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CAA पर भड़के असम को ठंडा करने में बीजेपी हलकान, बिना आधार अनाप-शनाप घोषणाओं से कर रही गुमराह

नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे असम में भले हिंसा थमी हो, लेकिन शांतिपूर्ण विरोध -प्रदर्शन जारी हैं। ऐसे में, असम की बीजेपी सरकार ने असम के मूल वासियों के लिए भूमि अधिकार सहित कई लुभावनी नीतियों की घोषणा की है, जिसे लोग गुमराह करने वाला बता रहे हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

नरेंद्र मोदी सरकार के लिए असम समेत लगभग पूरा पूर्वोत्तर गले की हड्डी बना हुआ है। संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के साथ पूरे देश में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनसीआर) की बातों ने शेष इलाकों की तरह यहां भी माहौल गर्मा रखा है। हिंसा भले नहीं हो रही है लेकिन शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन के क्रम ने सरकार को परेशान कर रखा है। ऐसे में, असम की सर्वानंद सोनोवाल सरकार की असम के मूल निवासियों के लिए भूमि अधिकार नीति सहित कई लोक लुभावन नीतियों की घोषणा को भी संदेह की नजर से ही देखा जा रहा है। सरकार कह तो रही है कि असम के लोगों की भाषायी और सांस्कृतिक अस्मिता की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी और घुसपैठिये भूमि नहीं खरीद पाएंगे लेकिन लोग असली मंशा को लेकर आशंकित तो हैं ही।

Published: 25 Dec 2019, 8:09 PM IST

सरकार के कुछ कदमों के बारे में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने जो जानकारी दी है, वही संदेह पैदा करने वाली है। विस्वसरमा की मानें, तो विधानसभा के अगले सत्र में राज्य सरकार दो नए कानून लाने वाली है। एक, कानून के जरिये मूल निवासियों के भूमि अधिकार को सुरक्षित किया जाएगा। कैबिनेट में इस कानून पर चर्चा हो चुकी है। जैसे ही यह कानून प्रभावी होगा, असम में मूल निवासी ही एक दूसरे को भूमि बेच पाएंगे। बाहरी व्यक्ति को भूमि बेचने पर रोक लग जाएगी। दो, एक अन्य कानून के जरिये असम के वैष्णव मठ- सत्र, सहित अन्य ऐतिहासिक धरोहर वाले स्थलों को अतिक्रमण से बचाने की व्यवस्था की जाएगी।

Published: 25 Dec 2019, 8:09 PM IST

लोगों के संदेह की वजह भी है। असम में मूल निवासी की परिभाषा अब भी निश्चित नहीं हो पाई है। असम समझौते के प्रावधान के तहत गठित कमेटी को परिभाषा तय करने में ही चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। बिस्वसरमा का भी कहना है कि सरकार असम समझौते के अनुच्छेद 6 के तहत इसकी परिभाषा तय होने का इंतजार कर रही है। मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल का भी कहना है कि एक उच्च स्तरीय कमेटी मूल निवासी की परिभाषा तय करने के लिए हर वर्ग के लोगों से सलाह कर रही है। अधिकतर लोग 1951 को कट ऑफ डेट मानने का सुझाव दे रहे हैं। अभी तक कुछ जनजातीय इलाकों में भूमि सुरक्षा का कानून लागू है। जैसे ही मूल निवासी की परिभाषा निर्धारित हो जाएगी, समूचे असम में यह नीति लागू हो जाएगी। लेकिन बिस्वसरमा यह भी कहते हैं कि सरकार ने अपने स्तर पर भी एक परिभाषा तैयार की है जिसके अनुसार मूल निवासी अपनी भूमि किसी मूल निवासी को ही बेच सकता है। 1971 के बाद आए किसी घुसपैठिये को भूमि नहीं बेची जा सकती।

Published: 25 Dec 2019, 8:09 PM IST

कैबिनेट ने नई भूमि नीति- 2019 को कई महीने पहले ही स्वीकृति दी, पर इस बारे में घोषणा अब की गई है। समझा यही जा रहा है कि यह सब इसलिए है ताकि लोगों के गुस्से को कम किया जाए। असम में 1958, 1968, 1972 और 1989 में भूमि नीतियों की घोषणा हो चुकी है। 2019 की भूमि नीति की तरह 1989 की भूमि नीति में भी भूमिहीन मूल नागरिकों को भूमि देने की बात कही गई थी लेकिन मूल निवासियों को परिभाषित नहीं किया गया था। कुल मिलाकर आज भी स्थिति वही है। सरकार भी नहीं बता पा रही कि जब तक यह मुद्दा स्पष्ट नहीं होता, इस नई नीति से क्या अंतर पड़ने वाला है।

Published: 25 Dec 2019, 8:09 PM IST

वैसे, राज्य सरकार ने एक और कदम उठाया है। उसने केंद्र से संविधान के अनुच्छेद 345 में संशोधन कर असमिया को प्रादेशिक भाषा का दर्जा प्रदान करने का अनुरोध किया है। राज्य में अंग्रेजी, हिंदी और बांग्ला माध्यम के स्कूलों में भी दसवीं कक्षा तक असमिया की पढ़ाई को अनिवार्य बनाया जाएगा। वैसे, बराक घाटी, बोडो क्षेत्र और पर्वतीय क्षेत्र में ऐसा करना अनिवार्य नहीं होगा। इसके अलावा राज्य सरकार ने मिसिंग, राभा, सोनोवाल कछारी, ठेंगाल कछारी, देउरी और तिवा जनजातियों के लिए गठित स्वशासी परिषदों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने का अनुरोध भी केंद्र से किया है ताकि इन समुदायों को अनुदान राशि मिल सके। दरअसल, असम समझौते के अनुच्छेद 6 में बताया गया हैः असमिया लोगों की भाषाई, सांस्कृतिक, सामाजिक पहचान और धरोहर की सुरक्षा सुनिश्चित करने, संरक्षण करने और विकास करने के लिए संवैधानिक, वैधानिक और प्रशासनिक रक्षा कवच का इंतजाम किया जाएगा।

लेकिन हाल के विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने के बाद अपनी सुरक्षा-व्यवस्था कम कर दिए जाने के बाद भी अड़े रहने वाले पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल महंत का कहना है कि 1961 में ही कानून पारित कर असमिया को राज्य भाषा का दर्जा दिया जा चुका है। अब राज्य सरकार ऐसा ही कानून बनाने की बात कहते हुए लोगों को गुमराह कर रही है। ध्यान रहे कि महंत को एनएसजी समेत जेड प्लस सुरक्षा मिली हुई थी, लेकिन इसे घटाकर सीआरपीएफ जवानों के साथ जेड प्लस सुरक्षा का इंतजाम कर दिया गया है।

Published: 25 Dec 2019, 8:09 PM IST

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Published: 25 Dec 2019, 8:09 PM IST