशों के ढेर देखे, जेल में रातें गुजारी और सत्ता के गलियारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन कभी मूल्यों से समझौता नहीं किया। कुलदीप नैयर वह व्यक्ति हैं जिन्होंने कभी अपने विचारों को व्यक्त करने में कोताही नहीं बरती। निजी जीवन हो या सामाजिक जीवन, इसमें कभी किसी ने विरोधाभास नहीं पाया। हमारे सहयोगी प्रकाशन कौमी आवाज ने कुछ दिन पहले उनसे मुलाकात की। इस मुलाकात में ऐसा लगा जैसे एक 'एक युग' से मुलाकात हुई हो। मुलाकात में उनके व्यक्तिगत जीवन, बंटवारे के दर्द, जिन्ना के विचारों और आज भारत पर विस्तार से चर्चा हुयी। इसी बातचीत के कुछ अंश:

आप भारत के उन कुछ लोगों में से हैं जिन्होंने देश की आजादी और बंटवारे दोनों को देखा है, तब आप की क्या उम्र रही होगी और देश के हालात कैसे थे?

कुलदीप नैयर: देश की आजादी और विभाजन के समय में सियालकोट शहर में था, जो आज पाकिस्तान का हिस्सा है। उस समय यह तो सभी को पता था कि पाकिस्तान बनेगा, लेकिन समय तय नहीं हुआ था, इसलिए किसी को इस बात का पता नहीं था कि आगे क्या होगा, कौन सा हिस्सा पाकिस्तान के हिस्से में आएगा और कौन सा भारत के। हम जम्मू से महज 14 किलोमीटर दूर थे तो हमारा यह विचार था कि हमें जम्मू में मिला दिया जाएगा।

जब रैडक्लिफ का अवॉर्ड आया तो भी हम पाकिस्तान में ही थे। बाद में जब लंदन में मेरी रैडक्लिफ से मुलाकात हुई तो मैंने पूछा आपने लाइन कैसे खींची। उन्होंने कहा मेरे पास कोई नक्शा नहीं था, माउंट बैटन ने कहा कि आप घूम कर देख लो। रावी - चिनाब अलग दिखे तो मैंने वहीं लाइन खींच दी। जब रैडक्लिफ बंटवारे की लाइन तय कर रहे थे तो किसी ने कहा कि जनाब आप ने जो लकीर खींची है, इसमें तो पाकिस्तान के पास कोई शहर है ही नहीं। रैडक्लिफ ने कहा, अच्छा ऐसा है, तो चलो लाहौर पाकिस्तान को दे देते हैं।

यानी अंग्रेजों ने बंटवारा सिर्फ एक मजाक के रूप में लिया और उनका का यह मजाक हमारे लिए बहुत दर्दनाक साबित हुआ। इस पर आपकी क्या राय?

कुलदीप नैयर: बिल्कुल, और हम भी पागल थे जो ऐसे ही लड़ते रहे कि यह हिस्सा इधर, वह हिस्सा उधर। लड़ना तो इस बात के लिए चाहिए था कि यह बंटवारा नहीं होगा। कहने को तो मुसलमान सिर्फ 12 या 15 फीसदी रहे होंगे, लेकिन वह सारे भारत में फैले हुए थे, फिर यह काम कैसे हो पाता।

तो सियालकोट में आप तब तक रहे जब तक यहरैड क्लिफ अवॉर्ड आया।

कुलदीप नैयर: मैंने उसी साल सियालकोट में अपनी लॉ डिग्री हासिल की थी। उस समय मेरे पिता की गिनती शहर के बड़े डॉक्टरों में होती थी। लॉ पास करते ही मैंने सोचा कि अब प्रैक्टिस करूंगा, लेकिन अभी घर के बाहर मेरी नेम प्लेट लगी भी नहीं थी कि देश का बंटवारा हो गया। सियालकोट की खास बात यह थी कि जब देश के दूसरे हिस्सों में दंगे हो रहे थे तो सियालकोट में कोई दंगा नहीं हुआ। जब हम सियालकोट से चले तब तक रैडक्लिफ अवार्ड की लाइन खींची नहीं गयी थी। मेरा और मेरे परिवार का मानना

था कि कुछ दिन बाद जब माहौल ठीक हो जाएगा, तो हम फिर वापस आ जाएंगे। हमने यह नहीं सोचा था कि हम कभी वापस नहीं आ पाएंगे।

तो जब आप सियालकोट से रवाना हुए तो अपना साज़-ओ-सामान घर पर ही छोड़ कर आए थे?

कुलदीप नैयर: जब सियालकोट से भारत के लिए चलने वाला था, रवाना होने से पहले हम सभी भाइयों को पिताजी ने बुलाकर पूछा कि किसका क्या इरादा है। मेरे भाई ने कहा कि मैं तो अमृतसर में रहूंगा, मैंने कहा कि मैं तो यहीं रहूंगा। मेरे भाई ने कहा कि यह मुमकिन नहीं है। वह तुम्हें यहाँ रहने नहीं देंगे और घर से निकाल देंगे। मैं उस समय सोचता था कि हमें यहाँ से कोई क्यों निकालेगा, जिस तरह मुसलमान पाकिस्तान में रहेंगे इसी तरह हम भी यहाँ रह लेंगे। मेरा भाई कहता था कि उसने अमृतसर में बड़ा भयानक मंजर देखा है, इसीलिए हमें कोई यहाँ नहीं रहने देगा।

जब सियालकोट से रवाना होने लगा तो मेरी माँ ने कहा कि बेटा मुझे ऐसा लग रहा है कि शायद अब तुम वापस नहीं आ पाओगे। जबकि मेरे मन में था कि हालात ठीक होने पर वापस आ जाऊंगा। सियालकोट मेन रोड से थोड़ा हटकर जैसे ही हम मेन रोड पर आए तो हमने देखा कि वहाँ हज़ारों लोगों की भीड़ है जिसे देख कर हम दंग रह गए। कोई कारवां पाकिस्तान आ रहा है, तो कोई भारत जा रहा है। वह नज़ारा देखते ही समझ में आ गया कि अब लौटने का सवाल ही पैदा नहीं होता है। और में अकेले ही दिल्ली आ गया और यहां स्टेट्समैन अखबार में नौकरी कर ली।

रास्ते में हालात कैसे थे?

कुलदीप नैयर: रास्ते में सियालकोट से लेकर सम्बड़ियाल तक कुछ नहीं था। लेकिन जैसे ही हम उधर पहुंचे तो देखा कि लाशें पड़ी हुई हैं, सामान बिखरा पड़ा है। इससे साफ था कि दंगे हो चुके थे। हम क्योंकि आजादी मिलने के वक्त तो वहीं थे और रेडियो पर पंडित नेहरू आदि के भाषण सुना करते थे, इसलिए हमें अंदाजा ही नहीं हुआ कि इतना भयानक दंगा हो सकता है। वैसे कालेज के समय ही मुझे एहसास तो हो गया था कि अब हम बंट जाएंगे। मेरे तो सारे दोस्त ही मुसलमान थे, मेरा एक भी दोस्त हिन्दू नहीं था। लेकिन हमें उस उस समय बताया जाता था कि बॉर्डर बहुत आसान होगा और लोग अपन मर्जी से इधर-उधर आते जाते रहेंगे, लेकिन वैसा हुआ कभी नहीं।

दिल्ली पहुंचकर मैं अपनी मौसी के घर रहा, जो जामा मस्जिद के पास रहती थी। अक्सर जामा मस्जिद जाया करता था और वहाँ के मसीता के कबाब मुझे अभी याद हैं। वहाँ पर एक आदमी मुझे रोज देखता था, एक दिन उसने मुझसे पूछा कि तुम कुछ काम वाम नहीं करते हो हो? मैंने कहा बीए ऑनर्स, एलएलबी। वह बोला चलो मैं तुम्हें काम दिलाता हूँ। मैंने कहा क्लर्क नहीं बनूँगा, तो उसने कहा तो क्या अधिकारी बनोगे? मैंने कहा वह तो नहीं कहता लेकिन क्लर्क नहीं बनूँगा। इसके पूछने पर कि क्या उर्दू जानता हूँ तो मैंने बताया कि मैं उर्दू और फारसी दोनों ही बहुत अच्छी जानता हूँ। फिर वह बोला कि ’अंजाम’ नाम का एक अखबार है और उन्हें एक ऐसे हिंदू की तलाश है जो उर्दू जानता हो। उसने मुझे अखबार मालिक यासीन से मिलवाया और मुझे नौकरी मिल गई। यह थी मेरी पहली नौकरी थी, जिसमें मेरा वेतन 100 रुपए मासिक था। जब मैंने पहली तंख्वाह अपनी माँ को दी, तो वे बोलीं कि यह ज्यादा तो नहीं हैं, लेकिन जल्द ही तुम तरक्की करोगे, मैं में भविष्यवाणी करती हूं। उस समय के मशहूर शायर मौलाना हसरत मोहानी भी वहीं रहते थे। एक दिन मुलाकात में मैंने उन्हें एक शे’र सुनाया:

नहीं आती तो याद उनकी, महीनों तक नहीं आती।

मगर जब याद आते हैं, तो अक्सर याद आते हैं।।

उन्होंने पूछा, “उधर से तो लगते हो, पर किधर से?”

मैंने कहा, सियालकोट से।

उन्होंने कहा, “इकबाल भी सियालकोट से है”

इकबाल और फैज, दोनों ही सियालकोट से थे।

उन्होंने मुझे सलाह दी कि उर्दू का भविष्य भारत में तो अब दिखाई नहीं आता इसलिए आप अंग्रेजी में चले जाओ। इन दिनों विदेश जाना बहुत आसान था तो अमेरिका चला गया और वहाँ जर्नलिज्म का कोर्स किया। जब दिल्ली वापस आया तो यहाँ यूपीएससी की परीक्षाएं चल रही थीं। मैंने सूचना अधिकारी की परीक्षा दिया और कामयाब हो गया।

आपने बंटवारा देखा है और उसकी नफरत भी महसूस की है। कई लोगों का मानना

है कि इसी नफरत को आज फिर जिंदा किया जा रहा है। आप इस बारे में क्या सोचते हैं?

कुलदीप नैयर: कभी मुझे लगता है कि जैसे हालात सन् 45 के थे, जब मुसलमानों के मन में जहर भरा हुआ था, वैसे ही नफरत के हालात आज भी हैं। जिन्ना कहता था कि हिंदू और मुसलमान दो अलग देशों में ही रह सकते हैं और जिन्ना यह बात मुझे कभी समझ में नहीं आयी। हम कॉलेज के समय एक साथ बैठकर खाना खाया करते थे और कभी मन में आया ही नहीं कि हम अलग हो जाएंगे।

सियालकोट में पहले हम जहां रहते थे उसके साथ एक बगीचा भी था। वहाँ पर एक कब्र थी। मां कहा करती थी कि यह पीर साहब की कब्र है, यहां हर जुमेरात (गुरुवार) को दीपक जलाना है। और, हम वैसा ही करते थे। इमरजेंसी के दौरान जब मैं जेल में था, तो एक दिन पीर साहब मेरे सपने में आए और उन्होंने कहा कि तुम अगले जुमेरात (गुरुवार) को रिहा कर दिए जाओगे। इस सपने के बाद मुझे गुरुवार का बड़ी बेचैनी से इंतजार था। गुरुवार आया और चला गया। लेकिन, अगले ही दिन यानी शुक्रवार को जेल का चौकीदार आया और मुझे उठाकर बोला तुम्हारी रिहाई का आदेश आ गया है, तैयार हो जाओ। मैंने पूछा यह आदेश कब आया है तो उसने बताया कि आदेश तो कल रात (गुरुवार) को ही आ गया था, लेकिन देर रात हो गई थी तो हमने सोचा कि सुबह बता देंगे।

आपने कभी कल्पना की थी कि जब देश बंट जाएगा तो भारत के हालात भी पाकिस्तान जैसे हो जाएंगे?

कुलदीप नैयर: नहीं। ऐसा कभी कल्पना नहीं की थी। यहाँ आने के बाद गांधी, नेहरू, मौलाना आजाद को हम सुना करते थे। बीजेपी तो तब थी ही नहीं, हाँ पाकिस्तान के विरोध में जरूर कभी-कभी मुस्लिम विरोधी बातें होती थीं।

क्या मोदी का भारत जिन्ना के पाकिस्तान से मिलता-जुलता है?

कुलदीप नैयर: देखिए, जिन्ना अलग देश की बात तो करता था लेकिन उसके दिल में इतनी नफरत नहीं थी। आज देश में 17-18 करोड़ मुसलमान हैं, लेकिन उनकी कोई हैसियत नहीं है। न सरकार में मुसलमानों की कोई हिस्सेदारी है और न ही निजी क्षेत्र में है। यह ठीक है कि मारकाट नहीं होती, लेकिन क्या उनका कोई अस्तित्व है। सच्चाई तो यह है कि अब मुसलमानों ने भी अपनी इस हैसियत और हालत को स्वीकार कर लिया है।

नई सरकार आने के बाद से नफरत कितनी बढ़ी है?

कुलदीप नैयर: हाँ नई सरकार आने के बाद नफरतें बढ़ीं हैं।

क्या हम दूसरे विभाजन की ओर बढ़ रहे हैं?

कुलदीप नैयर: वैसा बंटवारा भले ही न हो, लेकिन यह भी बंटवारे का ही एक रूप है कि आज मुसलमान आमतौर पर अलग रहना पसंद कर रहे हैं। आज मुसलमानों के दिलों में भय है। और वैसे भी मुसलमानों को अलग-थलग तो कर ही दिया गया है। मिसाल के तौर पर यहाँ (वसंत विहार, दिल्ली) में सिर्फ एक मुस्लिम परिवार की जायदाद है और किसी की नहीं। मुसलमानों के दिलों में आज इतना डर

है कि उनसे अगर चुनाव के बारे में पूछो तो कहते हैं कि आज मुसलमानों को चुनाव की चिंता नहीं है, हमारी तो जान की ही रक्षा हो जाए, वही बहुत है।

आपसे बात करते हुए मन में सवाल आया, जिन्ना मुसलमानों से यही कहते थे कि यहां अगर रहोगे तो दूसरे दर्जे के नागरिक बन जाओगे। इस पर क्या राय है?

कुलदीप नैयर: नहीं यह बात सही नहीं है। जिन्ना ने यह कभी नहीं कहा कि भारत में रहोगे तो आप पर कोई अत्याचार होगा। वे कहते थे कि यह भी देश होगा, वह भी देश होगा, दोनों देशों में अल्पसंख्यकों को बराबर अधिकार मिलेंगे।

पाकिस्तान की स्थापना से पहले तो जिन्ना यही कहा करते थे कि तुम यहाँ रुके तो तुम्हें कोई अधिकार नहीं मिलेंगे?

कुलदीप नैयर: इस समय पाकिस्तान के पक्ष में अपील करने के लिए वह कई तरह की बातें कहते थे। जब लॉ कॉलेज में पढ़ रहा था, तो 1946 में कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना हमारे कॉलेज में आए थे। उन्होंने भाषण में वही सब कुछ कहा, जो वह अक्सर कहा करते थे कि हिंदू और मुसलमान दो जातियां हैं आदि आदि। उस समय मैंने जिन्ना से दो सवाल किए थे। मैंने उनसे पूछा था कि मान लीजिए कि पाकिस्तान का गठन हो चुका है, अब यह बताओ कि अगर एक तीसरी ताकत भारत पर हमला कर देता है तो पाकिस्तान क्या करेगा? उन्होंने कहा कि, नौजवान, हमारी तरफ के जवान आपके जवानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर दुश्मन से लड़ेंगे। दोनों तरफ से खून बराबर बहेगा और हम दुश्मन के दांत खट्टे कर देंगे। मैं जब शास्त्री जी के साथ काम किया करता था, तो मैंने उन्हें यह बात बताई। उन्होंने कहा कि जब चीन ने 1962 में भारत पर हमला किया था, उस समय अगर पाकिस्तान मदद करता और उसके बाद पाकिस्तान हमसे कश्मीर भी मांगता तो हम उसे न नहीं कर पाते।

आज भारत में आप खुद को कैसा महसूस कर रहे हैं? क्या यह वही भारत है जो गांधी और नेहरू बनाना चाहते थे?

कुलदीप नैयर: नहीं, बिल्कुल अलग है। गांधी, नेहरू या आजाद का यह सपना था कि यह देश ऐसा होगा, जहां सबका अपना-अपना धर्म होगा, लेकिन अधिकार सभी के बराबर होंगे। सब एक दूसरे के लिए कोशिश करेंगे। एक बार बापू की सभा हो रही थी तो एक पंजाबी ने कहा कि बापू हम सभा में बार-बार पाकिस्तान का जिक्र नहीं सुनना चाहते। बापू ने कहा कि अगर नहीं सुनना चाहते हो, तो ये सभा नहीं होगी। तीन दिन तक जब सभा नहीं हुई तो उसी व्यक्ति ने जाकर बापू से कहा कि मैं शर्मिंदा हूँ, मुझे यह बात नहीं करनी चाहिए थी। इसके बाद गांधी जी ने सभा की। बंटवारे के समय भी आरएसएस ने कोशिश की थी कि नफरतों को बढ़ाया जाए, लेकिन देश में उस समय नफरत का माहौल नहीं था। लेकिन, आज मुसलमानों ने खुद को दूसरे दर्जे का नागरिक मान लिया है और हिंदुओं ने भी खुद को शासक के रूप में देखना शुरू कर दिया है। बंटवारे के समय भी लोगों के दिलों में इतनी अधिक नफरतें नहीं थीं, जितनी आज दिखाई दे रही हैं। हम अपना सब कुछ छोड़ कर आए थे, ऐसा इसलिए था क्योंकि उस समय सरकार नफरतों को कम करना चाहती थी, लेकिन आज सरकार नफरत को बढ़ावा देने का काम कर रही है।

क्या आप को उम्मीद की कोई किरण दिखाई देती है?

कुलदीप नैयर: भारत में उग्रवाद ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकता और जो नफरतों का माहौल दिखाई दे रहा है, वह जल्द ही बदल भी जाएगा। भारत में लोकतंत्र का राज चलेगा और अगर कोई माहौल बिगाड़ने की कोशिश करेगा तो जनता उससे सत्ता छीन लेंगे।

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Published: 15 Aug 2017, 11:14 PM