सिनेमा

संजय मिश्रा से खास मुलाकात: जानिए उनकी फिल्म और जीवन से जुड़ी अनसुनी और अनकही बातें

संजय मिश्रा ने कहा, “मैं मुख्यतः सिनेमा एक्टर हूं। मेरे दिमाग में सिनेमा शुरू से ही था। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा मुझे एक लाइन देने वाली जगह थी कि एक्टिंग क्या है और कैसे होना है।”

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

1.प्रश्न-. अपने कैरियर के बारे में बताइए। शुरुआत कैसे हुई?

संजय मिश्रा: कलाकार तो में बचपन से था बस दिशा चाहिए होती है हर यूथ को, नौकरी मेरे बस की थी नहीं कलाकारी बस में था और कलाकारी में भी बहुत कुछ है जैसे म्यूजिक,कविता, लिखना, पेंटिंग बनाना इन सब में टाइम बहुत देना पड़ता था और में तोडा आलसी हूं तो मेरे बस का था नहीं ये सब तो में इन सब से बचा तो एक्टिंग मुझे बहुत करीब लगी मतलब करियर में नहीं मेरे लाइफ में जो चीज हैं जिसे मैं पकड़ सकता हूं। और उसी दिशा में चलता गया उसके बाद नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा हुआ और उसके बाद मुंबई और मुंबई में सारे स्ट्रगल अपने आप को साबित करने की कोशिश जो आज तक चल रही है। बस इसमें लगा रहा और ये फिल्म ‘कामयाब’ और बहुत सी सारी फिल्में आंखों देखी, गोलमाल... नाॅर्मल लाइफ जैसे हर एक्टर आते हैं अपनी पहचान बनाने के लिए, यह नहीं कि कुछ अलग, बस यही हमेशा यह कोशिश रही है कि भीड़ से अलग।

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2.प्रश्न-मुम्बई इंडस्ट्री और दिल्ली की थिएटर की दुनिया मे क्या फर्क है? थिएटर और फिल्म में अभिनय करते हुए कैसा लगता है, अक्सर लोगों को कहते सुना है कि थिएटर में काम करना ज्यादा satisfying होता है?

संजय मिश्रा: मैं मुख्यतः सिनेमा एक्टर हूं। मेरे दिमाग में सिनेमा शुरू से ही था। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा मुझे एक लाइन देने वाली जगह थी कि एक्टिंग क्या है और कैसे होना है। मुंबई और दिल्ली के थियेटर में जो सबसे बड़ा अंतर है कि दिल्ली का थियेटर कमर्शियल है लेकिन मुंबई का थियेटर उससे ज्यादा कमर्शियल है। मतलब यहां ज्यादा पैसा लगाकर के एक नाटक तैयार किया जाता है और उसके बाद नाटकों के 200 शो होते हैं और दिल्ली में एक बड़ा इम्मेच्योर सा जैसा मैंने देखा कि खुद नाटक लिख रहे हैं और खुद ही नाटक कर रहे हैं और खुद ही लोगों से रिक्वेस्ट करने लगते हैं नाटक में आने के लिए। हिंदी थियेटर इतना कमर्शियल नहीं हो पाया। दिल्ली में ज्यादातर हिंदी थियेटर ही होते हैं बहुत कमर्शियल नहीं होते। मुंबई में बहुत कमर्शियल होता है। मुंबई के जो थियेटर वर्करस हैं उनको इतने पैसे मिल जाते हैं कि वह महीने भर की रोजी रोटी के अलावा जीवन की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं और दिल्ली और मुंबई में यही फर्क है लेकिन सिनेमा और थियेटर की एक्टिंग में बहुत जमीन आसमान का फर्क हैं। थियेटर में सिर्फ आप होते हैं और आपकी एक्टिंग होती है और सिनेमा में आप तो होते ही हैं और साथ में अलग-अलग लेंन्सस होते हैं। मतलब 100 के लेंस में आपको उतना उग्र होेने की जरूरत नहीं हैं कि आपको बाद वाले को अपना एक्सप्रेशन दिखाना है। और मेरा थियेटर से बस इतना ही नाता है कि मैं शाॅट दे रहा होता हूं तो शाॅट देखते ही रिकाॅर्डिग होता है लाइटमैन, आर्ट डायरेक्शन, मेरा परटिकुलर एक दो मिनट का जो शाॅट होता है वह मेरे लिए वैसा ही होता है कि वहां एक्टिंग खत्म होता है और वहां रिएक्शन भी मिल जाता है।

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3.प्रश्न- बिहार (दरभंगा) से दिल्ली, दिल्ली से मुंबई तक का सफर करने में आपको कितनी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा?

संजय मिश्रा: मैं जन्म तो पटना में हुआ। दरभंगा में ही मेरी नानी और दादा का घर है। थोड़ा समय जब मैं पटना में रहा तो उस वक्त मेरी उम्र काफी कम थी तो मेरे पापा का जहां तबादला होता था तो हम लोग भी वहीं शिफ्ट हो जाते थे तो जब बनारस से दिल्ली और इसी तरह यह सफर मुंबई तक अपनी मंजिल तक पहुंच गया।

4.प्रश्न- आपकी आने वाली फिल्म ‘कामयाब’ के बारे में थोड़ा बताईए जैसा कि हमने ट्रेलर में देखा गया है कि आपका सपना है कि 500 फिल्में करना है?

संजय मिश्रा: जीवन में हर इंसान का सपना होता है कि जैसे जीवन में 48 वीं वर्षगांठ आती है लेकिन जो मजा 50वीं वर्षगांठ को मनाने में हैं वो अलग ही है। जैसे 50 साल से इंडस्ट्री में सबके साथ हैं। लेकिन इसी में भी 25वीं वर्षगांठ का भी अपना एक अलग मजा है। तो यह एक बंदे की अपनी एक धड़क है कि और 99 कर लिए हैं तो एक और भी कर लेते हैं, सिर्फ अपने लिए। दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता है कि जो करेक्टर कर रहे हैं वो 499 हो या 500, वो 99 करने पर भी रहन-सहन में फर्क नहीं पड़ता। ये चीज एक एक्टर हो या सचिन तेदुंलकर ही क्यों न हो मैंने 99 रन बनाने के बाद अगर अपना शतक बना लेता है तो पूरी दुनिया उसको झुककर सलाम करती है। वो अलग ही एक मिसाल कायम करती है। लेकिन 500 भी फिल्म कर ली है तो लोग यह ना कहें कि (मेन बिहांड दा बाॅडी) के पीछे खड़ा हुआ आदमी पागल का रोल कर रहा है। एक अच्छा रोल कर संकू और अपने से संबंधित अपने बच्चों को दिखा संकू कि देख भाई मैंने 500 फिल्में कर लीं है। तो यह इस फिल्म की कहानी है।

5.प्रश्न- आप अलग-अलग करेक्टर निभाते रहे हैं काॅमिडियन, विलेन। हम यह मानते हैं कि आप अपने करेक्टर में सबको गुदगुदाते रहते हैं। तो आप अलग-अलग भूमिका के लिए अपने आपको कैसे तैयार करते हैं?

संजय मिश्रा: देखिए, मैं अपनी स्क्रिप्ट कभी नहीं पढ़ता। स्क्रिप्ट राइटर मुझे जो दिखा देता है और उसके बारे में जो भी बता देता है उसके अनुसार मैं उसी करेक्टर को सोच समझकर फाॅलो करता हूं कि इस करेक्टर को कैसे किया जाए कि अच्छा लगे। डायरेक्टर की आंखों को भी देखता हूं कि उन्हें मुझसे क्या चाहिए, बस उसी तरह अपना रोल निभाता चला जाता हूं। मुझे कहा जाता है आप कुछ फिल्में देख लिजिए जो वर्ड में बहुत सारे ब्लाइंड रोल हुए हैं, लेकिन मैं नहीं देखता अगर मैं उन्हें देखूंग तो उनकी नकल करने लगूंगा। डायरेक्टर ने मुझे दिखाया और मैं अपने आप को अंधा देख रहा हूं।

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6.प्रश्न- अभी आने वाले आपके प्रोजेक्ट कौन-कौन से है। कौन-कौन सी फिल्में आपकी आने वाली हैं?

संजय मिश्रा: देखिए, अभी ‘कामयाब’ आ जाएगी, उसके बाद मेरी एक फिल्म है ‘ग्वालियर’। वो भी अपनी लास्ट स्टेज पर है साउंड वगैरह पर काम चल रहा है। जिसमें नीना गुप्ता और मैं हूं। ये बहुत खूबसूरत फिल्म है। संडे’ भी एक अलग किस्म की फिल्म है। मैं बहुत खुश हूं कि यह फिल्म बिहार में बनी है लेकिन भोजपुरी नहीं है। और उसके बाद एक फिल्म है मेरी ‘होली काउ’ यह भी सोशल सब्जेक्ट पर है, आज के विषय पर है और ग्वालियर से अलग है। इसके अलावा ‘कलर ब्लैक’ एक फिल्म है उसका भी काम चल रहा है यह सारी अच्छे फिल्में है। मजेदार बात यह है कि शाहरूख खान ने ‘कामयाब’ को प्रजेन्टेशन के लिए लिया है। वही सबकुछ कर रहा है। अगर ‘कामयाब’ कामयाब हो गई जिससे प्रोडयूसर, डायरेक्टर को कुछ पैसा आ जाए तो एक फिल्म कामयाब फिल्म कहलाती है। हां, मैं यह नहीं कहूंगा कि फिल्म कामयाब है लेकिन किसी करेक्टर को लेकर जो प्रशंसा मिल जाए वो भी बहुत है।

7.प्रश्न-आजकल के जो युवा हैं वे फिल्म इंडस्ट्री में जाना चाहते हैं बहुत संघर्ष करते हैं उनके लिए आप क्या कहना चाहेंगे?

संजय मिश्रा: मैं कहना चाहूंगा कि पहले एक्टर बने, क्योंकि हीरो तो सभी बनना चाहते हैं पहला अपना मकसद तय करें कि आप किस मकसद से फिल्म इंडस्ट्री में आ रहे हैं तो आपको एक जौहर या कोई खान चाहिए ही होगा। और यदि आप एक्टर बनना चाहते हैं तो आपको संजय मिश्रा की तरह छोटे-छोटे काम करके अपनी पहचान बनानी होगी कि आप एक कामयाब एक्टर हैं। फिर मिलेगा आपको अच्छे रोल। मैंने सीढ़ी दर सीढ़ी अपने को साबित किया है कि मैं ऐसा हूं और ऐसा रोल कर सकता हूं। लोगों को भी इसका प्रुफ दिया और अपने आपको भी प्रुव किया।

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