उत्तर प्रदेश की सियासत में नए-नए घटनाक्रम जारी हैं। खासतौर से बीजेपी में तो जबरदस्त गहमागहमी है। ताजा खबरों के मुताबिक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पहली बार लखनऊ में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के घर जाकर उनसे मुलाकात की। दोनों के बीच कई घंटे तक बातचीत हुई। ध्यान रहे कि केशव मौर्य और योगी आदित्यनाथ के बीच अनबन की खबरें लगातार आती रही हैं। अभी एक सप्ताह पहले ही केशव प्रसाद मौर्य ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि बीजेपी के जीतने की स्थिति में यूपी का सीएम कौन होगा, यह दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व तय करेगा। इसके बाद से ही बीजेपी में जबरदस्त सरगर्मियां शुरु हो गई थीं।
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इस दौरान संघ और सरकार के कई अहम लोगों ने भी केशव मौर्य के घर हाजिरी लगाई। योगी के अलावा जो लोग मंगलवार को केशव प्रसाद मौर्य के घर पहुंचे, उनमें दूसरे उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले और सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल और क्षेत्र प्रचारक अनिल सिंह शामिल हैं। बताया गया कि इन सभी ने केशव मौर्य के घर ही लंच किया। हालांकि पार्टी सूत्रों ने कहा है कि दरअसल, कोरोना और लॉकडाउन के बीच में केशव मौर्य के बेटे का विवाह हुआ था और कोरोना नियमों के चलते कोई उस समय शामिल नहीं हुआ था, इसलिए अब हालात सामान्य होने पर ये सभी लोग उनके बेटे-बहू को आशीर्वाद देने पहुंचे थे।
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लेकिन इस लंच की कहानी दरअसल पिछली रात यानी सोमवार की रात डिनर के समय लिखी गई थी। सूत्रों का कहना है कि सोमवार रात मुख्यमंत्री के आवास पर बीजेपी कोर कमेटी की बैठक हुई थी, जिसमें डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा, बीजेपी के संगठन मंत्री बीएल संतोष और प्रदेश प्रभारी राधा मोहन सिंह शामिल हुए थे। बताया जा रहा है कि इस बैठक के दौरान केंद्रीय नेताओं के सामने ही योगी-केशव की अनबन खुलकर सामने आ गई थी।
असल में केशव प्रसाद मौर्य और सीएम योगी आदित्यनाथ के बीच अनबन नई नहीं है। 2017 में करीब 15 साल के राजनीतिक वनवास के बाद सत्ता में लौटी बीजेपी ने विधानसभा चुनाव यूं तो पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ा था, लेकिन उत्तर प्रदेश में बीजेपी की कमान केशव प्रसाद मौर्य के हाथों में थी। उन्होंने ही अपने दम पर जबरदस्त रणनीति के साथ चुनाव संभाला और बीजेपी को अभूतपूर्व तरीके से 403 में से 311 सीटें हासिल हुईं। उस समय सीधे तौर पर माना जा रहा था कि बीजेपी की जीत में दलित वोटों का बड़ा हाथ है, क्योंकि केशव मौर्य दलित समुदाय से आते हैं, और उनके ही सीएम बनने की अटकलें लगाई जा रही थीं। लेकिन ऐन मौके पर केंद्रीय नेतृत्व संघ के साथ मिलकर कट्टर हिंदुवादी चेहरे के रूप में योगी आदित्यनाथ को यूपी का सीएम बना दिया था। साथ ही केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा को डिप्टी सीएम बनाया गया था। तभी से केशव प्रसाद मौर्य गाहे-बगाहे अपना दर्द बयां करते रहे हैं।
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अब जब 2022 का विधानसभा चुनाव सिर पर आ गया है तो बीजेपी का अंदरूनी घमासान खुलकर सामने आने लगा है। योगी सरकार के कई मंत्रियों और बीजेपी विधायकों ने खुलेआम योगी पर मनमानी करने का आरोप लगाया है। इसे देखते हुए केंद्रीय नेतृत्व ने अपना प्रतिनिधिमंडल लखनऊ भेजकर फीडबैक लिया, और अटकलें लगने लगी थीं कि चुनाव से पहले यूपी का सीएम बदला जाएगा। लेकिन केंद्रीय दल की रिपोर्ट के बाद योगी ने दिल्ली आकर पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की और सारी अटकलों पर एक तरह से विराम लग गया था।
लेकिन बीते एक सप्ताह में पहले केशव प्रसाद मौर्य और फिर यूपी के श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने बयान दे दिया कि आने वाला चुनाव किसकी अगुवाई में लड़ा जाएगा और बीजेपी के सत्ता में आने पर कौन मुख्यमंत्री बनेगा, इसका फैसला तो दिल्ली करेगी। इन बयानों से न सिर्फ आम लोगों बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच कन्फ्यूजन की स्थिति बन गई है।
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आइए एक नजर डालते हैं कि योगी और केशव प्रसाद के बीच कब-कब टकराव हुआ है:
2017 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद केशव प्रसाद मौर्य की नेमप्लेट एनेक्सी मुख्यमंत्री कार्यालय से हटा दी गई थी। विवाद बढ़ने पर दोनों लोगों का कार्यालय सचिवालय स्थित विधान भवन में स्थापित किया गया।
केशव प्रसाद मौर्य की अगुवाई वाले लोक निर्माण विभाग यानी पीडब्लूडी के कामकाज की समीक्षा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद करने लगे थे। विभाग के अफसरों के साथ मुख्यमंत्री सीधे बैठक करने लगे थे और इन बैठकों से मौर्य को दूर रखा जाता था।
इसके बाद केशव प्रसाद मौर्य ने सीएम योगी के मातहत काम करने वाले लखनऊ डेवलपमेंट अथॉरिटी (एलडीए) में भ्रष्टाचार को लेकर बयान देना शुरु कर दिए थे। उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर जांच की मांग भी की थी।
योगी आदित्यनाथ पर दर्ज मुकदमें आसानी से वापस हो गए, लेकिन केशव प्रसाद मौर्य की बारी आई तो फाइलें इधर-उधर होने लगीं। सूत्रों के मुताबिक बाद में पीएमओ के दखल पर मौर्य के खिलाफ दर्ज मुकदमे हटाए गए।
पीडब्लूडी के एमडी की नियुक्ति में केशव मौर्य जिसभी नाम का सुझाव देते उसे मुख्यमंत्री कार्यालय रिजेक्ट कर देता था।
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