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अर्थतंत्र की खबरें: अनिश्चितता के दौर में सोना-चांदी बने निवेशकों की पहली पसंद और 'AI से नौकरियों पर खतरा कम'

इस साल चांदी की कीमतों में 137 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई, जबकि सोने की कीमत करीब 68 प्रतिशत बढ़ी।

फोटो: IANS
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इस साल दुनिया में कई तरह की अनिश्चितताएं रहीं, लेकिन कीमती धातुओं (सोना और चांदी) ने निवेशकों को शानदार मुनाफा कराया। खास बात यह रही कि चांदी ने सभी को चौंकाते हुए सोने से भी ज्यादा लाभ कराया।

इस साल चांदी की कीमतों में 137 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई, जबकि सोने की कीमत करीब 68 प्रतिशत बढ़ी।

शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव के कारण लोग सुरक्षित निवेश की ओर बढ़े, जिसमें सोना और चांदी सबसे अच्छे विकल्प बने। इनमें चांदी सबसे आगे रही।

सोने की कीमत बढ़ने के पीछे कई कारण रहे, जैसे- भू-राजनीतिक तनाव, महंगाई की चिंता और अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद, जिनकी वजह से लोगों ने सोने में ज्यादा निवेश किया।

सोने की कीमत बढ़ने का एक बड़ा कारण यह भी है कि दुनिया के कई केंद्रीय बैंक लगातार सोना खरीद रहे हैं। लगातार तीन वर्षों - 2022, 2023 और 2024 में केंद्रीय बैंकों ने हर साल 1,000 टन से ज्यादा सोना खरीदा। इसके अलावा, कई निवेशकों ने गोल्ड ईटीएफ के जरिए भी सोने में पैसा लगाया।

दुनिया के बड़े बैंक भी सोने को लेकर काफी सकारात्मक हैं। गोल्डमैन सैक्स ने अनुमान लगाया है कि 2026 के अंत तक सोने की कीमत 4,900 डॉलर प्रति औंस तक जा सकती है। वहीं, ड्यूश बैंक का मानना है कि 2026 में सोने की कीमत 4,450 डॉलर प्रति औंस हो सकती है।

हालांकि, चांदी की कीमत बढ़ने का कारण सिर्फ सुरक्षित निवेश की मांग नहीं है। इसका इस्तेमाल उद्योगों में भी बहुत होता है। सोलर पावर, इलेक्ट्रिक वाहन और इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने में चांदी की मांग तेजी से बढ़ी है।

इसके साथ ही चांदी की आपूर्ति सीमित रही, जिससे इसकी कीमत और ज्यादा बढ़ गई। कीमती धातु और उद्योग में इस्तेमाल, इन दोनों कारणों से चांदी ने 2025 में सोने से दोगुना फायदा दिया।

एक्सपर्ट्स का मानना है कि 2026 में भी चांदी की तेजी बनी रह सकती है। मजबूत औद्योगिक मांग और कम आपूर्ति के कारण अगले साल चांदी की कीमत 15 से 20 प्रतिशत तक और बढ़ सकती है।

कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि 2026 के पहले छह महीनों में ही चांदी 20 से 25 प्रतिशत तक का और फायदा दे सकती है। हालांकि, वे सलाह देते हैं कि निवेश धीरे-धीरे करना चाहिए, खासकर जब कीमतों में थोड़ी गिरावट आए।

सोने का भविष्य भी 2026 के लिए अच्छा माना जा रहा है। केंद्रीय बैंकों की खरीद, अमेरिका में ब्याज दरें कम होने की संभावना और दुनिया में चल रही अनिश्चितताएं सोने की कीमत को सहारा दे सकती हैं।

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पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में एआई से दफ्तरी नौकरियों पर खतरा कमः आईटी सचिव

सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) सचिव एस कृष्णन ने कहा है कि कृत्रिम मेधा (एआई) के कारण ज्ञान-आधारित नौकरियों के प्रभावित होने का जोखिम पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले भारत में कम है। कुल कार्यबल में दफ्तर वाली नौकरियों की अपेक्षाकृत कम हिस्सेदारी और विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग एवं गणित (स्टेम) आधारित रोजगारों का वर्चस्व होने के कारण ऐसा है।

कृष्णन ने कहा कि रोजगार पर एआई के संभावित प्रभावों को लेकर जो आशंकाएं जताई जा रही हैं, भारत के संदर्भ में उन्हें उसी तीव्रता से नहीं देखा जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि भारत में दफ्तर वाली नौकरियों का अनुपात पश्चिमी देशों की तुलना में काफी कम है, जिससे दिमाग से किए जाने वाले कार्यों पर आधारित नौकरियों पर एआई से पड़ने वाला जोखिम सीमित रहता है।

कृष्णन ने कहा, “भारत में अन्य नौकरियों की तुलना में दफ्तर वाली नौकरियों की संख्या कम है। इसलिए ज्ञान-आधारित नौकरियों पर एआई का जोखिम उतना गंभीर नहीं है जितना अन्य देशों में है। इसके अलावा, दफ्तर वाले अधिकांश रोजगार स्टेम क्षेत्र में हैं, जो हमारे लिए अवसर भी पैदा करते हैं।”

आईटी सचिव ने कहा कि एआई ऐसी पहली प्रौद्योगिकी है, जो मुख्य रूप से ज्ञान-आधारित कर्मचारियों और संज्ञानात्मक श्रम को प्रभावित करने की क्षमता रखती है। पहले की औद्योगिक और अन्य क्रांतियों में मशीनों ने मुख्य रूप से शारीरिक श्रम की जगह ली थी, न कि दिमाग से किए जाने वाले कार्यों को प्रतिस्थापित किया था।

हालांकि, उन्होंने इस धारणा से असहमति जताई कि एआई निकट भविष्य में इंसानी कामगारों की जरूरत को पूरी तरह समाप्त कर देगा।

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छोटी एवं मझोली कंपनियों पर इस साल रहा भारी दबाव, सतर्कता से भरा परिदृश्य

साल 2025 में शेयर बाजार का रुझान अपेक्षाकृत असंतुलित रहा, जिसमें छोटी और मझोली कंपनियों का प्रदर्शन बड़ी कंपनियों के मुकाबले फीका पड़ गया। पिछले दो वर्षों की तेज बढ़ोतरी के बाद उच्च मूल्यांकन और मुनाफावसूली से ये दोनों श्रेणियां दबाव में रहीं जबकि बीएसई सेंसेक्स ने स्थिरता एवं बेहतर रिटर्न दिया।

आंकड़ों के मुताबिक, मझोली कंपनियों का मानक सूचकांक बीएसई मिडकैप में इस साल 24 दिसंबर तक 360.25 अंक यानी 0.77 प्रतिशत की मामूली बढ़त ही दर्ज की गई जबकि छोटी कंपनियों का सूचकांक बीएसई स्मॉलकैप में अब तक 3,686.98 अंक यानी 6.68 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।

इसके उलट बीएसई पर सूचीबद्ध 30 बड़ी कंपनियों का सूचकांक सेंसेक्स इस दौरान कुल 7,269.69 अंक यानी 9.30 प्रतिशत उछला है। इससे स्पष्ट है कि निवेशकों ने अनिश्चित वैश्विक माहौल में अपेक्षाकृत सुरक्षित और स्थिर माने जाने वाले बड़े शेयरों को प्राथमिकता दी है।

विशेषज्ञों का कहना है कि वर्ष 2025 में स्मॉलकैप और मिडकैप शेयरों का कमजोर प्रदर्शन मुख्य रूप से 'बाजार सामान्यीकरण' का परिणाम है। इसके पहले वर्ष 2023 और 2024 में इन शेयरों ने असाधारण रिटर्न दिए थे।

ऑनलाइन ट्रेडिंग फर्म एनरिच मनी के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) पोनमुडी आर. ने कहा, "वर्ष 2024 में बीएसई स्मॉलकैप सूचकांक 29 प्रतिशत से अधिक और मिडकैप सूचकांक करीब 26 प्रतिशत चढ़ा था सेंसेक्स से कहीं ज्यादा था। इस तेज उछाल के कारण कई छोटी कंपनियों के शेयरों के दाम उनकी वास्तविक आय वृद्धि की तुलना में काफी ऊपर चले गए थे। लेकिन इस साल इस असंतुलन में सुधार देखने को मिला।"

बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि छोटे एवं मझोले शेयर आम तौर पर घरेलू निवेशकों के पसंदीदा होते हैं जबकि विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) बड़े और स्थापित कंपनियों के शेयरों पर ज्यादा भरोसा करते हैं।

वर्ष 2025 में रुपये में तेज गिरावट, भारत-अमेरिका व्यापार वार्ताओं को लेकर अनिश्चितता और एफआईआई की लगातार बिकवाली ने व्यापक बाजार में जोखिम से बचने की प्रवृत्ति को बढ़ाया। इसका सीधा असर स्मॉलकैप और मिडकैप शेयरों पर पड़ा, जो तरलता, वित्तपोषण लागत और आर्थिक सुस्ती को लेकर अधिक संवेदनशील होते हैं।

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