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प्रधानमंत्री जी, क्या आप ‘मन की बात’ कार्यक्रम के प्रोड्यूसर के मन की बात सुनेंगे!

पीएम मोदी  के मन की बात के 50वें कार्यक्रम की तैयारियों के लिए बुलाई गई बैठक का उन सात में से 6 अधिकारियों ने बहिष्कार किया है जिन्हें कार्यक्रम की रूपरेखा आदि पर चर्चा करनी थी। ये 6 अधिकारी अपनी लंबित मांगों को लेकर एक प्रदर्शन में शामिल हुए।

फोटो : NH
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आकाशवाणी के उन सात में से 6 अधिकारियों ने उस बैठक का बुधवार को जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ के 50वें कार्यक्रम की रूपरेखा तय की जानी थी। ‘मन की बात’ का 50वां कार्यक्रम अगले महीने यानी नवंबर में प्रसारित होना है। बैठक में जाने के बजाए ये अधिकारी आकाशवाणी और दूरदर्शन के उन तमाम कर्मचारियों के साथ सड़क पर उतरे जो लंबे समय से अपनी मांगों के लिए सरकार का ध्यान दिलाने की कोशिश कर रहे हैं।

ऑल इंडिया रेडियो के डायरेक्टर जनरल फय्याज़ शहरयार ने इस कार्यक्रम की रूपरेखा तय करने और तैयारियों को अंतिम रूप देने के लिए बुधवार 3 अक्टूबर को दोपहर 12 बजे यह बैठक बुलाई थी। इस बैठक में सात अधिकारियों को शामिल होना था। लेकिन इन 7 में से छह अधिकारियों ने इस बैठक का बहिष्कार कर दिया। जिन अधिकारियों ने बैठक का बहिष्कार किया उनमें शैलजा सुमन, अमलानज्योति मजूमदार, संजीव दोसाझ, बसुधा बनर्जी, शर्ली जेकब और मनोहर सिंह रावत शामिल हैं।

दूरदर्शन और आकाशवाणी में ऐसे तमाम अफसर और कर्मचारी हैंजो सरकार की उदासीनता का शिकार हैं। इन लोगों का कहना है कि आला अफसरों ने एक कृत्रिम गतिहीनता का माहौल बना दिया है। बुधवार को आकाशवाणी-दूरदर्शन प्रोग्राम स्टाफ एसोसिएशन के बैनर तले इन लोगों ने राजघाट से जंतर-मंतर तक विरोध रैली निकाली। जंतर-मंतर पर प्रदर्शन के दौरान इन लोगों ने सूचना-प्रसारण मंत्रालय से उनकी लंबित मांगे पूरी करने की अपील की।

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नेशनल हेरल्ड से बातचीत में इन लोगों ने बताया कि पदोन्नति की उम्मीद में बहुत से कर्मचारी या तो सेवानिवृत हो गए या उनकी मृत्यु हो गई। बीते 28 साल में यहां काम कर रहे बहुत से कर्मचारी एक ही वेतन-एक ही पद पर काम कर रहे है।

इससे पहले भी ये कर्मचारी गेट मीटिंग करते रहे हैं। 24 जुलाई से 9 सितंबर के बीच इन लोगों ने दूरदर्शन और आकाशवाणी के अलग-अलग केंद्रों पर प्रदर्शन भी किए हैं। एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय कुमार का कहना है कि उनकी मांगों पर जब कोई ध्यान नहीं दिया गया तो उन्हें विवश होकर आंदोलन का तरीका अपनाना पड़ा।

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जंतर-मंतर की सभा में कई वक्ताओं ने कहा कि कम से कम 50 सांसदों ने उनकी मांगों के लिए प्रसार भारती और सूचना-प्रसारण मंत्री राज्यवर्धन राठौर को चिट्ठी लिखी है, लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला है।

आकाशवाणी के एक प्रोग्राम एक्जीक्यूटिव अमलानज्योति मजूमदार ने कहा कि, “हम सेवा नियमों के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इनमें जो हेराफेरी और लीपापोती है, उसके खिलाफ हैं, क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का भी उल्लंघन है।” उन्होंने बताया कि अलाइड सर्विस से बिना अनुभव वाले कर्मचारियों की दूसरे दरवाज़े से भर्ती के चलते उनके करियर पर फर्क पड़ता है और कार्यक्रमों की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।

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मजूमदार के पास बीते 19 साल से ज्वाइंट डायरेक्टर का अतिरिक्त कार्यभार है, लेकिन उन्हें इस पद का कोई लाभ नहीं मिलता है। उन्होंने बताया कि, “अगर सेवा नियमों का पालन होता तो अब तक मैं महानिदेशक बन चुका होता।” उन्होंने बताया कि उनके अलावा उन्हीं के 1983 यूपीएससी बैच के पांच और अफसर हैं, जिन्हें पदोन्नति नहीं दी गई है।

कर्मचारियों का आरोप है कि प्रसार भारती जानबूझकर विभागीय पदोन्नति कमेटी की बैठकें टालता रहा है। इसके अलावा आईबीपीएस (इंडियन ब्रॉडकास्टिंग प्रोग्राम सर्विस) की 1000 से ज्यादा पद खाली है। इतना ही नहीं ग्रुप ए में 98 फीसदी पद और ग्रुप बी में 65 फीसदी से ज्यादा पद खाली हैं।

एसोसिएशन ने गुरुवार से क्रमिक अनशन करने का ऐलान किया है। इस दौरान उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो 8 अक्टूबर से वे अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे।

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