पूरा देश आज करगिल विजय दिवस के रूप में मना रहा है। 26 जुलाई का यह दिन भारतीय सेना के अदम्य साहस, अनुशासन और बलिदान को याद करने का दिन है, जिसने 1999 में दुश्मन की साजिश को नाकाम करते हुए भारत की सीमाओं की रक्षा की थी।
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इस युद्ध की शुरुआत 3 मई 1999 को हुई, जब जम्मू-कश्मीर के करगिल सेक्टर में एक बकरवाल चरवाहे ने भारतीय सेना को सूचित किया कि पाकिस्तानी सैनिकों ने ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया है। जांच करने गई भारतीय पेट्रोलिंग पार्टी पर हमला हुआ, जिसमें पांच जवानों की शहादत हुई। यह युद्ध धीरे-धीरे देश की सबसे बड़ी सैन्य कार्रवाई में तब्दील हो गया।
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पाकिस्तान की ओर से लगभग 5,000 सैनिकों ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की थी। इनका उद्देश्य श्रीनगर-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-1A) को काटकर लद्दाख को देश से अलग करना था। भारत ने इसके जवाब में ऑपरेशन विजय की शुरुआत की। भारतीय सेना ने 18,000 फीट की ऊंचाई पर, हाड़ कंपा देने वाली सर्दी और दुर्गम इलाकों में दुश्मन से लोहा लिया।
भारतीय वायुसेना ने इस अभियान में मिग-27 और मिग-29 जैसे लड़ाकू विमानों का उपयोग किया और दुश्मन के ठिकानों पर आर-77 मिसाइलों से हमला किया। युद्ध के दौरान करीब ढाई लाख गोलियां चलाई गईं और 300 से अधिक तोपों, मोर्टार और रॉकेट लॉन्चरों का प्रयोग किया गया। यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का सबसे तीव्र बमबारी वाला युद्ध माना जाता है।
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3 मई: घुसपैठ की जानकारी सामने आई
5 मई: पेट्रोलिंग पार्टी पर हमला, 5 जवान शहीद
26 मई: वायुसेना को कार्रवाई की अनुमति
6 जून: थलसेना ने भी पूरी ताकत से जवाब देना शुरू किया
13 जून: तोलोलिंग पहाड़ी पर पुनः कब्जा
4 जुलाई: टाइगर हिल पर तिरंगा फिर से लहराया गया
14 जुलाई: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विजय की घोषणा की
26 जुलाई: "विजय दिवस" घोषित किया गया
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इस युद्ध में 527 भारतीय जवान शहीद हुए, और 1,300 से अधिक घायल हुए। उनकी शहादत आज भी हर भारतीय के हृदय में जीवित है। विकट परिस्थितियों में लड़ी गई इस जंग में भारतीय जवानों ने न सिर्फ दुश्मन को पीछे हटाया, बल्कि यह स्पष्ट संदेश भी दिया कि भारत की सीमाओं की ओर आंख उठाने वालों को करारा जवाब मिलेगा।
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