देश

पीएम मोदी का सफाई अभियान ‘साफ’, झारखंड सरकार के स्वच्छ घोषित जिले में शौच गई बच्ची को कुत्तों ने मारा

पीएम मोदी के स्वच्छता अभियान की पोल खोलती इस घटना के बाद झारखंड सरकार ने भी माना कि ओडीएफ घोषित गांव में कई घरों में शौचालय नहीं बने थे। तब सीएम रघुवर दास ने खुद इस घटना की निंदा की और अपने विवेकाधीन कोष से बच्ची के पिता को एक लाख रुपये का मुआवजा दिया था।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर, 2014 को महात्मा गांधी की याद में देश को साफ-सुथरा बनाने का संकल्प लिया और पूरा सरकारी अमला इस काम में जुट गया। इसके लिए करोड़ों के विज्ञापन दिए गए। यहां तक तो ठीक था, लेकिन उसके बाद यह सरकार आदत के मुताबिक आंकड़ों और तथ्यों की बाजीगरी करते हुए योजना की सफलता के दावे करने लगी। श्रेय लेने की होड़ में राज्यों ने करोड़ों के विज्ञापन देकर कहना शुरू कर दिया कि वे खुले में शौच से मुक्त हो गए हैं। पीएम मोदी की फ्लैगशिप योजनाओं में से एक स्वच्छता अभियान की नवजीवन द्वारा पड़ताल की इस कड़ी में पेश है झारखंड में इस योजना का जमीनी हाल।

आज मधु अगर जिंदा होती, तो तेरह साल की होती। उसके पिता उमेश सिंह मधु को याद करते हुए गमगीन हो जाते हैं, तो मां चमेली देवी दहाड़ें मारकर रोने लगती हैं। साल भर पहले 7 जनवरी 2018 को उसकी मौत आवारा कुत्तों के नोचने और काटने के कारण हो गई थी। तब वह शौच के लिए घर के पास खेतों में गई थी। वहां करीब एक दर्जन आवारा कुत्तों ने उस पर हमला कर दिया। साथ गए बच्चों ने बचाने की कोशिश की, लेकिन वे कामयाब नहीं हुए।

बुरी तरह डरे बच्चों ने शोर मचाना शुरू किया। यह खबर गांव के लोगों तक पहुंचती, इससे पहले ही मधु की सांसें रुक चुकी थीं। जब लाठी-डंडों से लैस गांव वाले खेत में पहुंचे, तो उन लोगों ने कुत्तों को मधु का मांस खाते हुए देखा। यह घटना मधु के घऱ से महज 200 मीटर की दूरी पर हुई। सुबह के करीब आठ बजे थे और गांव के दूसरे लोग भी शौच के लिए खेतों में गए थे।

मधु अपने घरवालों के साथ कोडरमा जिले के मरकच्चो प्रखंड के भगवती डीह गांव में रहती थी। उसकी मौत से तीन महीने पहले ही झारखंड सरकार संपूर्ण कोडरमा जिले को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित कर चुकी थी। तब इसका बड़े स्तर पर प्रचार-प्रसार किया गया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान की पोल खोलती इस घटना के बाद झारखंड सरकार ने भी माना कि ओडीएफ घोषित भगवती डीह गांव में मधु समेत कई घरों में शौचालय नहीं बने थे। तब मुख्यमंत्री रघुवर दास ने स्वयं इस घटना की निंदा की थी और अपने विवेकाधीन कोष से मधु के पिता को एक लाख रुपये का मुआवजा दिया था।

पूरा झारखंड ओडीएफ घोषित किया जा चुका है। लेकिन, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस घोषणा के बाद भी करीब 1.24 लाख शौचालयों का निर्माण बाकी था। इनमें से 40 हजार बनाए जा चुके हैं। बाकी के लिए 28 फरवरी की डेडलाइन थी। अब तय समय सीमा में सरकार ने अपना लक्ष्य हासिल किया या नहीं, यह ब्योरा सार्वजनिक होना बाकी है।

भरोसेमंद सूत्रों ने बताया कि सरकार के पास शेष शौचालयों के निर्माण के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं। ऐसे में खुले में शौच से मुक्त घोषित झारखंड में बाकी बचे 84 हजार शौचालय 28 फरवरी तक बन गए होंगे, इसमें संशय है।

बता दें कि स्वच्छता अभियान के तहत बनने वाले शौचालयों की प्रति यूनिट कुल लागत 12 हजार रुपये है। इसमें 60 फीसदी राशि केंद्र सरकार देती है, बाकी राज्य सरकार को वहन करना होता है। इस बीच सीएम रघुवर दास ने दावा किया कि साल 2014 में उनकी सरकार के कार्यकाल संभालते वक्त शौचालयों का कवरेज 18 प्रतिशत था, अब 100 प्रतिशत है। यह सवाल लाजिमी है कि अगर कवरेज सौ फीसदी है तो सरकार किन शौचालयों का निर्माण करा रही है।

इस बीच, जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने कहा कि सरकार जिस तरह के शौचालय बनवा रही है, अगर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह उसमें घुस जाएं तो शायद निकल भी न पाएं। उनके कहने का मतलब यह था कि इन शौचालयों की डिजाइन खराब है।

दरअसल, शौचालयों की डिजाइन और उसमें पानी की उपलब्धता को लेकर यह पहला सवाल नहीं है। बहुत पहले से इस तरह के सवाल खड़े किए जाते रहे हैं। इस बारे में अनौपचारिक बातचीत के दौरान पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के सचिव रहे एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने मुझसे पूछा था कि आप हवाई जहाज (प्लेन) के शौचालय का इस्तेमाल कैसे कर लेते हैं। जब मैंने कहा कि प्लेन में सफर के दौरान शौचालय जाने की फ्रीक्वेंसी और घर में रहने के दौरान शौचालय जाने की फ्रीक्वेंसी में काफी अंतर है, तो वह इस बात को टाल गए थे।

तबसे आज तक न तो विभागीय मंत्री ने इस संबंध में कोई सार्वजनिक बातचीत की और न किसी सचिव ने। इस बीच, स्वच्छता को लेकर सैकड़ों नारे गढ़े गए और बीजेपी की सरकारों ने करोड़ों रुपयों के विज्ञापन देकर इसका प्रचार भी कराया। हकीकत यह है कि इन्हीं विज्ञापनों के बीच ओडीएफ घोषित शहरों-गांवों में कभी लुंगी खोलो, तो कभी सीटी बजाओ जैसे अभियानों की खबरें भी अखबारों में छपती रहीं।

जाहिर है कि बीजेपी सरकारों के दावों और हकीकत के बीच काफी फासला है। ऐसे में यह टिप्पणी काबिल-ए-गौर है कि अटैच्ड बाथरूम वाले घर और दफ्तर में बैठकर स्वच्छता अभियान की आंकड़ेबाजी करने वाले लोगों को कुछ रातें वैसे गांवों में गुजारनी चाहिए, जहां हर सुबह लोग लोटा लेकर खेतों में जाते दिखते हैं।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined