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महाराष्ट्र: बदलते राजनीतिक समीकरणों के बीच राष्ट्रपति शासन के आसार, बचने के लिए राज्यपाल के पास हैं ये विकल्प

महाराष्ट्र में जब तक नया, मुख्यमंत्री नहीं मिलता तब तक राज्यपाल पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस को कार्यवाहक मुख्यमंत्री के तौर पर काम करने के लिए नियुक्त कर सकते हैं। संविधान के तहत यह जरूरी नहीं है कि मुख्यमंत्री का कार्यकाल विधानसभा के साथ ही खत्म हो जाए।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के करीब 20 दिन बाद भी सरकार गठन को लेकर तस्वीर साफ होती दिखाई नहीं दे रही है। बीजेपी-शिवसेना गठबंधन टूटने के बाद उम्मीद यह लगाई जा रही थी कि राज्य में शिवसेना और एनसीपी कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना लेंगे। लेकिन महाराष्ट्र में राजनीतिक समीकरण हर पल बदल रहे हैं।

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राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी ने सरकार गठन के लिए शिवसेना को और समय दिए जाने की मांग को खारिज करते हुए अब एनसीपी को 24 घंटे का समय दिया हुआ है. हालांकि बिना शिवसेना के समर्थन के एनसीपी-कांग्रेस की सरकार बनाना भी असंभव लग रहा है। एनसीपी के बाद कांग्रेस भी सरकार बनाने में कामयाब नहीं हुई तो इसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगना तय है। हालांकि किसी भी पार्टी की सरकार न बनने की स्थिति में राज्यपाल के पास 3 ऐसे विकल्प मौजूद होंगे, जिससे राज्य को नया मुख्यमंत्री मिल सकता है। आइए जानते हैं क्या हैं ये विकल्प।

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महाराष्ट्र में जब तक नया, मुख्यमंत्री नहीं मिलता तब तक राज्यपाल पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस को कार्यवाहक मुख्यमंत्री के तौर पर काम करने के लिए नियुक्त कर सकते हैं। संविधान के तहत यह जरूरी नहीं है कि मुख्यमंत्री का कार्यकाल विधानसभा के साथ ही खत्म हो जाए।

विधानसभा चुनाव के परिणामों में सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी के किसी विधायक को राज्यपाल मुख्यमंत्री बना सकते हैं। अब क्योंकि सबसे ज्यादा सीटें पाने वाली पार्टी बीजेपी है तो मुख्यमंत्री बनने के बाद बीजेपी को विधानसभा में बहुमत साबित करना होगा।

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तीसरे विकल्प के मुताबिक राज्यपाल महाराष्ट्र विधानसभा से चुनाव के जरिए अपने नेता का चुनाव करने के लिए कह सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के आधार पर ऐसा संभव है। उत्तर प्रदेश विधानसभा में कोर्ट के आदेश पर साल 1989 में ऐसा किया गया था।

अगर इन सभी विकल्पों के बाद भी राज्य में किसी पार्टी की सरकार नहीं बनती है तो राज्यपाल के पास राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचता। इस स्थिति में राज्य की कमान केंद्र के हाथ में आ जाएगी

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