गुजरात में 2002 में हुए सांप्रदायिक दंगों के एक मामले में पीएम नरेंद्र मोदी समेत अन्य लोगों को एसआईटी से मिली क्लीन चिट को चुनौते देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है। दंगे में मारे गए कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की विधवा जकिया जाफरी की ओर से दायर इस याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय 19 नवंबर को सुनवाई करेगा। 2002 में भड़के दंगों में एहसान जाफरी की हत्या कर दी गई थी। दंगों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) ने इस मामले में मोदी समेत 58 अन्य लोगों को क्लीनचिट दे दी थी, जिसे मामले की सुनवाई कर रही अदालत ने स्वीकार कर लिया था।
इसके बाद एसआईटी की क्लीन चिट को गुजरात हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। 2017 में हाई कोर्ट ने भी एसआईटी की क्लीनचिट को बरकरार रखा था। इसके बाद मामले की पीड़ित और एहसान जाफरी की पत्नी जकिया ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए इस पर सुनवाई के लिए 19 नवंबर की तारीख तय की है। बता दें कि जकिया जाफरी और गुजरात दंगों में इंसाफ की लड़ाई में प्रमुख भूमिका निभाने वाली तीस्ता सीतलवाड़ एसआईटी के निष्कर्षों पर सवाल उठाती आई हैं।
बता दें कि गोधरा कांड के बाद भड़के दंगों के दौरान 28 फरवरी 2002 को दंगाइयों की एक भीड़ ने अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसायटी में हमला कर दिया था, जहां कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी समेत कई परिवार रहते थे। इस हमले में दंगाइयों ने जाफरी समेत 68 अन्य लोगों को बर्बरता से मौत के घाट उतार दिया था।
उस समय पीएम मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। दंगों को लेकर ये आरोप लगे कि उनकी सरकार और राज्य का पूरा तंत्र या तो हालात संभालने में नाकाम रहा या जानबूझकर उसने दंगाइयों को हिंसा की छूट दी। ऐसे में तत्कालीन सीएम रहे मोदी की भूमिका पर भी सवाल उठाए गए थे। जकिया जाफरी ने 2006 में मांग की थी कि तत्कालीन सीएम मोदी, उनके कुछ मंत्रियों और नौकरशाहों के खिलाफ भी केस दर्ज किया जाए। बाद में इन दंगों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एसआईटी का गठन किया गया था।
दंगाइयों की भीड़ ने 28 फरवरी 2002 को अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसाइटी में हमला करके एहसान जाफरी और 68 अन्य लोगों की हत्या कर दी थी।
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