संपादकीय

संपादकीय : खिलाड़ियों के 'मन की बात' और इंसाफ के लिए दंगल

अगर महिला पहलवान शोषण के खिलाफ जांच की मांग को लेकर वापस धरने पर बैठी हैं, तो इसकी गंभीरता को समझना जरूरी है। प्रधानमंत्री जी, क्या उनकी बात नहीं सुनी जानी चाहिए?

कथित यौन शोषण के खिलाफ महिला पहलवान दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दे रही हैं
कथित यौन शोषण के खिलाफ महिला पहलवान दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दे रही हैं 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय एथलीट, विशेष रूप से ओलंपिक पदक और अन्य वैश्विक  प्रतियोगिताओं को जीतने वाले खिलाड़ियों को मान-सम्मान करने में पीछे नहीं रहते हैं। उनके आलोचक भी इस बात को मानेंगे कि वे खेल क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल करने वालों के साथ फोटो खिंचवाने के लिए सदा तत्पर भी रहते हैं। उन्होंने अपनी छवि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पेश की है जो खेलों को लेकर काफी उत्साहित रहता है। पदक जीतकर लौटे खिलाड़ियों को उन्होंने घर बुलाकर दावत दी और सोशल मीडिया पर भी उन्हें शाबाशी देने में आगे रहे।

ऐसे में, हैरानी इस बात को लेकर है कि आखिर पहलवानों के जारी विरोध को वह किस तरह देख रहे हैं या समझ रहे हैं, क्योंकि इस मुद्दे पर उनकी तरफ से एकदम सन्नाटा है। ऐसा तब है जब विरोध प्रदर्शन कर रही महिला पहलवानों ने विनती की है कि वे उनके ‘मन की बात’  तो सुन लें। मीडिया से बात करते हुए देश के लिए पहला पदक जीतने वाली महिला पहलवान साक्षी मलिक रो पड़ती हैं। वे कहती हैं, “हमारी बात कोई नहीं सुन रहा...हमें तो झूठा साबित किया जा रहा है...”

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महिला पहलवानों ने भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद 66 वर्षीय बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण के गंभीर आरोप लगाए हैं। यह महिला पहलवान इस साल जनवरी में धरने पर बैठी थीं, तब केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने यह दिलासा देकर उन्हें मना लिया था कि एक कमेटी बनाई जाएगी जो आरोपों की जांच करेगी। इस मामले में छह सदस्यों वाली एक कमेटी बनाई भी गई थी, जिसकी अध्यक्षता मशहूर बॉक्सर एम सी मेरीकॉम (जो संयोग से बीजेपी द्वारा नामित सांसद भी हैं) को सौंपी गई थी। इस कमेटी में एक अन्य मशहूर एथलीट और भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष पीटी ऊषा भी शामिल हैं। कहा जाता है कि इस कमेटी ने अप्रैल के पहले सप्ताह में अपनी रिपोर्ट केंद्रीय खेल मंत्रालय को सौंप दी है।

कमेटी में भरोसेमंद नाम होने के बावजूद, महिला पहलवानों ने पाया कि कमेटी ने जांच के दौरान कुछ अलग ही रवैया अपना रखा था। आरोप है कि कमेटी के सदस्यों ने जांच के बारे में कुछ चुनिंदा जानकारियां मीडिया के एक धड़े के साथ साझा कीं। इतना ही नहीं, भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और 6 बार के सांसद बृजभूषण शरण सिंह के नजदीकी लोग प्रदर्शन करने वाली महिला पहलवानों और उनके परिवार के सदस्यों को फोन कर धमका रहे हैं कि अगर इस मामले में एफआईआर दर्ज कराने पर जोर दिया तो नतीजे अच्छे नहीं होंगे।

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महिला पहलवानों ने मामले में एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने इसमें जांच का बहाना कर इसे लटका दिया, जिसके बाद इन्हें सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। मामले पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की पीठ के सामने कहा कि, ‘एफआईआर दर्ज करने के लिए कुछ खास मुद्दों की प्राथमिक जांच जरूरी है।‘

लेकिन पूरे मामले की निगरानी करने वालों के लिए बुरी खबर तो यह है कि जांच कमेटी की/के सदस्य ने खेल पत्रिका स्पोर्ट्स्टार को बताया कि जो अंतिम रिपोर्ट खेल मंत्रालय को अप्रैल माह की शुरुआत में सौंपी गई है, उस पर उन्होंने हस्ताक्षर तो किए लेकिन उन्हें रिपोर्ट पूरी नहीं पढ़ने दी गई। उन्होंने कहा, “मुझे पूरी रिपोर्ट नहीं पढ़ने दी गई और मैंने इस पर आपत्ति भी जताई थी। रिपोर्ट 5 अप्रैल को मंत्रालय को भेज दी गई, लेकिन मुझे पता है कि मैंने जो आपत्तियां पहले उठाई थीं, उन्हें रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया है।”

उन्होंने आगे कहा कि जब कमेटी से इन मुद्दों पर बात की गई तो कहा गया कि ऐसा नहीं हुआ। कमेटी ने कथित तौर पर उन गंभीर मुद्दों पर कोई सुझाव भी नहीं दिया है, जिन्हें विरोध कर रहे पहलवानों ने उठाया है।

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दरअसल यह पहला मौका नहीं है जब खेल प्रशासक, कोच और कप्तानों पर यौन शोषण के आरोप लगे हों। ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि बीते 10 साल के दौरान खेल प्राधिकरण (स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) के विभिन्न परिसरों में कम से कम 40 ऐसी शिकायतें दर्ज कराई गई हैं। ज्यादा दिन नहीं हुए हैं जब हरियाणा के एक मंत्री और पूर्व हॉकी कप्तान संदीप सिंह पर इसी तरह के आरोप लगे थे और उन्हें मंत्रालय छोड़ना पड़ा था।

भारतीय कुश्ती संघ कहता है कि ऐसी शिकायतों के लिए एक शिकायत निवारण समिति है। साथ ही उसका कहना है कि पहलवानों ने इस कमेटी से संपर्क ही नहीं किया था। लेकिन अगर हम देश-समाज में गहरे तक मौजूद पितृसत्तात्मक सोच की बात करें कि महिलाओं के लिए ऐसी शिकायतों को सार्वजनिक करना आसान भी नहीं है।

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ऐसे एथलीट जो खेलों में देश का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं या खेल को अपना करियर बनाना चाहते हैं, उनके लिए अपने कोच या संरक्षक के खिलाफ जाना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि इससे उनके पूरे खेल करियर पर विराम लग सकता है। खिलाड़ियों को जिस तरह का समर्थन मिलता है, ऐसे में इस जोखिम को उठाना आसान भी नहीं है। इस सबके बावजूद अगर महिला पहलवान शोषण के खिलाफ जांच की मांग को लेकर वापस धरने पर बैठी हैं, तो इसकी गंभीरता को समझना जरूरी है।

प्रधानमंत्री जी, क्या उनकी बात नहीं सुनी जानी चाहिए?

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