मोदी सरकार द्वारा देश भर के करीब 358 कोयला खदानों को बगैर किसी नीलामी के 50 साल का एक्सटेंशन देने के फैसले पर सवाल खड़े हो गए हैं। इस फैसले से सरकार को करीब चार लाख करोड़ रुपये के नुकसान की आशंका है। दरअसल यह काम रेट्रोस्पेक्टिव तरीके से पुराने कानून में बदलाव के जरिये किया गया है। सरकार ने यह काम 2015 के माइनिंग कानून में संशोधन के जरिये किया है। इसके तहत इस संशोधन से पहले की जितनी लीज हैं, उन सबको 50 साल का एक्सटेंशन दे दिया गया। अभी करीब 288 और कोयला खदान पाइपलाइन में हैं, जिन्हें भी जल्द ही सरकार द्वारा एक्सटेंशन दिया जा सकता है।
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी किया है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने पांच महीने पहले नोटिस जारी किया था, लेकिन मोदी सरकार ने अभी तक उसका जवाब नहीं दिया। अगस्त के पहले सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट ने एकबार फिर सरकार को 3 हफ्ते मे जवाब दाखिल करने को कहा, लेकिन वह भी समाप्त हो गया और सरकार की ओर से अभी तक कोई जवाब नहीं दाखिल किया गया है।
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कांग्रेस ने खदानों को बगैर नीलामी के एक्सटेंशन देने पर पर सवाल खड़ा किया है। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने मोदी सरकार के 100 दिन को देश के लिए डरावना करार देते हुए कहा कि कांग्रेस की सरकार के समय सीएजी जैसी संस्थाएं थीं, जो इस सरकार में लगता है कि काल्पनिक हो गई हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने रेट्रोस्पेक्टिव तरीके से कानून को बदलकर सैकड़ों कोयला खदानों की लीज बगैर नीलामी के 50 साल के लिए बढ़ा दी है।
उन्होंने दिवंगत बीजेपी नेता अरुण जेटली को याद करते हुए कहा कि विपक्ष में रहते हुए उन्होंने बहुत तीखा ब्लॉग लिखकर खदानों के आवंटन में नीलामी की प्रक्रिया अपनाए जाने की बात की थी। पवन खेड़ा ने मोदी सरकार पर कुछ उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए पूछा, “आखिर वे कौन से उद्योगपति हैं, जिनको आप फायदा पहुंचाना चाहते थे, जिसके लिए आपने आनन-फानन में बिल पास करवा दिया?” कांग्रेस नेता ने बताया कि 11 मार्च, 2015 को कांग्रेस सांसद मणिशंकर अय्यर और गुलाम नबी आजाद ने इस बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने की मांग करते हुए इसका विरोध किया था। यहां तक कि सरकार के कई मंत्रियों ने भी इस तरह बिल पास कराए जाने का विरोध किया था, लेकिन सरकार ने इस बात को अनसुना करते हुए बिल को पास करा लिया।
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इस फैसले से देश को 4 लाख करोड़ के राजस्व के नुकसान का दावा करते हुए पवन खेड़ा ने कहा कि साल 2012 और 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन के लिए नीलामी का तरीका ही अपनाया जाना चाहिए जब तक कि कोई और बेहतर तरीका नहीं मिल जाता है। उन्होंने कहा कि इन निर्देशों की अवहेलना करते हुए सरकार ने बगैर नीलामी के इन खदानों की लीज बढ़ा दी। उन्होंने कहा कि इस फैसले से किसको लाभ हुआ इसकी जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस बात की भी जांच हो कि ये फैसला क्यों किया गया और किसको कितना लाभ पहुंचाया गया।
कांग्रेस नेता ने मोदी सरकार पर इस फैसले से राज्यों का अधिकार भी छिनने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इसका सबसे ज्यादा नुकसान राज्यों को हुआ है, क्योंकि उनका राजस्व नीलामी के जरिये ही आता है। उन्होंने कहा कि ओडिशा से लेकर झारखंड, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि तमाम राज्य इससे प्रभावित हुए हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने इस फैसले के जरिये न केवल संघीय ढांचे का उल्लंघन किया है बल्कि राजस्व के मामले में राज्यों का बड़ा नुकसान किया है। सरकार ने संघीय ढांचे के साथ कितना बड़ा मजाक किया है, यह उसका नायाब उदाहरण है। उन्होंने कहा कि इस मामले पर उनकी पार्टी जो कर सकती थी वह संसद में उसने किया और आगे भी करेगी। उन्होंने बताया कि इस मामले पर कांग्रेस की तरफ से एक आरटीआई लगाई गई है।
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गौरतलब है कि साल 2014 में तत्कालीन सीएजी विनोद राय ने 1 करोड़ 76 लाख रुपये के कथित कोयला घोटाले का मामला सामने लाकर हलचल खड़ा कर दिया था। उसके बाद देश भर में बने माहौल से केंद्र में बीजेपी की सरकार आ गई। लेकिन बाद में कोर्ट ने विनोद राय के कथित घोटाले के दावों को ही खारिज कर दिया। इससे स्पष्ट हो गया कि कथित घोटाले की हवा एक साजिश के तहत खड़ा किया गया था। यह औऱ स्पष्ट हो गया जब बीजेपी के सत्ता में आने के बाद उन्हीं विनोद राय को बीसीसीआई में अहम पद पर बैठा दिया गया।
लेकिन इस पूरे प्रकरण के बाद विपक्षी दलों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने ये तय किया था कि देश में कोयले खदानों के आवंटन की प्रक्रिया अब सिर्फ नीलामी के जरिये पूरी की जाएगी। इसके अलावा किसी दूसरे रास्ते को नहीं अपनाया जा सकता, क्योंकि उससे भ्रष्टाचार होने की प्रबल संभावना बन जाती है। लेकिन अब बीजेपी की ही सरकार में तब के अपने स्टैंड और सुप्रीम कोर्ट के तमाम निर्देशों को दरकिनार कर बड़े पैमाने पर कोयला खदानो को एक्सटेंशन देने से सरकार की नीयत पर सवाल तो खड़े होते ही हैं।
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