
उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को यह कहा कि वह राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए कोई निश्चित समयसीमा तय नहीं कर सकता।
इसके बाद यह जानकारी सामने आई कि विपक्षी दलों के शासित चार राज्यों में कुल 33 विधेयक राज्यपाल या राष्ट्रपति की स्वीकृति का इंतजार कर रहे हैं। इन 33 विधेयकों में से 19 विधेयक पश्चिम बंगाल विधानसभा से पारित हैं, जबकि कर्नाटक से 10, तेलंगाना से तीन और केरल से कम से कम एक विधेयक लंबित है।
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उच्चतम न्यायालय के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष बिमान बनर्जी ने बताया कि राज्य विधानसभा से पारित 19 विधेयक अभी भी राज्यपाल की स्वीकृति के लिए लंबित हैं। उन्होंने कहा कि जब कोई विधेयक बिना किसी स्पष्टता के लंबित रहता है, तो उसकी महत्वता समाप्त हो जाती है।
कर्नाटक विधानसभा से पारित 10 विधेयकों में एक ऐसा विधेयक भी है, जो मुसलमानों को सिविल कार्यों में चार प्रतिशत आरक्षण देने से जुड़ा हुआ है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, कर्नाटक के राज्यपाल के पास कोई विधेयक लंबित नहीं है।
वहीं, तेलंगाना में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण संबंधी विधेयक समेत तीन विधेयक लंबित हैं। कांग्रेस सरकार ने अपने चुनावी वादे के तहत 26 सितंबर को एक आदेश जारी किया था, जिसके मुताबिक स्थानीय निकायों में पिछड़े वर्गों (बीसी) को 42 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल और राष्ट्रपति पर समयसीमा थोपना संभव नहीं है लेकिन वे बिलों को 'हमेशा के लिए अटका' भी नहीं रख सकते। अगर राज्यपाल अनिश्चितकाल तक देरी करते हैं, तो यह सीमित न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ सकता है। अदालत अनुच्छेद 142 के तहत 'deemed assent' यानी माना हुआ मंजूर नहीं दे सकती क्योंकि इससे अलग संवैधानिक पद के अधिकार में दखल होगा ।
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