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सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण पर उबाल, मोदी सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरेंगे कर्मचारी

मोदी सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के सरकारी उपक्रम स्टेड ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन (एसटीसी) और परियोजना एवं उपकरण निगम (पीईसी) से हाथ खींचने का प्रस्ताव रखा है। इस प्रस्ताव पर अमल के लिए वाणिज्य मंत्रालय कैबिनेट मंजूरी का इंतजार कर रहा है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

हाल ही में मोदी सरकार द्वारा देश के दस सरकारी बैंकों के विलय के फैसले के खिलाफ बैंक कर्मचारियों की नाराजगी अभी थमी भी नहीं थी कि सरकार ने सार्वजिक क्षेत्र की दो कंपनियों को बंद करने का प्रस्ताव रखकर कंपनी के कर्मचारियों और ट्रेड यूनियनों को भी भड़का दिया है। कई ट्रेड यूनियनों ने सार्वजनिक उपक्रमों को लेकर मोदी सरकार की नीति के खिलाफ नाराजगी जाहिर करते हुए विरोध करने का ऐलान किया है।

दरअसल मोदी सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के सरकारी उपक्रम स्टेड ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन (एसटीसी), और पोजेक्ट एवं परियोजना और उपकरण निगम (पीईसी) से हाथ खींचने का प्रस्ताव रखा है। इस साल बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया था कि सरकार ने इस साल सार्वजनिक उपकरणों के विनिवेश से 1.05 लाख करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा है। इसी के तहत वाणिज्य मंत्रालय ने सार्वजनिक उपक्रम एसटीसी और पीईसी को बंद करने का फैसला लिया है और इसके लिए कैबिनेट मंजूरी का इंतजार कर रहा है।

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सरकार के इस कदम से देश के ट्रेड यूनियन और कर्मचारी यूनियन फेडरेशन खासे नाराज हैं। सीआईटीयू, एआईटीयूसी, आईएनटीयूसी, एलपीएफ, एसईडब्ल्यूए और एचएमएस जैसे ट्रेड यूनियनों और कर्मचारी संगठनों ने मोदी सरकार के इस प्रस्ताव का विरोध करने का ऐलान किया है। ट्रेड यूनियन नेता और सीपीएम के पोलित ब्यरो सदस्य तपन सेन ने ऐलान किया है कि ट्रेड यूनियन मोदी सरकार की सभी वित्तीय योजनाओं के खिलाफ 30 सितंबर को एक महारैली करने जा रहे हैं। इसमें एसटीसी और पीईटी के निजीकरण का मुद्दा भी शामिल है।

बता दें कि भारत सरकार ने 1956 में स्टेट ट्रेड कॉर्पोरेशन (एसटीसी) का गठन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम को रूप में किया था, जो पूर्वी यूरोप के देशों के साथ व्यापार में शामिल था। बाद में एसटीसी बड़े पैमाने पर रसायन, दवाई, खाद्य तेल, सीमेंट, चीनी, गेहूं और यूरिया जैसी थोक वस्तुओं के आयात-निर्यात में शामिल हो गया।

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फाइनेंशियल एक्सप्रेस के मुताबिक एसटीसी की स्थापना के 15 साल बाद 1971 में सरकार ने रेलवे और इंजीनियरिंग उपकरणों के आयात-निर्यात के लिए एसटीसी के स्वामित्व में सहायक कंपनी पीईसी की स्थापना की। फिर साल 1997 में पीईसी को एक स्वतंत्र कंपनी के तौर मान्यता दी गई। लेकिन बाद के वर्षों में व्यापार और आयात-निर्यात पर पड़े बुरे प्रभाव के कारण इन कंपनियों के सभी खाते एनपीए में बदलते गए। इसकी वजह से साल 2018-19 में एसटीसी को 881 करोड़ का बड़ा घाटा हुआ, जिसके बाद से कंपनी इससे उहरने के लिए सरकार की ओर देख रही थी, लेकिन सरकार ने अब इससे पूरी तह हाथ छुड़ाने के संकेत दे दिए हैं।

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हालांकि, ट्रेड यूनियनों के रुख से लगता है कि एसटीसी और पीईसी को पूरी तरह बंद करने का प्रस्ताव सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। सीपीएम के पूर्व राज्यसभा सांसद तपन सेन का कहना है कि सभी लोग सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आरएसएस के भारतीय मजदूर संघ को छोड़कर सरकार के फैसले के खिलाफ सभी सेंट्रल ट्रेड यूनियन और फेडरेशन ऑफ एंप्लॉइज यूनियन ऑफ बैंकिंग, बीमा और रक्षा क्षेत्र के कर्मचारी संगठन 30 सितंबर को महारैली में विरोध प्रदर्शन करेंगे।

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