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महाराष्ट्र के यवतमाल में किसानों की जान ले रहे हैं कीटनाशक

यवतमाल जिले में रसायनिक कीटनाशकों-जंतुनाशकों के छिड़काव से किसान और मजदूर बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं।

फाइल फोटो: Getty Images
फाइल फोटो: Getty Images 

अक्टूबर के पहले सप्ताह में महाराष्ट्र के यवतमाल जिले (विदर्भ क्षेत्र) से समाचार मिलने लगे कि पिछले लगभग दो महीनों में यहां निरंतरता से रसायनिक कीटनाशकों-जंतुनाशकों के छिड़काव के दौरान किसान और मजदूर जहरीलेपन से बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। 8 अक्टूबर तक मिले समाचारों के अनुसार इस एक ही जिले में लगभग 18 किसानों और खेत मजदूरों की इस कारण मौत हो गई, जबकि लगभग 800 लोगों को इस कारण अस्पतालों में भर्ती कराना पड़ा। कुछ समय पहले तक लगभग 450 प्रभावित लोगों के अस्पताल पहुंचने का समाचार प्राप्त हुआ था।

Published: 17 Oct 2017, 1:39 PM IST

सरकारी रिकार्ड में यवतमाल जिला पहले ही बहुत संवेदनशील क्षेत्र के रूप में दर्ज है क्योंकि यहां बड़ी संख्या में किसानों ने आत्महत्या की है। ऐसी स्थिति में यहां तो ऐसी व्यवस्था होनी ही चाहिए थी कि शुरुआती दौर में ही ऐसी किसी गंभीर समस्या को पहचान कर उसे दूर करने की असरदार कार्यवाही होती।

सवाल यह है कि जब इतनी बड़ी संख्या में कीटनाशक के जहर से प्रभावित लोग कई हफ्तों से अस्पताल पहुंच रहे थे और उनमें से कुछ की तो मृत्यु भी हो रही थी तो इतनी देर तक सरकारी स्तर पर बचाव के उपाय क्यों नहीं किए गए?

ध्यान रहे कि सरकारी रिकार्ड में यवतमाल जिला पहले ही बहुत संवेदनशील क्षेत्र के रूप में दर्ज है क्योंकि यहां बड़ी संख्या में किसानों ने आत्महत्या की है। ऐसी स्थिति में यहां तो ऐसी व्यवस्था होनी ही चाहिए थी कि शुरुआती दौर में ही ऐसी किसी गंभीर समस्या को पहचान कर उसे दूर करने की असरदार कार्यवाही होती। पर कई हफ्तों तक ऐसी कोई असरदार कार्यवाही नजर नहीं आई, जबकि कीटनाशकों के जहरीलेपन से प्रभावित लोगों की संख्या बढ़ती गई और वे सरकारी अस्पतालों में भी बड़ी संख्या में पहुंचते रहे।

जिन कीटनाशकों के असर में यहां के लोग आए हैं, उनका उपयोग विशेष तौर पर कपास की फसल में किया जाता है। कपास की फसल में पूरे देश में और विशेषकर इस क्षेत्र में बड़ा बदलाव आया है। अब बड़े क्षेत्र में बीटी कॉटन नामक जी एम (जेनेटिक रूप से संवर्धित) फसल बोई जाती है। जहां बीटी कॉटन फसल बोई जाती है, वहां किसानों के संकटग्रस्त होने के समाचार और किसानों की आत्महत्याओं के समाचार समय-समय पर मिलते रहे हैं। इसके अलावा बीटी कॉटन फसल के अवशेषों को खाने के बाद कई पशुओं के मरने के समाचार भी देश के कई हिस्सों से मिलते रहे हैं।

पहले जीएम फसलों के बारे में दावा किया गया था कि इससे रसायनिक कीटनाशकों और खरपतवारनाशकों आदि का उपयोग कम होगा, पर कुछ समय बाद देखा गया कि इनका उपयोग तो बढ़ रहा है। अधिक खतरनाक कीटनाशकों के उपयोग से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं के समाचार भी मिलते रहे हैं।

अब महाराष्ट्र में कीटनाशकों के जहरीले असर से इतने अधिक लोगों के प्रभावित होने के बाद तो सरकार को इस बारे में संवेदनशील होना चाहिए कि वह निरंतर खेती में तरह-तरह के खतरों का प्रवेश क्यों होने दे रही है। जिन कीटनाशकों से लोगों बीमार हो जा रहे हैं, वे जरूर ही बहुत खतरनाक होंगे। इनसे लोग तो प्रभावित हो रहे हैं, उसके अलावा इन जहरीले रसायनों का असर मिट्टी को भी जहरीला बनाता है, उसमें मौजूद उपजाऊपन बढ़ाने वाले सूक्ष्म जीवों को मार देता है, आसपास के मित्र कीटों और पक्षियों को तबाह करता है और जल को भी बहुत प्रदूषित करता है। इसलिए इस तरह की खतरनाक तकनीकों और उत्पादों को त्याग कर पर्यावरण की रक्षा वाली खेती की ओर जाना अब बहुत जरूरी हो गया है।

Published: 17 Oct 2017, 1:39 PM IST

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Published: 17 Oct 2017, 1:39 PM IST