
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीजा पर 1 लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) की भारी फीस लागू कर दी है। यह नई व्यवस्था आज, मंगलवार 21 अक्टूबर से प्रभावी हो गई है। इस फैसले से अमेरिका में नौकरी और स्थायी निवास (ग्रीन कार्ड) पाने का सपना देखने वाले लाखों भारतीयों को गहरा झटका लगा है, क्योंकि 70 फीसदी H-1B वीजा भारतीय नागरिकों को ही मिलते हैं।
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अमेरिकी नागरिकता और आप्रवासन सेवा (USCIS) द्वारा अपनी वेबसाइट पर जारी नोटिस के मुताबिक, 19 सितंबर को राष्ट्रपति ट्रंप की उद्घोषणा के बाद तय हुआ था कि 21 सितंबर 2025 की रात 12:01 बजे (EDT) या उसके बाद दायर की गई नई H-1B वीजा याचिकाओं के साथ अब $1,00,000 (88 लाख रुपये) की फीस देना अनिवार्य होगा।
USCIS ने यह भी कहा है कि अहर किसी याचिकाकर्ता को अमेरिकी सरकार के शटडाउन के कारण आवश्यक दस्तावेज (जैसे लेबर कंडिशन एप्लीकेशन या टेंपररी लेबर सर्टिफिकेशन) प्राप्त करने में दिक्कत हुई है, तो इसे “असाधारण परिस्थिति” माना जाएगा। ऐसी स्थिति में आवेदन में देरी होने पर कुछ मामलों में छूट दी जा सकती है।
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नई गाइडलाइन के अनुसार, 88 लाख रुपये की यह भारी फीस उन लोगों पर लागू नहीं होगी।
जो पहले से अमेरिका में रह रहे हैं और अपना वीजा स्टेटस बदल रहे हैं-
जैसे कोई F-1 स्टूडेंट वीजा से H-1B स्टेटस में जा रहा हो या
H-1B एक्सटेंशन (वीजा की अवधि बढ़ाने) के लिए आवेदन कर रहा हो।
हालांकि, यह फीस उन सभी नए आवेदनों पर लागू होगी, जो अमेरिका के बाहर से दायर किए जा रहे हैं या जिन आवेदकों को निर्णय से पहले देश छोड़ना होगा।
USCIS ने साफ कहा है कि यह घोषणा 21 सितंबर 2025 के बाद दायर की गई नई याचिकाओं पर लागू होगी और यह सिर्फ उन आवेदकों के लिए होगी, जो अमेरिका के बाहर हैं और जिनके पास पहले से H-1B वीजा नहीं है।
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USCIS ने बताया है कि वित्तीय वर्ष 2026 के लिए कानूनी रूप से जारी किए जा सकने वाले सभी H-1B वीजा आवेदन प्राप्त हो चुके हैं-
जिसमें 65,000 रेगुलर वीजा और 20,000 अमेरिकी एडवांस डिग्री (मास्टर कैप) वाले वीजा शामिल हैं।
इसका मतलब यह है कि अगले वित्तीय वर्ष के लिए कोई नई याचिका स्वीकार नहीं की जाएगी।
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अमेरिकी कंपनियां भारत जैसे देशों से कुशल प्रोफेशनल्स को H-1B वीजा के माध्यम से अपने यहां काम करने के लिए बुलाती हैं।
अब हर वर्कर के लिए कंपनी को 88 लाख रुपये की अतिरिक्त फीस चुकानी होगी।
पहले यह फीस 1,700 से 4,500 डॉलर तक थी।
इस बड़े इजाफे के बाद संभावना है कि कई कंपनियां भारतीयों के लिए H-1B स्पॉन्सर करने से पीछे हटेंगी, जिससे भारतीयों का ग्रीन कार्ड और स्थायी नौकरी का सपना और मुश्किल हो सकता है।
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विशेषज्ञों का कहना है कि अब कंपनियां केवल उन्हीं कर्मचारियों के लिए H-1B फीस चुकाएंगी, जो उनके लिए अत्यधिक आवश्यक या दुर्लभ कौशल वाले हैं।
इससे यह तय होगा कि किसी भारतीय की नौकरी कंपनी के लिए कितनी महत्वपूर्ण है।
अगर अमेरिकी कर्मचारी वही काम कर सकता है, तो कंपनी भारतीय को रखने से बच सकती है।
इसका सीधा असर टेक कंपनियों, आईटी सेक्टर और इंजीनियरिंग प्रोफेशनल्स पर पड़ सकता है।
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USCIS ने स्पष्ट किया है कि मौजूदा H-1B वीजा धारकों को अमेरिका छोड़ने या वापस आने से नहीं रोका जाएगा।
नई फीस केवल नई याचिकाओं पर लागू होगी।
इससे पहले से अमेरिका में रह रहे पेशेवरों को अस्थायी राहत जरूर मिली है।
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H-1B एक नॉन-इमिग्रेंट वर्क वीजा है, जो अमेरिकी कंपनियों को विदेशी कुशल कर्मचारियों को अमेरिका में काम पर रखने की अनुमति देता है।
यह वीजा तीन साल के लिए जारी होता है, जिसे अगले तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है।
हर साल अमेरिका लगभग 85,000 H-1B वीजा जारी करता है, जिसमें से सबसे बड़ी हिस्सेदारी भारतीय नागरिकों की होती है।
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