अर्थतंत्र

नोटबंदी त्रासदी का एक वर्ष : बैंक कर्मचारियों ने भुगता है दर्द, अभी तक नहीं मिला है ओवरटाइम का पैसा

नोटबंदी का एक साल होने जा रहा है। लेकिन आज भी इस भयावह और तर्कहीन फैसले की याद सिहरन पैदा कर रही है।

फोटो : IANS
फोटो : IANS 

उन पचास दिनों में पूरे देश में बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी लाइनें लगी थीं, और लोग परेशान थे, वहीं बैंक कर्मचारियों की हालत भी खस्ता था। इन पर काम के साथ-साथ लोगों को गुस्से का भी जबरदस्त बोझ था। इतना ही नहीं आधे से ज्यादा बैंक कर्मचारियों को अतिरिक्त काम करने का पैसा अभी तक नहीं मिला है।

ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कंफेडरेशन के सहायक महासचिव संजय दास का कहना है कि, “जिस समय नोटबंदी का ऐलान किया गया, उस समय बैंक कर्मचारी डूबे हुए कर्ज की उगाही के काम में लगे थे। लेकिन नोटबंदी के फैसले से ये सारा काम पटरी से उतर गया, क्योंकि बैंकों को अपने सारे स्टाफ को रात-दिन नोट जमा कराने वालों के लिए लगाना पड़ा।”

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इस फैसले के बारे में बैंक यूनियन का कहना है कि नोटबंदी के दौरान जिन 100 लोगों की मौत हुई थी, उनमें से कम से कम दस लोग बैंक कर्मचारी थे, जिनकी जान बिना वजह के काम के बोझ के कारण चली गई।

संजय दास कहते हैं कि अतिरिक्त घंटों तक दबावपूर्ण और तनाव वाला काम करने के बावजूज, “अभी तक 50 फीसदी से ज्यादा बैंक कर्मचारियों और अफसरों को हर्जाना नहीं मिला है।”

ऑल इंडिया बैंकिंग इम्पलाईज़ एसोसिएशन के महासचिव सी एच वेंकटचलम कहते हैं कि इस फैसले का असर पूरे बैंकिंग सिस्टम पर आज तक बरकरार है। उनका कहना है कि महज दस लाख बैंक कर्मचारियों ने उस दौरान करीब 100 करोड़ लोगों का दबाव झेला है। वेंकटचलम ने बताया कि लोग गुस्से में बैंक कर्मचारियों और अफसरों को गालियां देते थे। उनके मुताबिक, “आरबीआई के इस ऐलान के बाद कि नए नोटों की कोई कमी नहीं है, हमारी मुश्किले ज्यादा बढ़ गई थीं, क्योंकि लोगों को लगता था कि हम जानबूझकर उन्हें कैश नहीं दे रहे हैं।”

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उनका कहना है कि बैंक प्रबंधन को इल बात की चिंता नहीं थी कि कर्मचारियों पर क्या गुजर रही है। उस दौरान आरबीआई ने भी सभी बैंकों को शनिवार और रविवार को काम करने के लिए कहा था। बैंक कर्मचारियों को देर शाम तक बैंक शाखाओं में रुक कर काम करना पड़ता था। कुछ लिपिकीय कर्मचारियों को तो ओवरटाइम के पैसे दे दिए गए, लेकिन आधे से ज्यादा लोगों को अभी तक अतिरिक्त काम करने के पैसे नहीं मिले हैं।

वहीं बैंक इम्पलाईज़ फेडरेशन ऑफ इंडिया के महासचिव प्रदीप बिस्वास का कहना है कि न सिर्फ बैंक कर्मचारियों बल्कि बैंकों को भी उस लागत की सरकार की तरफ से अभी तक भरपाई नहीं की गई है जो एटीएम को नए नोटों के मुताबिक कैलिब्रेट करने और पूरे सिस्टम को नए सिरे से स्थापित करने में आई था।

बिस्वास का कहना है कि भारत सरकार का यह दावा झूठा साबित हुआ है कि नोटबंदी कालेधन को पकड़ने के लिए की गई थी, क्योंकि 99 फीसदी पैसा बैंकों में वापस आ गया। बिस्वास नोटबंदी को एक घोटाला बताते हैं और काले पैसे को सफेद में बदलने की साजिश करार देते हैं।

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बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों का कहना है कि नोटबंदी के कारण बैंकों को रोजमर्रा के काम पर बहुत बुरा असर पड़ा, जिसके चलते कर्ज देने और डूबे कर्जों की उगाही की प्रक्रिया लगभग ठप हो गई। उन्होंने बताया कि नोटबंदी के कारण बैंक क्रेडिट ग्रोथ घटकर 5.1 फीसदी पर आ गई जो कि इससे पिछले सालों में औसतन 11.72 फीसदी रही थी।

गौरतलब है कि रिजर्व बैंक ने भी अपनी हाल की सालाना रिपोर्ट में माना है कि नोट बदलने की प्रक्रिया में व्यस्त रहने के कारण बैंको के कर्ज देने की ग्रोथ को झटका लगा है। ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कंफेडरेशन के महासचवि राजेंद्र देव का कहना है कि शुरु में उन्हें सरकार का यह कदम अच्छा लगा था, लेकिन यह इतना भयावह होगा, इसकी कल्पना नहीं की थी। वे इसे एक बुरे सपने की तरह याद करते हैं। उन्होंने कहा कि लोगों को लगता था कि हम जानबूझकर लोगों को पैसा नहीं दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि नोटबंदी के दौरान सरकार सिर्फ प्राइवेट बैंकों को ही नए नोट भेज रही थी, सरकारी बैंकों को पास कैश की भारी कमी थी।

दवे ने कहा कि इस बात की जांच होनी चाहिए थी कि बड़े-बड़े उद्योगपतियों को पास नए सीधे प्रिंटिंग प्रेस से नोट कैसे पहुंचे।

वहीं कुछ ऐसे भी हैं, जो नोटबंदी को अच्छा भी बताते हैं। पंजाब नेशनल बैंक के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर संजीव शरण का कहना है कि, “नोटबंदी से लोगों को उस समय भले ही परेशानी हुई, लेकिन बैंकों के पास कम ब्याज पर डिपॉजिट आ गए जिसकी वजह से बैंकों ने कर्ज देने में भी ब्याज को घटाया।”

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