सिनेमा

जयंती विशेष: संगीतकार मदन मोहन...बगदाद से आया 'ग़ज़लों का शहज़ादा', हिंदी सिनेमा में अपने संगीत से छोड़ गया अमिट छाप

मदन मोहन की पैदाइश आज ही के दिन यानी 25 जून 1924 को इराक़ के बग़दाद शहर में हुई थी। मदन मोहन का पूरा नाम मदन मोहन कोहली था, लेकिन हिंदी सिनेमा में उन्हें मदन मोहन के नाम से शोहरत मिली।

हिंदी सिनेमा के मशहूर संगीतकार मदन मोहन की आज 99वीं जयंती है।
हिंदी सिनेमा के मशहूर संगीतकार मदन मोहन की आज 99वीं जयंती है। फोटो:सोशल मीडिया

हिंदी सिनेमा के मशहूर संगीतकार मदन मोहन की आज 99वीं जयंती है। उन्होंने अपने संगीत निर्देशन में एक से बढ़कर एक नायाब गीत और बेशुमार हिट गज़लें हिंदा सिनेमा को दीं। मदन मोहन को ख़ासकर उनकी कम्पोज़ की हुई बेशुमार हिट गज़लों के लिए याद किया जाता है। वह हिंदी सिनेमा में 50 के दशक से लेकर 70 के दशक के बीच एक शानदार संगीतकार के रूप में काम किया।

मदन मोहन की पैदाइश आज ही के दिन यानी 25 जून 1924 को इराक़ के बग़दाद शहर में हुई थी। मदन मोहन का पूरा नाम मदन मोहन कोहली था, लेकिन हिंदी सिनेमा में उन्हें मदन मोहन के नाम से शोहरत मिली। उनके पिता राय बहादुर चुन्नीलाल इराक़ के पुलिस महक़मे में बतौर एकाउंटेंट जनरल काम किया करते थे। मदन मोहन ने अपनी ज़िंदगी के शुरूआती पांच साल वहीं गुज़ारे थे। उनके पिता राय बहादुर चुन्नीलाल बॉम्बे के फ़िल्म व्यवसाय से भी जुड़े हुए थे। वह बॉम्बे के फ़िल्मीस्तान और बॉम्बे टाकीज़ जैसे बड़े फ़िल्म स्टूडियो में साझेदार थे।

Published: 25 Jun 2023, 11:43 AM IST

1932 में उनका परिवार अपने गृह नगर चकवाल लौट आया था, जो की उस समय ब्रिटिश भारत के पंजाब के झेलम जिले में पड़ता था। उन्होंने अपनी शुरूआती पढ़ाई लाहौर से की थी। यही उन्होंने बहुत कम वक़्त के लिए करतार सिंह नाम के व्यक्ति से शास्त्रीय संगीत की मूल बातें सीखीं थीं। हालांकि उन्होंने संगीत की कभी कोई मुक़म्मल तालीम नहीं हासिल की थी। कुछ सालों बाद उनका परिवार बॉम्बे शिफ़्ट हो गया। महज़ 11 साल की उम्र में उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो बॉम्बे में बच्चों के प्रोग्राम में गीत गाना शुरू कर दिया था।

चूंकि मदन मोहन के पिता बॉम्बे की फ़िल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए थे, इसलिए उनके घर में भी फ़िल्मी माहौल ही बना रहता था। यही वजह है कि मदन मोहन भी फ़िल्मों में काम करके बड़ा नाम कमाना चाहते थे, लेकिन अपने पिता के कहने पर उन्होंने सेना में भर्ती होने का फ़ैसला लिया और देहरादून में नौकरी शुरू कर दी। कुछ दिनों बाद उनका तबादला दिल्ली में हो गया, लेकिन कुछ वक़्त के बाद उनका मन सेना की नौकरी में नहीं लगा और वह नौकरी छोड़ लखनऊ आ गए।

Published: 25 Jun 2023, 11:43 AM IST

लखनऊ में मदन मोहन ऑल इंडिया रेडियो में काम करने लगे। यहीं उनकी मुलाक़ात संगीत की दुनिया के दिग्गज उस्ताद फ़ैयाज़ ख़ाँ, उस्ताद अली अकबर ख़ाँ, बेग़म अख़्तर और तलत महमूद जैसी जानी मानी हस्तियों से हुई। इन हस्तियों से मुलाकात के बाद मदन मोहन इन लोगों से काफ़ी मुतास्सिर हुए और उनका रुझान संगीत की तरफ़ हो गया। उसके बाद अपने ख़्वाबों को मुक़म्मल करने के लिए मदन मोहन लखनऊ से वापस बॉम्बे आ गए। बॉम्बे आने के बाद मदन मोहन की मुलाक़ात एस.डी. बर्मन, श्याम सुंदर और सी. रामचंद्र जैसे दिग्गज संगीतकारों से हुई। उसके बाद वह उनके असिस्टेंट के तौर पर काम करने लगे। बतौर संगीतकार साल 1950 में आई फ़िल्म आँखें से मदन मोहन फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में क़ामयाब हुए। फ़िल्म आँखें के बाद लता मंगेशकर मदन मोहन की पहली पसंद बन गईं। उनके गानों को आवाज़ देने के लिए और वह अपनी हर फ़िल्म में लता मंगेशकर से ही गाना रिकॉर्ड करवाने लगे। लता मंगेश्कर भी मदन मोहन को मदन भैया कहकर बुलाने लगीं और रक्षा बंधन पर वह उनको राखी भी बाँधा करतीं थीं। लता मंगेशकर ने ही उन्हें गज़लों का शहज़ादा नाम दिया था।

50 के दशक में गीतकार राजेंद्र कृष्ण के लिखे गीत मदन मोहन की रूमानी मौसिक़ी में ढलकर ख़ूब सुपरहिट साबित हुए थे। उन दोनों के बनाए कुछ रूमानी गीतों में 1952 में आई फ़िल्म आशियाना का गाना मेरा क़रार ले जा मुझे बेक़ारार कर जा और 1957 में आई फ़िल्म देख कबीरा रोया का गाना तू प्यार करे या ठुकराए हम तो हैं तेरे दीवानों में जैसे सुपरहिट गीत शामिल हैं।

Published: 25 Jun 2023, 11:43 AM IST

मदन मोहन के पसंदीदा गीतकार के तौर पर राजा मेंहदी अली ख़ान, राजेन्द्र कृष्ण और कैफ़ी आज़मी का नाम सबसे पहले आता है, लेकिन गीतकार राजा मेंहदी अली ख़ान के साथ उनकी जोड़ी ख़ूब जमी। सुरों की मलिका लता मंगेशकर ने गीतकार राजेन्द्र कृष्ण के बोलों पर मदन मोहन की बनाई धुनों पर कई गीत गाए, जिनमें 1958 में आई फ़िल्म अदालत का गाना यूं हसरतों के दाग़, 1958 में ही आई फ़िल्म जेलर का गाना हम प्यार में जलने वालों को, 1961 में आई फ़िल्म संजोग का गाना वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गई शामिल हैं।

60 के दशक में मदन मोहन के संगीत निर्देशन में गीतकार राजा मेंहदी अली ख़ान के गीतों में 1962 में आई फ़िल्म अनपढ़ का गाना आपकी नजरों ने समझा प्यार के क़ाबिल मुझे, 1964 में आई फ़िल्म वो कौन थी  का गाना लग जा गले, नैना बरसे रिमझिम रिमझिम और 1966 में आई फ़िल्म मेरा साया का गाना नैनो में बदरा छाए और तू जहां जहां चलेगा मेरा साया साथ होगा, जैसे गीत आज भी बहुत पसंद किए जाते हैं।

Published: 25 Jun 2023, 11:43 AM IST

मदन मोहन ने अपनी ख़ूबसूरत मौसिक़ी से गीतकार कैफ़ी आज़मी के लिखे जिन गीतों को अमर बना दिया, उनमें 1965 में आई फ़िल्म हक़ीक़त के गाने कर चले हम फ़िदा जानो तन साथियों अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों और ज़रा सी आहट होती है तो दिल सोचता है, 1967 में आई फ़िल्म नौनिहाल का गाना, मेरी आवाज़ सुनो,प्यार का राग सुनो, 1970 में आई फ़िल्म हीर रांझा का गाना ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नही काफ़ी हिट हुए थे।

70 के दशक में भी मदन मोहन का संगीत और कैफ़ी आज़मी के लिखे गीतों ने ख़ूब शोहरत बटोरी। इन गानों में 1972 में आई फ़िल्म परवाना का गाना सिमटी सी शर्माई सी किस दुनिया से तुम आई हो और 1973 की फ़िल्म हँसते ज़ख़्म का गाना, तुम जो मिल गए हो तो ये लगता है की जहां मिल गया, 1973 में ही आई फ़िल्म हिंदुस्तान की क़सम का गाना है तेरे साथ मेरी वफ़ा मैं नहीं तो क्या जैसे सुपरहिट गीत शामिल हैं।

Published: 25 Jun 2023, 11:43 AM IST

मशहूर संगीतकार ख़य्याम भी मदन मोहन को बहुत चाहते थे। वह कहते थे की मदन मोहन संगीत के बेताज बादशाह हैं। मदन मोहन के संगीत निर्देशन में आशा भोंसले ने फ़िल्म मेरा साया में, झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में गाना गाया था, जिसे सुनकर आज भी लोग झूम उठते हैं। मदन मोहन से आशा भोंसले को अक्सर यह शिकायत रहती थी कि आप अपनी हर फ़िल्म में लता दीदी से ही गाने क्यों रिकॉर्ड करवाते हैं। इस पर मदन मोहन कहा करते थे जब तक लता ज़िंदा हैं मेरी फ़िल्मों के गाने वही गाएंगी।

1965 में रिलीज़ हुई फ़िल्म निर्माता-निर्देशक चेतन आनंद की फ़िल्म हकीकत में मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में मदन मोहन की ख़ूबसूरत मौसिक़ी से सजा यह गीत कर चले हम फ़िदा जानों तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों, आज भी सुनने वालों के दिलों में देशभक्ति के जज़्बे को बुलंद कर देता है। आंखों को नम कर देने वाला ऐसा संगीत सिर्फ़ मदन मोहन ही दे सकते थे।

Published: 25 Jun 2023, 11:43 AM IST

1970 में रिलीज़ हुई फ़िल्म दस्तक के गीतों के लिए मदन मोहन को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया था। मदन मोहन ने अपने ढ़ाई दशक लंबे फ़िल्मी करियर में तक़रीबन 100 फ़िल्मों में संगीत दिया था। अपनी ख़ूबसूरत और जादूभरी मौसिक़ी से सुनने वालों के दिलों में ख़ास जगह बनाने वाले मदन मोहन 14 जुलाई 1975 को इस दुनिया से हमेशा हमेशा के लिए रुख़सत हो गए। उनके गुज़र जाने के बाद साल 1975 में ही उनके संगीत से सजी फ़िल्में मौसम और लैला मजनूं रिलीज़ हुईं थी, जिनके गाने आज भी सुनने वालों को ख़ासे पसंद आते हैं।

मदन मोहन के गुज़र जाने के 29 साल बाद जब उनके संगीत से सजी यश चोपड़ा की फ़िल्म वीर-ज़ारा 2004 में रिलीज़ हुई तो उस फ़िल्म के भी सारे गीत लता मंगेशकर ने ही गाए और वीर-ज़ारा के सभी गाने सुपरहिट साबित हुए। इस फ़िल्म में मदन मोहन की बनाई गई उन धुनों का इस्तेमाल किया गया था जो उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में बनाई तो थीं, लेकिन किसी भी फ़िल्म में उन धुनों को इस्तेमाल नही हो पाया था।

Published: 25 Jun 2023, 11:43 AM IST

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Published: 25 Jun 2023, 11:43 AM IST