
कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर 'वंदे मातरम' को लेकर झूठ बोलने के आरोप लगाए हैं। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने तंज कसते हुए कहा कि पीएम मोदी और उनके सहयोगी राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान पर लिखी गई दो किताब पढ़ लेते तो उनकी किरकिरी नहीं होती।
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जयराम रमेश ने गुरुवार को सोशल मीडिया 'एक्स' पर लिखा, "लोकसभा और राज्यसभा में तीन दिनों तक वंदे मातरम पर बहस हुई। कुछ भाषणों में राष्ट्रगान का भी ज़िक्र हुआ।"
उन्होंने आगे लिखा, "यह साफ़ है कि पीएम और उनके पूरे ग्रुप ने राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान पर लिखी गई दो पक्की और भरोसेमंद किताबें नहीं पढ़ी हैं - जिन्हें भारत के दो बेहतरीन इतिहासकारों ने लिखा है। सही मायनों में, यह उम्मीद करना बहुत ज़्यादा है कि वे अपने झूठ के लिए पूरी तरह बेनकाब होने और किरकिरी होने के बाद भी ऐसा करेंगे।"
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इस पोस्ट में जयराम रमेश ने उन दो किताबों के नाम भी शेयर किए। रुद्रनागशु मुखर्जी की 'सॉन्ग ऑफ इंडिया' और सब्यसाची भट्टाचार्य की 'वंदे मातरम'। कांग्रेस नेता ने पीएम मोदी और उनके समूह को इन्हीं दोनों किताबों को पढ़ने की सलाह दी है।
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इससे पहले जयराम रमेश ने राज्यसभा में बुधवार को बीजेपी पर इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने का आरोप लगाया और कहा कि ‘वंदे मातरम्’ की रचना के 150 साल पूरे होने पर संसद में हो रही चर्चा का मकसद देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को बदनाम करना था।
‘वंदे मातरम्’ की रचना के 150 साल पूरे होने पर राज्यसभा में हुई चर्चा में हिस्सा लेते हुए रमेश ने बीजेपी पर देश के लिए शहीद हुए स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि जो लोग बार-बार नेहरू का नाम ले रहे हैं, वह उन लोगों का अपमान कर रहे हैं जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए तब अपनी कुर्बानी दी ‘जब आप लोग अंग्रेजों के साथ मिलजुल कर काम करने को तैयार थे।’
रमेश ने कहा कि लोग इतिहास में राजनीति को घुसा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग ‘हिस्टोरियन (इतिहासकार) बनना चाहते हैं किंतु ‘डिस्टोरियन (विकृत करने वाले)’ बन गये हैं।
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उच्च सदन में मंगलवार को इस चर्चा की शुरूआत करते हुए बीजेपी के वरिष्ठ नेता एवं गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि यदि राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ के दो टुकड़े न किए जाते तो देश का विभाजन भी नहीं होता।
रमेश ने कहा कि बाबू राजेन्द्र प्रसाद ने 28 सितंबर 1937 को सरदार वल्लभ भाई पटेल को एक पत्र लिखकर कहा था कि ‘वंदे मातरम्’ को लेकर समाज के विभिन्न वर्गों में जो राय है उसे देखते हुए कांग्रेस की कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) में कोई रुख अपनाया जाए। रमेश ने कहा कि क्या यह कहा जा सकता है कि राजेन्द्र प्रसाद और सरदार पटेल उस समय तुष्टीकरण कर रहे थे?
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कांग्रेस नेता ने कहा कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 16 अक्टूबर 1937 को गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर को एक पत्र लिखकर उनसे पूछा कि वंदे मातरम् को लेकर कांग्रेस कार्य समिति में पार्टी का क्या रुख होना चाहिए? उन्होंने कहा कि 19 अक्टूबर 1937 को गुरुदेव ने इसका जवाब दिया था। उन्होंने कहा कि नेता जी ने 17 अक्टूबर 1937 को जवाहरलाल नेहरू को भी पत्र लिखा था।
रमेश ने कहा कि 28 अक्टूबर 1937 को कोलकाता में सीडब्ल्यूसी में ‘वंदे मातरम्’ को लेकर जो प्रस्ताव हुआ, उस समय महात्मा गांधी, सरदार पटेल, नेताजी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि बड़े-बड़े नेता मौजूद थे। उन्होंने सवाल किया कि इन बड़े नेताओं पर तुष्टीकरण का आरोप कैसे लगाया जा सकता है?
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कांग्रेस सांसद ने कहा कि ‘वंदे मातरम्’ मूल रूप से 1875 में लिखा गया और 1882 में इसमें कुछ और अंश जोड़े गये। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् के रचयिता बंकिमचंद्र चटर्जी का मानना था कि विज्ञान एवं आध्यात्मिकता का मिलन आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि ‘वंदे मातरम्’ पर चर्चा के जरिये गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि बंकिम चंद्र जातिवाद को भारतीय समाज के लिए एक शाप मानते थे।
रमेश ने कहा कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने पाकिस्तान में जाकर जिन्ना की सराहना की थी तो क्या वह तुष्टीकरण नहीं था?
पीटीआई के इनपुट के साथ
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