विधानसभा चुनाव 2023

यूपी चुनाव: भइया, कुछ भी कह ला...अबकी कौनो लहर ना हौ...पूर्वांचल में देखिहे...बड़े-बड़े लोगन क सीटिया फंस गइल हौ..

बीजेपी की चिंता इससे समझी जा सकती है कि खुद पीएम मोदी 3 से 5 मार्च तक वाराणसी में ही डेरा डालने वाले हैं। मोदी पिछले चुनाव में भी इन्हीं तारीखों को वाराणसी में डेरा डाले हुए थे। लेकिन इस बार विपक्ष ने भी उनको उनके ही गढ़ में घेरने की तैयारी कर ली है।

फाइल फोटो : Getty Images
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वाराणसी से करीब तीस किलोमीटर दूर गाजीपुर सीमा पर मार्कण्डेय महादेव मंदिर के पास वाली चाय की दुकान पर काफी देर से चल रही बतकही सुन कुल्हड़ में चाय छानते बनवारी पाल बोल पड़े... भइया, कुछ भी कह ला... अबकी कौनो लहर ना हौ... पूर्वांचल में देखिहे... बड़े-बड़े लोगन क सीटिया फंस गइल हौ...। (भइया, कुछ भी कहो। इस बार कोई लहर नहीं है। बड़े-बड़े लोगों की सीटें फंस गई हैं।) बतकही के केन्द्र में सिर्फ वाराणसी ही नहीं आसपास के जिलों की 60 से ज्यादा विधानसभा सीटों का वारा- न्यारा हो रहा है। यहां छोटी-मोटी बहसों से वैसे भी पेट नहीं भरता।

बीजेपी की चिंता इस तरह भी समझी जा सकती है कि खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 3 से 5 मार्च तक अपने लोकसभा क्षेत्र- वाराणसी में ही डेरा डालने वाले हैं। वैसे, मोदी पिछले चुनाव में भी इन्हीं तारीखों को वाराणसी में डेरा डाले हुए थे। लेकिन इस बार विपक्ष ने भी उनको उनके ही गढ़ में घेरने की तैयारी कर ली है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी उन दिनों इसी इलाके में डेरा डालने वाले हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के भी इसी दौरान यहां आने का कार्यक्रम फ़ाइनल हो चुका है।

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दरअसल, अब तक विभिन्न फेज में बीजेपी को बहुत उत्साहजनक सूचनाएं नहीं मिली हैं। इसलिए पार्टी के नेता भी मान रहे हैं कि आजमगढ़, जौनपुर, बलिया, गाजीपुर ही नहीं, बनारस की आठ में से चार सीटें ऐसी हैं जहां बीजेपी की राह इस बार आसान नहीं होगी। वजह सैदपुर के आनंद भूषण तिवारी की इस बात से समझ में आती हैः पूर्वांचल में बीजेपी के लिए पिछले चुनाव में राजभर, पटेल और निषाद वोटर बूस्टर डोज साबित हुए थे, लेकिन यह सियासी समीकरण इस बार गड़बड़ाया नजर आ रहा है। बीजेपी के साथी रहे भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने सपा के साथ जाकर बीजेपी की चिंता बढ़ा दी है।

पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज के करीबी रहे समाजवादी विचारक विजय नारायण भी कहते हैं कि 2014, 2017 और 2019 की मोदी लहर में बीजेपी ने छोटे दलों का साथ लेकर सभी जातीय समीकरण ध्वस्त कर दिए थे लेकिन इस बार यह इंजीनियरिंग सपा ने हथिया ली और इसका उसे लाभ भी दिख रहा है। सपा का सारा ध्यान छोटे दलों के वोट बिखरने से रोकना है जिसके लिए वे कड़ी मेहनत भी कर रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता संतोष सिंह भी इसी सोशल इंजीनियरिंग के कारण बनारस समेत आसपास की सीटों पर बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती मानते हैं। उनका दावा है कि बनारस में बीजेपी की राह इस बार आसान नहीं रहेगी, क्योंकि शहर दक्षिणी, कैंटोनमेंट, सेवापुरी और पिंडरा सीटों पर उसे कड़ी चुनौती मिल रही। इनमें शहर दक्षिणी, सेवापुरी और कैंटोनमेंट पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्रका हिस्सा हैं।

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कैंटोनमेंट और शहर दक्षिणी पिछले तीन दशक से बीजेपी के कब्जे में हैं लेकिन इस बार कैंटोनमेंट से कांग्रेस के पूर्व सांसद डॉ राजेश मिश्रा के आने से ब्राह्मणों का बड़ा हिस्सा उनकी तरफ जा सकता है। इसके लिए संकट मोचन मंदिर के महंत और बीएचयू आईआईटी के प्रोफेसर विश्वंभर नाथ मिश्रा खुलकर उनके पक्ष में आ गए हैं और ब्राह्मणों को एकजुट होकर राजेश मिश्रा के पक्षमें मतदान करने की अपील कर रहे हैं। दूसरी ओर, बीजेपी का गढ़ कहे जाने वाले शहर दक्षिणी में कैबिनेट मंत्री नीलकंठ तिवारी की प्रतिष्ठा भी दांव पर लग गई है। उन्हें नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। यहां से सपा ने शहर के मृत्युंजय महादेव मंदिर के महंत के पुत्र छात्र राजनीति से निकले युवा नेता किशन दीक्षित को मैदान में उतारकर चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। वैसे, इलाके के साड़ी कारोबारी शिवकुमार कहते हैं कि बनारस में जो भी विकास हुआ है, वह प्रधानमंत्री मोदी की देन है और लोग मोदी के नाम पर वोट देंगे, प्रत्याशी के नाम पर नहीं। लेकिन इलाके के विकास यादव का मानना है कि नीलकंठ तिवारी से ब्राह्मण वोटर इसलिए भी नाराज हैं कि काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर निर्माण के दौरान लोगों की सुनी नहीं गई।

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सेवापुरी सीट पर सपा के पूर्व मंत्री रहे सुरेंद्र पटेल बड़ी चुनौती इसलिए भी बने हुए हैं कि बीजेपी ने अपना दल के विधायक रहे नील रतन पटेल नीलू को अपना प्रत्याशी बनाया है और वह लगातार अस्वस्थ चल रहे हैं। उन्हें व्हील चेयर पर बैठकर प्रचार करते देखा जा सकता है।

पिछले चुनावों में मोदी लहर के बाद भी पूर्वांचल के कई जिलों में बीजेपी विपक्षी दलों से पीछे रह गई थी। इनमें आजमगढ़ की दस में से महज एक सीट पर उसे जीत मिली थी। बीजेपी पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के साथ ही जिलों को आपस में जोड़ने वाले लिंक रोड, वाराणसी प्रयागराज हाईवे परियोजना के साथ मेडिकल कॉलेज आदि को खूब उछाल रही है और उसे पहले चार चरणों में हुए नुक़सान की यहां से भरपाई की उम्मीद है। लेकिन वाराणसी के आसपास के जिलों में यादव और मुसलमान मतदाताओं की तादाद अच्छी खासी है। ऐसे में, बीजेपी भी अपनी राह कठिन मान रही है।

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