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समर्थन वापस लेकर कश्मीर को 2019 के चुनाव में भुनाएगी बीजेपी !

जम्मू-कश्मीर में सरकार गिराकर क्या बीजेपी अपने इस फैसले को 2019 में भुनाने की कोशिश करेगी? क्या इस फैसले से कश्मीर के लोगों के सामने नए संकट नहीं खड़े होंगे। बीजेपी के इस कदम को कश्मीर के राजनीतिज्ञ अवसरवादिता करार दे रहे हैं।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

बीजेपी ने कश्मीर में चल रही गठबंधन सरकार से 2019 से महज छह महीने पहले समर्थन वापस लेकर क्या मास्टर स्ट्रोक चला है? क्या इसके बाद कश्मीर के हालात और खराब होंगे? क्या कश्मीरियों पर संकट के बादल और गहराएंगे? कश्मीरियों को आशंका है कि आने वाले दिन और खौफनाक हो सकते हैं, हिंसा से भरे हुए। ये तमाम सवाल कश्मीर से लेकर दिल्ली के सत्ता के गलियारों में माहौल को गरमाए हुए हैं।

पीडीपी और बीजेपी के गठबंधन को शुरुआत से ही कश्मीरियत के खिलाफ माना जा रहा था और इसके टूटने की आशंका शुरू से ही थी। लेकिन इतने साल गठबंधन की सरकार चलाने के बाद पीडीपी को बिना कोई संकेत दिए बीजेपी द्वारा समर्थन वापस लेने से साफ है कि बीजेपी 2019 के आम चुनावों के मद्देनजर कश्मीर का इस्तेमाल करने जा रही है।

इस मुद्दे पर जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ नेता, सीपीएम के राज्य प्रभारी मो. यूसूफ तारीगामी ने नवजीवन को बताया कि, “बीजेपी चाहती है कि कश्मीर में संकट बढ़े। इस गठबंधन सरकार के आने के बाद से कश्मीर घाटी और जम्मू के बीच जबर्दस्त ध्रुवीकरण किया गया। राजनीतिक रूप से पीडीपी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ, क्योंकि बेहद शर्मनाक ढंग से महबूबा मुफ्ती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम जपती थी और कश्मीर के समाधान के लिए सिर्फ मोदी को ही एक रास्ते के रूप में बताती थी। हालांकि इससे कश्मीर की राजनीतिक प्रक्रिया को धक्का लगेगा, सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है कश्मीर के लोगों का। राज्यपाल के शासन का मतलब मोदी का शासन और ये और दुखद होगा। ज्यादा तबाही वाले दिन होंगे, सीमा पर तनाव बढ़ेगा। दरअसल, मोदी सरकार 2019 के आम चुनावों के लिए कश्मीर का इस्तेमाल नफरत और हिंसा फैलाने के लिए करना चाहती है।”

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सैफुद्दीन सोज का भी मानना है कि ये गठबंधन तो टूटना ही था, क्योंकि ये स्वाभाविक नहीं था। उन्होंने कहा कि, “कश्मीर को खंडित करना बीजेपी के बस की बात नहीं है, क्योंकि कश्मीरियत एक बहुत बड़ी चीज। इस संकट से यह भी संभव है कि तमाम दलों के बीच कोई समझदारी बने। हालांकि ये नेशनल कांफ्रेस की समझारी और दूरदर्शिता पर निर्भर करता है।”

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इस तरह की आस अभी कश्मीर के दलों के भीतर नहीं दिखाई दे रही है। कांग्रेस ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। श्रीनगर में सामाजिक कार्यकर्ता तनवीर का कहना है कि ‘स्थिति बेहद तनावपूर्ण है। बीजेपी अब सीधे-सीधे अपने एजेंडे पर काम करेगी। हिंदुत्व के लिए कश्मीर को एक दुश्मन के तौर पर पेश करने से उसका राजनीतिक मकसद हल होगा। पाक से भी तनाव बढ़ेगा।’

जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार हनन के खिलाफ सबसे बुलंद आवाज परवीना अहंगार (एसोसिएशन ऑफ पेरेंट्स ऑफ डिसअपीयर्ड पर्सनस इन जम्मू-कश्मीर) ने नवजीवन को बताया कि बीजेपी के इस कदम से साफ हो गया है कि उसे कश्मीर के दुख से कोई वास्ता नहीं है। वह यहां हिंसा और नफरत फैलाना चाहते हैं। वैसे भी ये सरकार हमारे लिए कुछ नहीं कर रही थी। मां की तड़प को महबूबा मुफ्ती ने भी न समझा, हमारा कलेजा चाक है, हमारे बच्चे, हमारे घर वाले गायब हैं। ये दुख बढ़ता ही जा रहा है।

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