देश

भारत की आत्मा के लिए है यह चुनावः सैम पित्रोदा

भारत में 1980 के दशक में दूरसंचार क्रांति के अग्रदूतों में से एक सैम पित्रोदा का कहना है राहुल गांधी में उनके और उनके परिवार के खिलाफ हमलों और विद्वेषपूर्ण आक्रमणों से ऊपर उठने की एक आंतरिक ताकत है। और वह देश की लंबाई और चौड़ाई को नापते हुए एक अनथक अभियान चला रहे हैं।

फोटोः रविराज सिन्हा
फोटोः रविराज सिन्हा 

टेलीकॉम इंजीनियर, इनोवेटर और भारत में 1980 के दशक में दूरसंचार क्रांति के अग्रदूतों में से एक सैम पित्रोदा का कहना है कि भारत की वर्तमान राजनीतिक स्थिति विज्ञान, तकनीक और उद्यमशीलता के फलने-फूलने के लिए सहायक नहीं है। इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के चेयरमैन सैम पित्रोदा से नरेंद्र मोदी सरकार के पांच वर्ष के कार्यकाल के बारे में नवजीवन के लिए तथागत भट्टाचार्य ने बातचीत की।

सरकारें किस तरह से काम करती हैं और उनका किस तरह का प्रदर्शन रहता है, यह सब आपने पिछले कई दशकों से देखा है। मोदी सरकार पांच वर्षों से सत्ता में है, आप इस सरकार को किस तरह से देखते हैं?

मोदी सरकार के प्रदर्शन को समझने के लिए, विशेषतौर से विज्ञान और प्रौद्योगिकी, आईटी, टेलीकॉम क्षेत्रों, जो कि मेरी रुचि के खास क्षेत्र हैं, के अतिमहत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) को समझना होगा। नई खोज (इनोवेशन) और उद्यमशीलता के लिए सही पारिस्थितिकी तंत्र की जरूरत होती है। इस सरकार ने सत्ता का केंद्रीकरण करके लोकतंत्र, सोचने की आजादी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निर्णय लेने की लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सीधा प्रहार किया है।

इस सरकार ने लोगों के पीछे सरकारी बलों को लगाकर, विमुद्रीकरण के जरिए और दोषपूर्ण जीएसटी लागू करके लोगों के मन में भय पैदा किया है। इस प्रकिया में, सरकार ने रोजगार को प्रभावित किया और अंततः ग्रोथ को भी प्रभावित किया है। आप इसे इस इकोसिस्टम से देख सकते हैं कि जहां झूठ का प्रचार किया जाता है और ट्रोल्स के जरिए लोगों पर हमले किए जाते हैं।

Published: undefined

यह केवल उपरोक्त सेक्टरों को ही प्रभावित नहीं करता है बल्कि इंटरप्राइजेज, इंडस्ट्री और आखिरकार संस्थाओं को भी प्रभावित करता है। इन पांच वर्षों में, संस्थाओं का अपहरण कर लिया गया है, चाहे सीबीआई हो, पुलिस हो, आयकर विभाग हो, प्रवर्तन निदेशालय हो या केंद्रीय सतर्कता आयोग हो। इनका इस्तेमाल सरकार की आलोचना करने वाले लोगों के खिलाफ किया गया है। लोग डरे हुए हैं। यह विज्ञान और टेक्नोलॉजी के लिए ठीक नहीं है, क्योंकि इसके लिए सोचने की आजादी की आवश्यकता होती है।

अब खासतौर से टेलीकॉम की बात करते हैं। आज, हमारे पास इस देश में 1.2 बिलियन फोन हैं। कुल मिलाकर इसने बहुत अच्छा काम किया है। यह भारतीय उपक्रमों, उद्योगों, युवा प्रतिभाओं की वजह से हुआ है। 1980 के दशक में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की राजनीतिक इच्छाशक्ति की वजह से जो बीज हमने रोपे थे वे आज परिपक्व पौधों के रूप में विकसित हो गए हैं। लेकिन आज, सेवा क्षेत्र की गुणवत्ता बहुत ही खराब है, व्यवसाय बहुत प्रतिस्पर्धी है, कोई भी पैसा नहीं कमा रहा है।

एयरलाइंस को ही देखिए। जेट एयरवेज के साथ क्या हुआ? वहां 20 हजार लोग अपने भविष्य के बारे में नहीं जानते हैं। एयर इंडिया, बीएसएनएल और एमटीएनएल को देखिए। इसलिए, मेरा मानना है कि इस सरकार के प्रभाव को बड़े उद्योगों, इंफ्रास्ट्रक्चर और सेवाओं में देखा जा सकता है। मैं आपको एक महत्वपूर्ण उदाहरण दूंगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गुजरात में एक फ्लैगशिप प्रोजेक्ट था, जिसे गुजरात इंटरनेशनल फाइनांस एंड टेक्नोलॉजी (जीआईएफटी) सिटी कहा गया था। उन्होंने ग्लोबल प्लेयर्स को बुलाने और वित्तीय टेक्नोलॉजी के लिए निवेश करने के लिए एक अति आधुनिक स्मार्ट सिटी के निर्माण के वास्ते तीन सौ एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था। इसकी परिकल्पना 12 वर्ष पहले की गई थी। आईएल एंड एफएस इसमें साझीदार था और हर साल बहुत बड़ा प्रमोशनल इंवेट किया जाता था।

आज, यह प्रोजेक्ट एक आपदा है। वहां दो भवन हैं और इसके अलावा कोई भी वहां नहीं है, निश्चित तौर पर कोई प्रमुख इंटरनेशनल प्लेयर नहीं है। आईएल एंड एफएस दिवालिया हो चुका है। अब इसके बारे में कोई बात नहीं करता। गुजरात का विकास मॉडल और निवेशकों को आकर्षित करने की मोदी की क्षमता के बारे में यह मिथक बनाया गया था।

Published: undefined

इंफ्रास्ट्रक्चर की परियोजनाओं का बुरा हाल है, सोलर पावर प्रोजेक्ट अच्छा नहीं कर रहे हैं। विदेशों से सार्थक निवेश नहीं आ रहा है। इन सब का सारांश यह है कि हमने नौकरियां पैदा नहीं की हैं। यह आज की एक वास्तविक चुनौती है। इस सरकार ने पांच वर्षों में सौ मिलियन नौकरियों का वादा किया था। वे केवल नौकरियां पैदा करने में ही असफल नहीं हुए बल्कि वास्तव में नोटबंदी और जल्दबाजी में लागू किए जीसीटी की वजह से जो मौजूदा नौकरियां थी वह भी कम हो गईं। सौ स्मार्ट सिटी बनाने की बात कही थी, जिनका 2019 के उनके घोषणापत्र में कोई जिक्र नहीं है। एक भी स्मार्ट सिटी नहीं बनी। नमामि गंगे योजना और स्वच्छ भारत में भी उनके लिए खुद को दिखाने के लिए बहुत कम है।

वास्तव में सब कुछ एक पीआर एक्सरसाइज है। विज्ञापनों और प्रमोशन्स के रूप में सार्वजनिक धन खर्च करने के जरिए सब कुछ झूठ को प्रसारित करना है। जाहिर है, खुद का प्रचार। आप उन परियोजनाओं का अनावरण करते हैं जिनका पहले ही अनावरण हो चुका है, आप उन चीजों का श्रेय लेते हैं जिन्हें दूसरों ने किया है। यह सब कुछ मुझे चिंतित करता है क्योंकि मैं 1942 में पैदा हुआ और बड़े होने के दौरान गांधीवादी मूल्य हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण थे। सच्चाई, विश्वास, प्रेम, लोकतंत्र, स्वतंत्रता, समावेश, विविधता और अनुशासन जैसे मूल्य। ये केवल शब्द नहीं थे। आप इन्हें जीते थे। आज, मैं 180 डिग्री का शिफ्ट देखता हूं। यह झूठ, अविश्वास, नफरत, विलगाव, एकरूपता, एक व्यक्ति के शासन की व्यवस्था बन गया है। यह “मैं, मैं और मैं” के बारे में है और “हमारे” बारे में नहीं।

Published: undefined

पिछले कई वर्षों से आप साल में छह बार भारत का दौरा करते हैं। क्या आप सरकार और खासकर प्रधानमंत्री के बारे में जनता की धारणा में एक स्पष्ट बदलाव देखते हैं?

शुरुआती दिनों में, इस सरकार ने बहुत सारे झूठे वादों और लोगों को यह बताकर कि कांग्रेस ने 70 वर्षों में कुछ नहीं किया और हम आपकी सभी समस्याओं का समाधान कर देंगे, जनता की कल्पना पर कब्जा जमा लिया। इस कारण से जनता इस पर सवार हो गई। लेकिन अब उन्हें एहसास हुआ है कि कुछ भी नहीं हुआ। इसलिए अब वे कह रहे हैं कि “अब बहुत हो गया है।” लोग देख रहे हैं कि मुख्य रूप से दो लोग ही सब फैसले ले रहे हैं। यह लोकतंत्र के लिए सही नहीं है।

मैं मोदी के अंतर्गत भारत और डोनाल्ड ट्रंप के अंतर्गत अमेरिका के बीच समानता देखता हूं। पहले, अमेरिका के बारे में बात करें तो वहां सीमा पर मैक्सिको दुश्मन है, प्रवासी आपकी नौकरियां ले रहे हैं। इसलिए आप प्रवासियों पर शिकंजा कसें, उन्हें वीजा नहीं दें। अब दूसरे पर आइए। यहां भी, सीमा पर पाकिस्तान शत्रु है। मुसलमान समस्या हैं, उन्हें प्रवासियों के रूप में ब्रांड करो। एनआरसी लाओ। यह मुझे चिंतित करता है। हम यहां कैसे पहुंचे? हमें क्या हो गया है? भारत के बारे में उस विचार का क्या हुआ, जो गांधी, नेहरू, पटेल और अन्य सभी महान नेताओं के पास था।

Published: undefined

क्या आप इस चुनाव को एक विशिष्ट चुनाव के रूप में देखते हैं, खासकर भारत के विचार के बारे में?

हां, यह चुनाव, जैसा कि राहुल गांधी कहते हैं, भारत की आत्मा के लिए, भारत के विचार के लिए है। हम किस तरह का राष्ट्र चाहते हैं? क्या हम ऐसा राष्ट्र चाहते हैं जहां दो लोग हर चीज को चलाएं और प्रधानमंत्री कहें, “मैं, मैं और मैं?” या हम एक ऐसा राष्ट्र चाहते हैं जहां सहयोग, सहभागिता, राय-मशविरा, लोकतंत्र, आजादी और लचीलापन हो?

Published: undefined

2019 में ‘न्याय’ निश्चय ही कांग्रेस के चुनावी वादों का सबसे मुख्य बिंदु है। क्या आपको लगता है कि पार्टी देश के हर नुक्कड़ और गली-मोहल्लों तक पहुंचने में सफल रही है?

यह एक चलने वाली प्रक्रिया है। अभियान में जरा सी देर हुई। लेकिन अभियान बहुत ठोस है। ‘न्याय’ एक बहुत बड़ा विचार है। पांच करोड़ परिवारों को छह हजार रुपये की मासिक सहायता मिलेगी जिससे 25 करोड़ लोग एक न्यूनतम गरिमा का जीवन जीने में सक्षम होंगे। लेकिन ‘न्याय’ इस चुनाव में केवल न्याय योजना नहीं है। यह एक प्लेटफॉर्म है, एक समग्र विचार जो नौकरियों के रूप में युवा लोगों के लिए न्याय के बारे में है। सम्मान के अर्थ में यह महिलाओं के लिए न्याय के बारे में है। ‘न्याय’ किसानों के लिए उनकी उपज के सही दाम मिलने के बारे में है। ‘न्याय’ मझोले और छोटे उद्योगों के लिए आसानी से ऋण मिलने और बाजार तक उनकी पहुंच आसान करने के बारे में है।

Published: undefined

बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीति हमेशा से संसदीय चुनावों को राष्ट्रपति चुनाव में बदलने की रही है। क्या आपको लगता है कि वह इसमें सफल रहे हैं?

निश्चित रूप से। मुझे लगता है कि उन्होंने 2014 में अच्छा काम किया। 2019 अलग है। चुनाव को मोदी बनाम राहुल बनाने का प्रयास किया जा रहा है, जो गलत है। हमारे पास एक संसदीय व्यवस्था है। हालांकि मैं यह कहना चाहता हूं कि राहुल गांधी पिछले पांच वर्षों में काफी परिपक्व हुए हैं। उनके और उनके परिवार के खिलाफ हमलों और विद्वेषपूर्ण आक्रमणों, नकारात्मक प्रचार से ऊपर उठने की उनमें एक आंतरिक ताकत है। और वह देश की लंबाई और चौड़ाई को नापते हुए एक अनथक अभियान चला रहे हैं।

Published: undefined

आप और राजीव गांधी भारत में दूरसंचार क्रांति के पीछे खड़े व्यक्ति थे। निजी तौर पर, आप कैसा महसूस करते हैं जब यह देखते हैं कि दशकों बाद कोई आता है और उन सबका श्रेय लेने लगता है, जिसे आपने शुरू किया था...

मुझे कुछ महसूस नहीं होता। आप श्रेय लेने के लिए चीजें नहीं करते हैं। आप इसलिए करते हैं क्योंकि इसे करने की जरूरत होती है। प्रक्रिया में, यदि दस लोग श्रेय लेते हैं, तो अच्छा और बढ़िया है। लेकिन मेरे अनुसार, असली श्रेय राजीव गांधी की राजनीतिक इच्छा शक्ति, बहुत-बहुत सारी भारतीय प्रतिभाओं जिन्होंने वास्तव में बहुत कड़ी मेहनत की, और आंशिक रूप से मेरे क्षेत्र की विशेषज्ञता, भारतीय उद्यमियों, नीति निर्माताओं को जाता है।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined