हालात

आपदा, फसल की बर्बादी के बाद घोटालों की बाढ़!

इस घोटाले के असली दोषी कभी पकड़े जाएंगे या उन्हें सजा भी हो पाएगी, यह तो नहीं कहा जा सकता। लेकिन पंजाब और हरियाणा के किसानों को उस समय भारी नुकसान हुआ है, जब आपदा और कम हो चुकी उपज के बाद उन्हें मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है।

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फोटो: Getty Images NARINDER NANU

पंजाब और हरियाणा में इस बार धान की कटाई का सीजन काफी निराशा के बीच शुरू हुआ था। पंजाब के तो तकरीबन हर जिले में बाढ़ थी और हर तरफ से फसल खराब होने की खबरें आ रहीं थीं। हरियाणा के एक बड़े हिस्से का भी यही हाल था। बरसात का सीजन बहुत लंबा खिंचने के कारण यह भी कहा जा रहा था कि इस बार उपज कम रहने वाली है। लुधियाना की पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने भी अपने अध्ययन में उपज कम होने की बात स्वीकार की थी। आशंका थी कि यह कमीं 15 से 20 प्रतिशत तक हो सकती है। 

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फिर जैसे कोई चमत्कार हुआ। मंडियों में धान की सरकारी खरीद शुरू हुई, तो पुराने रिकार्ड टूटने लगे। अचानक धान इतना आ गया कि मंडियों की व्यवस्था चरमराने लगी। कुछ जगह तो उन्हें रखने की बोरियां कम पड़ गईं। समय से पहले ही धान की खरीद के सारे लक्ष्य पूरे कर लिए गए। खरीद रोक दी गई, जबकि मंडियों के बाहर बहुत से किसान अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। 

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इसे समझने के लिए हमें पंजाब के तीन सबसे ज्यादा बाढ़ प्रभावित जिलों में जाना होगा। अमृतसर के बारे में बताया गया था कि वहां 61,256 एकड़ जमीन पर धान की फसल पूरी तरह बरबाद हो गई। पिछले साल भारतीय खाद्य निगम ने अमृतसर की मंडियों से 2.98 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा था, जबकि इस बार नवंबर का दूसरा हफ्ता शुरू होने तक धान की 3.02 लाख मीट्रिक टन खरीद हो चुकी थी। 

यही हाल फाजिल्का और तरन तारन का था। फाजिल्का में 33,123 एकड़ पर खड़ी धान की फसल बाढ़ के कारण बरबाद हुई थी, जबकि तरन तारन में 23,308 एकड़ की फसल बाढ़ में डूब गई थी। फाजिल्का में पिछले साल 2.14 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा गया था। इस साल भी इतना ही धान खरीदा जा चुका है। तरन तारन में पिछले साल 9.02 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा गया था। इस साल खरीद का सीजन खत्म होने से पहले ही 9.29 लाख मीट्रिक टन खरीद हो चुकी थी। 

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यह हाल पंजाब का ही नहीं हरियाणा का भी है। वहां तो सरकारी मंडियों ने नवंबर के पहले सप्ताह में ही अपना लक्ष्य हासिल कर लिया था। अनुमान है कि हरियाणा में पिछले साल के मुकाबले अभी तक पांच लाख मीट्रिक टन धान की ज्यादा खरीद हो चुकी है। अब मंडियों में सरकारी खरीद बंद हो चुकी है। जिनका धान नहीं बिक सका, वे किसान बाहर व्यापारियों को औने-पौने भाव पर अपनी उपज बेचने के लिए मजबूर हैं। 

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यह हुआ कैसे, इसे लेकर हर जगह एक ही बात कही जा रही है। पंजाब और हरियाणा दोनों ही जगह यही सुनाई दे रहा है कि उत्तर प्रदेश और राजस्थान से सस्ता धान लाकर यहां मंडियों में बेचा गया। इन दोनों ही प्रदेशों में मंडी व्यवस्था पंजाब हरियाणा जितनी अच्छी नहीं है, इसलिए आमतौर पर किसान व्यापारियों को सस्ते दामों पर अपनी उपज बेच देते हैं। अगर सचमुच ऐसा है, तो यह काम विभिन्न स्तरों पर व्यापारियों की मिलीभगत के बिना नहीं हो सकता। 

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ऐसा घपला न हो सके, इसके लिए हरियाणा सरकार ने एक व्यवस्था की थी। वहां ‘मेरी फसल, मेरा ब्योरा‘ नाम का एक पोर्टल बनाया गया था। इस पोर्टल पर किसान को अपनी खेती योग्य जमीन के हिसाब से उपज बेचने का मंडी का गेट पास दिया गया। कहा यही गया कि गेट पास के बिना कोई भी मंडी में धान नहीं ले जा जा सकता। लेकिन अधिकारियों ने इसमें भी चोर दरवाजे छोड़ दिए। आम तौर पर एक एकड़ के खेत में धान की उपज 25 क्विंटल के आस-पास होती है। लेकिन गेट पास 35 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से जारी किए गए। जाहिर है, मंडी में अतिरिक्त धान बेचने का रास्ता निकाल लिया गया था।

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भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चडूनी का आरोप है कि इस पोर्टल में ऐसे खेत भी दर्ज कर दिए गए हैं, जहां धान की खेती हो ही नहीं सकती। उनके नाम पर गेट पास जारी हो रहे हैं और फसल कहीं और से पहुंच रही है।

यह सब चल ही रहा था कि ये खबरें भी आने लगीं कि मंडी में प्रवेश और बिक्री के लिए फर्जी गेट पास इस्तेमाल हो रहे हैं। जब ऐसे मामले सामने आए, तो सरकार ने गेट पास की जगह किसानों को क्यूआर कोड देना शुरू किया। लेकिन तब तक खरीद का सीजन लगभग खत्म हो चुका था। 

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देर से ही सही, सरकार को मजबूरन बाहरी राज्यों से धान लाने पर रोक लगानी पड़ी। क्या इससे समस्या खत्म हो गई? रोक धान लाने पर लगी थी, चावल लाने पर नहीं। हरियाणा के किसान नेताओं का आरोप है कि दूसरे राज्यों से बड़े पैमाने पर चावल खरीद कर लाया जा रहा है। कागजों में धान बताकर उसकी खरीद होती है और तुरंत ही उसका मंडी से उठान भी हो जाता है। 

धान की खरीद का घोटाला सबसे पहले करनाल में उजागर हुआ। पहले किसान संगठनों और फिर राजनीतिक दलों ने इसे लेकर प्रदर्शन किए। मजबूरन सरकार को इसकी जांच के लिए एसआईटी गठित करनी पड़ी। बाद में पता चला कि मामला सिर्फ करनाल का नहीं है। सभी जगह यही हालात हैं। किसान नेता चडूनी ने इसकी सीबीआई से जांच कराने की भी मांग की है।

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हरियाणा विधानसभा में विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा का आरोप है कि यह हजारों करोड़ रुपये का घोटाला है। वह कहते हैं, ‘‘राज्य में धान की जितनी उपज हुई है, उससे ज्यादा की बाजार में खरीद हो चुकी है, जबकि किसानों को एमएसपी भी नहीं मिल रही।‘‘

पंजाब में किसानों ने इस समस्या से अपने स्तर पर निपटने की जो कोशिशें की हैं, उनसे नए खतरे खड़े हो गए हैं। फाजिल्का में राजपुरा पाटली सीमा पर राजस्थान से आने वाले धान के ट्रकों को रोकने और वापस भेजने का काम खुद किसानों द्वारा अपने हाथ में लेने की खबरें आईं हैं। जवाब में राजस्थान के किसान भी मैदान में उतर गए। उन्होंने पंजाब से आने वाले कपास के ट्रकों को रोकना शुरू कर दिया। राजस्थान की मंडियों में कपास के दाम अच्छे मिलते हैं, इसलिए पंजाब के कपास किसान अपनी उपज वहीं बेचते हैं। धान खरीद के एक घोटाले ने दो राज्यों के किसानों के बीच तनाव पैदा कर दिया है। 

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धान खरीद घोटाले को लेकर फाजिल्का में एक एफआईआर दर्ज की गई है। खरीद स्थानीय किसानों से ही हो, इसके लिए पंजाब सरकार ने कुछ व्यवस्थाएं भी की हैं। लेकिन देर हो चुकी है। लक्ष्य पूरे हो चुके हैं। खरीद का सीजन भी खत्म हो रहा है और लगभग सभी जगह एफसीआई अपनी दुकान समेट रहा है।

इस घोटाले के असली दोषी कभी पकड़े जाएंगे या उन्हें सजा भी हो पाएगी, यह तो नहीं कहा जा सकता। लेकिन पंजाब और हरियाणा के किसानों को उस समय भारी नुकसान हुआ है, जब आपदा और कम हो चुकी उपज के बाद उन्हें मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है। 

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