
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर संसद में एक बार फिर हंगामा हुआ और सदन की कार्यवाही कुछ घंटों के लिए स्थगित कर दी गई। विपक्ष इस मुद्दे पर संसद में बहस की मांग कर रहा है लेकिन सरकार इसे मानने को तैयार नहीं है। इस बीच एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर चुनाव आयोग से उन 65 लाख से ज्यादा मतदाताओं की बूथ वार सूची उपलब्ध कराने की मांग की है जिन्हें ड्राफ्ट रोल से बाहर कर दिया गया है।
बुधवार को एक बार फिर संसद में बिहार एसआईआर पर चर्चा की मांग को सरकार ने ठुकरा दिया, जिसके चलते विपक्षी सांसदों ने जोर-शोर से अपनी आवाज उठाई। लेकिन विपक्ष की मांग को अनसुना करते हुए संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही को स्थगित कर दिया गया।
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संसद के बाहर आरजेडी सांसद मनोज झा ने कहा कि “यह एसआईआर नहीं है बल्कि बड़े पैमाने पर मतदाताओं को उनके अधिकार से वंचित करने की प्रक्रिया है।...बिना किसी जानकारी के इतनी बड़ी संख्या में लोगों के नाम काट दिए गए और कहा जा रहा है कि लाखों की भीड़ में उन्हें खोजो....।” उन्होंने कहा कि यह घोर अलोकतांत्रिक रवैया है और सरकार की संवेदना मर चुकी है।
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वहीं कांग्रेस के राज्यसभा सांसद राजीव शुक्ला ने कहा कि जब तक एसआईआर के मुद्दे पर सरकार और चुनाव आयोग संतोषजनक जवाब नहीं दे देता तब तक विपक्ष का विरोध जारी रहेगा। उधर लोकसभा में डीएमके सांसद कनिमोझी ने कहा कि, “हम बिहार के एसआईआर पर संद में चर्चा चाहते हैं, लेकिन वे इसे नहीं होने दे रहे हैं। क्या संसद में चुनाव सुधार पर चर्चा नहीं होनी चाहिए, क्योंकि लोकतंत्र के लिए तो यह बहुत महत्वपूर्ण है।”
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इससे पहले एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर मांग की कि है चुनाव आयोग को निर्देश दिए जाएं कि वह बिहार की ड्राफ्ट मतदाता सूची से हटाए गए करीब 65 लाख मतदाताओं के नाम हर विधानसभा के बूथवार जारी करे। ध्यान रहे कि एडीआर उन याचिकाकर्ताओं में शामिल हैं जिन्होंने बिहार में एसआईआर को चुनौती दी है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में पिछली सुनवाई 28-29 जुलाई, 2025 को हुई थी और अगली सुनवाई 12 अगस्त को होनी है। याचिका में बिहार से शुरु होकर पूरे देश में एसआईआर कराए जाने के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दी गई है।
गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने 1, अगस्त 2025 को जो ड्राफ्ट इलेक्टोरल रोल (प्रारूप मतदाता सूची) जारी किया है उसमें करीब 65 लाख मतदाताओं के नाम नहीं हैं। आयोग ने कहा है कि बिहार के कुल 7.89 करोड़ वोटर में से सिर्फ 7.24 करोड़ वोटर के नाम ही इस सूची में शामिल किए गए हैं। चुनाव आयोग द्वारा 25 जुलाई को जारी सूची के मुताबिक जिन 65 लाख लोगों के नाम हटा दिए गए हैं उनमें से 22 लाख मतदाताओं की मृत्यु हो चुकी है, 35 लाख स्थाई रूप से दूसरे राज्यों में जा चुके है या अपने स्थान पर नहीं मिले हैं और 7 लाख लोग एक से अधिक जगहों पर मतदाता के रूप में पंजीकृत हुए। चुनाव आयोग के सूत्रों का दावा है कि यह सूची राजनीतिक दलो के बूथ लेवल एजेंटों को 20 जुलाई को ही उपलब्ध करा दी गई थी, जिसमें इन मतदाताओं के एपिक नंबर (वोटर आईडी कार्ड नंबर) और उनके नाम काटने का कारण भी बताया गया है।
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मंगलवार को एडीआर की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने मांग की कि चुनाव आयोग विधानसभा वार और बूथ वार ऐसे सभी लोगों की सूची उपलब्ध कराए। इसके अलावा एक और मांग की गई है कि ड्राफ्ट इलेक्टोरल रोल में ऐसे मतदाताओं के नाम भी शामिल किए गए हैं जिनके आगे ‘बीएलओ द्वारा संस्तुत नहीं’ यानी ऐसे लोगों के नाम काटने की सिफारिश बीएलओ ने की है। प्रशांत भूषण ने कहा कि आने वाले दिनों में ऐसे मतदाताओं के नाम भी वोटर लिस्ट से काटे जा सकते हैं।
एडीआर ने कहा कि चुनाव आयोग ने कुछ राजनीतिक दलों के बीएलए को उन मतदाताओं की सूची उपलब्ध कराई थी जिनके नाम हटा दिए गए थे, लेकिन उस सूची में उनके नाम हटाने का कारण नहीं बताया गया था। उन्होंने कहा कि 20 जुलाई को पार्टियों को उपलब्ध कराई गई सूचियों के अनुसार, जब फॉर्म जमा करने के लिए पांच दिन बाकी थे, तब फॉर्म न जमा होने का कारण बताया गया था। लेकिन, 1 अगस्त को उपलब्ध कराई गई सूचियों में कारण दर्ज करने वाला कॉलम नहीं था।
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एडीआर ने दलील दी कि, "65 लाख हटाए गए मतदाताओं के नामों वाली सूची में उनके गणना फॉर्म जमा न करने का कारण बताना आश्चर्यजनक रूप से मुश्किल है, जबकि यह जानकारी चुनाव आयोग के पास स्पष्ट रूप से मौजूद है। दूसरे शब्दों में, यह इस बात का कोई स्पष्टीकरण देने में आयोग नाकाम रहा है कि इन नामों को मसौदा मतदाता सूची में क्यों शामिल नहीं किया गया, चाहे वे मृत होने, बिहार से स्थायी रूप से बाहर चले जाने, लापता होने या फिर डुप्लिकेट प्रविष्टि के कारण ही क्यों न हों।"
ध्यान रहे कि यूं तो चुनाव आयोग साला तौर पर विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (समरी रिवीजन) और चुनाव से पहले मतदाता सूची में संशोधन करता है, लेकिन इस बार इस परंपरा और नियम से हटकर, चुनाव आयोग ने नए सिरे से मतदाता सूची तैयार करने का फैसला लिया है। आयोग के मुताबिक 1 जनवरी, 2003 के बाद मतदाता सूची में शामिल होने वाले सभी लोगों को नागरिकता सहित अपनी पात्रता सिद्ध करने वाले दस्तावेज़ देने होंगे। 1 जुलाई, 1987 के बाद जन्मे लोगों को अपने माता-पिता में से एक या दोनों के जन्म की तिथि और/या जन्म स्थान का प्रमाण पेश करना होगा।
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