देश

स्वच्छ भारत मिशन को भेदभाव के चश्मे से न देखा जाए: संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट से बिलबिलाई मोदी सरकार

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि लियो हेलर केउस इंटरव्यू से बिलबिला गई है जिसमें सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता संबंधी अभियान केमानवाधिकारों के चश्मे से देखने की वकालत की थी।

फोटो : भाषा सिंह
फोटो : भाषा सिंह दलितों और सिविल सोसायटी समूहों के प्रतिनिधियों से बात करते संयुक्त राष्ट्र के प्रतिवेदक लियो हेलर

सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता संबंधी मानवाधिकार पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक (यूएनएसआर) लियो हेलर ने कहा था कि मोदी सरकार का स्वच्छ भारत अभियान असंवेदनशील और निराश करने वाला है। हेलर ने अपने दो सप्ताह के भारत प्रवास के दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने स्वच्छ भारत अभियान का क्रियान्वयन देखा और इसे समझने के लिए दलितों, सीवर सफाई कामगारों और सिविल सोसायटी समूहों के प्रतिनिधियों से बातचीत की।

हेलर मोदी सरकार के निमंत्रण पर ही स्वच्छ भारत अभियान के देखने भारत आए थे। लेकिन इस अभियान के तहत अब तक बनाए गए शौचालयों की संख्या को उन्होंने अपर्याप्त पाया। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने कहा है कि इस अभियान में बुनियादी खामियां हैं जातियों, सीवर-सफाई कामगारों पर ध्यान नहीं दिया गया है और पीने के पानी की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। लियो हेलर से नवजीवन ने बातचीत की। पेश हैं उनसे बातचीत के अंश:

स्वच्छ भारत अभियान को लेकर आपकी क्या राय है?

मैंने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा है कि भारत जैसे विशाल और जटिल देश का आंकलन करने के लिए दो सप्ताह का समय पर्याप्त नहीं है। लेकिन, जातियों और स्वच्छता के आपसी समायोजन को लेकर मैं निराश हूं। यह एक बड़ी समस्या है। शौचालयों के निर्माण से उन लोगों के बुनियादी अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए जो साफ-सफाई के काम में लगे हैं। मुझे लगता है कि सरकार की नीतियों में स्पष्ट समझ, चहुमुखी प्रभाव और मानवाधिकार आधारित फोकस की कमी है

इस कार्यक्रम में आपको किन समस्याओं का सामना करना पड़ा?

पेयजल और स्वच्छता बुनियादी मानवाधिकार हैं, जिसका वादा भारत की मोदी सरकार ने संयुक्त राष्ट्र से भी किया है। भारत को खुले में शौच की प्रवृत्ति से मुक्त का लक्ष्य तो अच्छा है, लेकिन सिर्फ शौचालयों का निर्माण करके ही इसे पूरा नहीं किया जाना चाहिए। कम लागत वाले सुरक्षित और दीर्घकालिक शौचालयों के लिए पानी की पर्याप्त आपूर्ति पहली शर्त है।

इसके अलावा लोगों और संस्थाओं को अपमानित करने की रणनीति गरीबों और हाशिए पर पहुंचे तबकों के मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन है। किसी भी सरकार को उन लोगों से भेदभाव नहीं करना चाहिए जिनके पास शौचालय नहीं हैं। मेरी यात्रा के दौरान लोगों को अपमानित करने के बहुत से मामले मेरे सामने आए। किसी भी हालत में मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए. और उनकी हर हाल में सुरक्षा करनी चाहिए। कुछ ऐसे सर्वे भी हुए हैं जिनसे सामने आया है कि सिंगल पिट लैटरीन से साफ-सफाई कामगारों का काम और भी असुरक्षित होगा, हमें इसका ध्यान रखना बहुत जरूरी है।

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आपने सीवर-सफाई आदि कामों में उन परिवारों से भी बात की है जिनके परिजनों की मौत सीवर लाइनों की सफाई के दौरान हुई थी...

उन लोगों की व्यथा सुनना कष्टप्रद था। मैं उत्तर प्रदेश में ऐसे कई परिवारों से मिला जिनके परिजनों की जान सीवर लाइने या शौचालय साफ करते समय हुई थी। उनका कहना है कि उन्हें सरकार की तरफ से कोई मुआवजा नहीं मिला। उनकी ये कानूनी जरूरत है जिसे पूरा होना चाहिए। मैं इस बात को मजबूती से महसूस करता हूं कि स्वच्छ भारत अभियान में भेदभाव नहीं होना चाहिए।

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