
22 अप्रैल को पहलगाम में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी हमले के जवाब में भारत द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित करने का फैसला लिया गया। यह पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा झटका था। वहीं अब अफगानिस्तान भी पाकिस्तान का पानी रोकने की प्लानिंग कर रहा है।
भारत के सिंधु जल समझौते रद्द करने के महीनों बाद, अफगानिस्तान ने "जल्द से जल्द" कुनार नदी पर बांध बनाने की अपनी योजना की घोषणा की है। अफगानिस्तान के इस फैसले से इस्लामाबाद में बेचैनी बढ़ सकती है।
दरअसल, तालिबान के उप सूचना मंत्री मुहाजेर फराही ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, "अमीर अल-मुमिनिन, अल्लाह उनकी रक्षा करे, ने उन्हें कुनार नदी पर बांधों का निर्माण कार्य जल्द से जल्द शुरू करने, घरेलू कंपनियों के साथ अनुबंध करने और अन्य विदेशी कंपनियों का इंतजार न करने का निर्देश दिया है। मुल्ला अब्दुल लतीफ मंसूर कहते हैं, 'अफगानों को अपने पानी का प्रबंधन करने का अधिकार है।' "
बीते कुछ दिनों में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच काफी तनाव देखने को मिला। ऐसे में अफगानिस्तान सरकार का ये फैसला इस बात का संकेत दे रहा है कि भविष्य में पाकिस्तान का पानी रोका जाएगा।
चित्राल नदी को अफगानिस्तान में कुनार नदी के नाम से भी जाना जाता है। यह उत्तरी पाकिस्तान और पूर्वी अफगानिस्तान में बहने वाली 480 किलोमीटर लंबी नदी है। यह नदी पाकिस्तान में गिलगित-बाल्टिस्तान और चित्राल की सीमा पर स्थित चियांतार ग्लेशियर से निकलती है।
अरंडू में यह अफगानिस्तान में प्रवेश करती है, जहां इसे कुनार नदी कहा जाता है। बाद में यह अफगानिस्तान के नंगहार प्रांत में काबुल नदी में मिल जाती है। यह नदी प्रणाली पिघलते ग्लेशियरों और हिन्दू कुश पर्वतों की बर्फ से घिरी है।
गौरतलब है कि अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने 9 अक्टूबर से भारत का दौरा शुरू किया, जो पाकिस्तान की आंखों का किरकिरी हो गया। पाकिस्तान ने मुत्ताकी की यात्रा के पहले ही दिन काबुल में ड्रोन हमले किए।
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आतंक को पनाह देने वाले पाकिस्तान के हालत खराब होते जा रहे हैं, जिन आतंकियों को पाकिस्तान ने अपने एजेंडे के लिए पोषित किया, आज उन्हीं आतंकी संगठनों ने पाक की नाक में दम कर दिया है। इसका ताजा उदाहरण तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) पर प्रतिबंध लगाना है। हालांकि, फिर भी पाक बाज नहीं आ रहा है। एक तरफ अपने देश में अपने ही पोषित संगठनों पर प्रतिबंध लगा रहा है, दूसरी ओर बांग्लादेश में आईएसआई को सक्रिय करने में लगा है।
टीएलपी पर बैन के फैसले से एक बात तो साफतौर पर जाहिर हो चुकी है कि पाकिस्तान को अपनी धरती पर धार्मिक एजेंडा चलाने वाले कट्टरपंथी तत्वों से निपटने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
टीएलपी के सदस्यों ने गाजा एकजुटता मार्च निकाला, जो देखते ही देखते बेहद हिंसक हो गया। सुरक्षा बलों के साथ झड़प की घटना सामने आई। खासकर मुरीदके में मार्च काफी हिंसक हो गया और कई लोगों की मौत हो गई।
टीएलपी को पाकिस्तान की सरकार ही अस्तित्व में लेकर आई। टीएलपी हाल के वर्षों में धार्मिक एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश में हिंसक हो गया है। जिस तालिबान ने आज पाकिस्तान के नाक में दम कर रखा है, उसने जब अफगानिस्तान पर कब्जा किया था, तो इस्लामाबाद खुशी से फूले नहीं समा रहा था।
अपने देश में आतंकी संगठनों पर बैन लगाने वाला पाकिस्तान बांग्लादेश को पूर्वी पाकिस्तान बनाने में लगा हुआ है। हाल के दिनों में बांग्लादेश में आईएसआई की सक्रियता बढ़ी है।
हाल ही में बांग्लादेश की ओर से आधिकारिक तौर पर कहा गया कि इस्लामिक रिवोल्यूशनरी आर्मी (आईआरए) के पहले चरण का काम शुरू हो गया है।
आईआरए को बांग्लादेशी सेना और डीजीआईएफ के स्थान पर लाया जा रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि यूनुस सरकार अपने लिए एक वफादार सेना चाहती है, जो उसके इशारे पर चले और देश के हित के लिए काम न करे।
पाकिस्तान, बांग्लादेश में इस्लामिक स्टेट की स्थापना और लोगों से शरिया कानून का पालन करवाने पर जोर दे रहा है। यही कारण है कि आईआरए सदस्यों को आईएसआई के लोग ट्रेनिंग दे रहे हैं। पाकिस्तान बांग्लादेश के कंधे पर बंदूक रखकर भारत पर निशाना साधने की कोशिश कर रहा है।
राजनीतिक दृष्टिकोण से बांग्लादेश पाकिस्तान से काफी अलग है। भारत के साथ संबंधों के मामले में बांग्लादेश लिबरल है। इसका ताजा उदाहरण बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी के नेता के एक बयान में देखने को मिल सकता है।
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अमेरिका सरकार ने कहा है कि वह नए एच-1बी वीजा आवेदनों पर लगाए गए एक लाख अमेरिकी डॉलर के शुल्क को रोकने के उद्देश्य से दायर मुकदमों का मुकाबला करेगी। इसने कहा कि ‘‘बहुत लंबे समय से’’ प्रणाली ‘‘धोखाधड़ी से भरी हुई है’’ और अमेरिकी कर्मियों को प्राथमिकता देने के लिए इसमें आमूलचूल परिवर्तन किया जाना चाहिए।
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने बृहस्पतिवार को यह टिप्पणी की। एच-1बी वीजा आवेदनों पर एक लाख अमेरिकी डॉलर के शुल्क के खिलाफ अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा पिछले सप्ताह मुकदमा दायर किया गया था।
दायर मुकदमे में अमेरिका सरकार के शुल्क संबंधी कदम को ‘‘भ्रामक नीति’’ और ‘‘स्पष्ट रूप से गैरकानूनी’’ कार्रवाई बताया गया, जो अमेरिकी नवाचार एवं प्रतिस्पर्धा को कमजोर कर सकती है।
नए एच-1बी आवेदनों पर अत्यधिक शुल्क लगाने के ट्रंप प्रशासन के निर्णय के खिलाफ विभिन्न कर्मचारी संगठनों, नियोक्ताओं और धार्मिक संगठनों ने कैलिफोर्निया की एक संघीय अदालत में वाद दायर किया है। लेविट ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘प्रशासन इन मुकदमों का अदालत में मुकाबला करेगा।’’
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुख्य प्राथमिकता हमेशा अमेरिकी कर्मियों को प्राथमिकता देने और वीज़ा प्रणाली को मजबूत करने की रही है।
लेविट ने कहा, ‘‘काफ़ी लंबे समय से एच-1बी वीज़ा प्रणाली में धोखाधड़ी का बोलबाला रहा है, और इससे अमेरिकियों की मज़दूरी कम हुई है। इसलिए राष्ट्रपति इस प्रणाली को बेहतर बनाना चाहते हैं, और यही वजह है कि उन्होंने ये नई नीतियां लागू की हैं।’’
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