सिनेमा

मलयालम फिल्म ‘जल्लीकट्टू’ से ऑस्कर की आस, लेकिन टीम के पास तो लॉस एजेंल्स जाने तक के पैसे नहीं हैं पास!

मुझे यह देखकर बहुत आश्चर्य होता है कि हर वर्ष ऑस्कर पुरस्कार की दौड़ से बुरी तरह से बाहर कर दिए जाने के बावजूद हमारे फिल्म प्रेमी और फिल्म जगत से संबंध रखने वाले लोग इसे जीतने को लेकर हर बार किस तरह से इतने सकारात्मक रहते हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया फिल्म पोस्टर

मुझे यह देखकर बहुत आश्चर्य होता है कि हर वर्ष ऑस्कर पुरस्कार की दौड़ से बुरी तरह से बाहर कर दिए जाने के बावजूद हमारे फिल्म प्रेमी और फिल्म जगत से संबंध रखने वाले लोग इसे जीतने को लेकर हर बार किस तरह से इतने सकारात्मक रहते हैं। इस बार हमने अपनी सारी उम्मीदें ऑस्कर में जाने वाली मलयालम फिल्म ‘जल्लीकट्टू’ से लगा रखी हैं। और हमें लगता है कि वह अपने इस सफर को जरूर मुकाम तक ‘पहुंचा सकती है’।

इस फिल्म में पागलपन तो जरूर है। ‘वेरायटी’ ने भी इसे बॉन्कर्स (झक्की) फिल्म कहा है। जिस प्रकार एक बैल (बुल) को भड़काने के लिए अराजकता के समुद्र से किरदारों की एक भीड़ निकल कर आती है और जिस तरह से यह कहानी बताई गई है, इसमें पागलपन का तत्वतो जरूर है। जैसे-जैसे बैल गांव में विध्वंस मचाने लगता है, वैसे-वैसे स्थानीय लोग भी अपने व्यक्तिगत एजेंडे के साथ एक दूसरे ही छोर तक निकल जाते हैं। और स्वहित की इस अशांत तरंग में अपने-अपने मामले शांत करते हैं। जैसे-जैसे यह टूटा-फूटा समुदाय उत्तेजना की चरम की ओर बढ़ने लगता है तो यह कह पाना मुश्किल हो जाता है कि कौन ज्यादा उद्दंड हो रहा है- बैल या स्थानीय समुदाय।

Published: undefined

आलोचकों का मानना है कि अगर बोंग जू-हो की कोरियाई फिल्म ‘पैरासाइट’ सर्वश्रेष्ठ फिल्म का ऑस्कर जीत सकती है तो ‘जल्लीकट्टू’ सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय फिल्म की श्रेणी तक क्यों नहीं पहुंच सकती? पहले तो मुझे यह नहीं समझ आ रहा है कि ‘पैरासाइट’ ने यह चमत्कार कैसे किया। मुझे लगता है कि वह बहुत सारे दोषों वाली ओवरेटेड फिल्म है जिसके पास वर्ग असमानता के बहुत सारे प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं है। दूसरा, ‘पैरासाइट’ फिल्म का ऑस्कर के लिए एक जबरदस्त मार्केटिंग अभियान चलाया गया था। ‘जल्लीकट्टू’ की टीम के पास तो ऑस्कर के लिए लॉस एजेंल्स पहुंचने के लिए टिकट के लिए भी पर्याप्त पैसे नहीं होंगे। इस दहला देने वाली फिल्म के केंद्र में अतिक्रूरता है। यह वास्तविक है लेकिन अत्यधिक हिंसक है। और सच कहूं तो एक समय के बाद यह मुझे बहुत पीड़ादायी और उबाऊ लगी। मुझे ऐसा लगता है कि कहीं- न-कहीं ऑस्कर की जूरी को भी ऐसा ही लगेगा। हालांकि ‘जल्लीकट्टू’ बहुत ही शानदार तरीके से संपादित और पेश की गई है लेकिन अंत में इसे देखकर मुझे उल्टी-सी आने लगी। ये बहुत ही अमर्यादित चरित्र हैं जो अपने अंदर के बैल से लड़ रहे हैं जबकि बाहर वाला बैल अपनी दौड़ में निकला हुआ है।

Published: undefined

संयोग से, ‘जल्लीकट्टू’ की इस प्राचीन प्रथा को 2017 में प्रतिबंधित कर दिया गया था। तमिलनाडु इससे भड़क उठा था। अभिनेत्री और राजनीतिक खुशबू सुंदर ने मुझसे कहा था, “हम तमिलनाडु के नागरिक कानून का पालन करने वाले नागरिक हैं और हम माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का सम्मान करते हैं। लेकिन हमें अलग-थलग नहीं किया जा सकता। हमें एक अवसर की आवश्यकता है ताकि हम सबसे बड़ी अदालत में अपना पक्ष रख सकें। सभी तमिल लोग एक हैं। हम जल्लीकट्टू में विश्वास करते हैं। जल्लीकट्टू हमारा गौरव है। यह हमारी परंपरा में हजार वर्षों से है। आप तमिल व्यक्ति से जल्लीकट्टू नहीं छीन सकते। यह आंदोलन क्रांतिकारी है। महात्मा ने कहा था कि जो बदलाव तुम देखना चाहते हो , वह पहले तुम बनो। हम वह बदलाव लाएंगे जो हम देखना चाहते हैं। हम नियमों का स्वागत करते हैं लेकिन हमारी विरासत पर प्रतिबंध क्यों? पेटा (पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स) सिक्के का एक ही पहलू देखता है। बैल किसान के लिए परिवार की तरह होता है। इसमें बहुत सारी आर्थिक अच्छाइयां जुड़ी हुई हैं क्योंकि जल्लीकट्टू पर प्रजनन निर्भर करता है। जल्लीकट्टू के लिए एक विशेष नस्लका बैल इस्तेमाल होता है और पेटा को इसका पता भी नहीं है।”

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined