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इस वजह से ब्लैक फंगस का इलाज है महंगा, कैट ने उर्वरक मंत्री मनसुख मंडाविया को भेजा पत्र

कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री मनसुख मंडाविया को एक पत्र भेज आग्रह किया है की जो फार्मा कंपनियां ब्लैक फंगस का इंजेक्शन बना रही हैं, सरकार उनसे बात करके इन इंजेक्शनों की कीमतों को कम करवाए।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री मनसुख मंडाविया को एक पत्र भेज आग्रह किया है की जो फार्मा कंपनियां ब्लैक फंगस का इंजेक्शन बना रही हैं, सरकार उनसे बात करके इन इंजेक्शनों की कीमतों को कम करवाए। इसके बाद ही ब्लैक फंगस से संक्रमित आम आदमी भी अपना इलाज करा सकेगा।

कैट के अनुसार, ब्लैक फंगस का उपचार बहुत महंगा होने के कारण आम आदमी की पहुँच से बाहर है क्योंकि लिपोसोमल साल्ट जिससे ब्लैक फंगस के इंजेक्शन बनते हैं की कीमत लगभग 7 हजार रुपये है और ब्लैक फंगस से पीड़ित व्यक्ति के इलाज के लिए लगभग 70 से 100 इंजेक्शन की आवश्यकता होती है। वर्तमान में, सिप्ला, भारत सीरम, सीलोन लैब्स, मायलन लैबोरेटरीज, एबॉट लेबोरेटरीज आदि इस इंजेक्शन का निर्माण कर रही है।

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ब्लैक फंगस के इलाज के लिए पूरे देश में डॉक्टरों द्वारा निर्धारित एम्बोटेरिसिन बी -50 मिलीग्राम इंजेक्शन की कमी की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री मनसुख मंडाविया को पत्र भेज कहा है , विभिन्न राज्यों में ब्लैक फंगस के मामलों में वृद्धि हुई है और इन इंजेक्शनों की मांग अचानक काफी हद तक बढ़ गई है जबकि इन इंजेक्शनों की बाजार में कमी है । इसकी वजह ये है कि अब तक देश में इन इनेक्शनों की मांग लगभग न के बराबर थी।

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कैट के मुताबिक, पहले इन इंजेक्शनों को बनाने वाली फार्मा कंपनियां बाजार में करीब 2500 रुपये प्रति इंजेक्शन विशेष कीमत पर बाजार में यह इंजेक्शन दे रहीं थी। प्रत्येक रोगी के लिए अधिक मात्रा में इंजेक्शन की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए और इनकी कीमतों को वहनीय बनाने के लिए कैट ने सरकार से इस मामले को उन फार्मा कंपनियों के साथ उठाने का आग्रह किया है।

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कैट ने आग्रह कर कहा है कि, वर्तमान महामारी के मद्देनजर इन इंजेक्शनों की आपूर्ति को सरकार अपने के नियंत्रण में करें और इन इंजेक्शनों की आपूर्ति सीधे अस्पतालों को की जाए। ऐसे मामले में चूंकि वितरण श्रृंखला बीच में नहीं होगी, सरकार निमार्ताओं के साथ बातचीत कर कीमत कम करवा सकती है जो कम से कम 2000 रुपये प्रति इंजेक्शन तक होने की सम्भावना है।

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