वातावरण का अधिक वायु प्रदूषण सांस और दिल की बीमारियों के लिए एक बड़ा जोखिम शुरू से ही माना जाता रहा है लेकिन इसका कोरोना मरीजों के स्वास्थ्य से भी सीधा संबंध पाया गया है।
अमेरिकन जर्नल ऑफ रेस्पिेरेटरी एंड क्रिटीकल केयर मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध के हवाले से कहा गया है कि अस्पताल में भर्ती कोरोना के जो मरीज पहले अपने आसपास के वातावरण में अधिक प्रदूषक तत्वों की चपेट में आ चुके थे उनमें अन्य मरीजों की तुलना में आईसीयू में जाने या मौत होने का खतरा अधिक रहता है।
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इस शोध में कहा गया है कि पार्टिकुलेट तत्वों का स्तर अगर वर्तमान नियम आधारित मात्रा से भी कम है और इनके संपर्क में अगर कोई पहले आ चुका है तो उसमें मृत्यु होने का जोखिम अन्य के मुकाबले 11 प्रतिशत अधिक तथा आईसीयू में जाने का जोखिम 13 प्रतिशत ज्यादा देखा गया है।
माउंट सिनाई की अगुवाई में किए गए इस शोध में कहा गया है कि लंबे समय तक इन प्रदूषक तत्वों के संपर्क में आने से फेंफड़ों की प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावित होती है और इससे कार्डियोवॉस्कुलर डिसीज तथा मेटाबॉलिक सिंड्रोम जैसी बीमारियों का जोखिम अधिक रहता है। इन शोध में जुटाए गए आंकडे दर्शाते हैं कि वायु प्रदूषकों केअधिक समय तक संपर्क में रह चुके कोविड के मरीजों में मौत का खतरा अधिक हो सकता है। इस शोध को इचान स्कूल ऑफ मेडिसिन , माउंट सिनाई के सहायक प्रोफेसर एलिसन ली की अगुवाई में पूरा किया गया था। इस शोध में न्य्रूयार्क के सात अस्पतालों में भर्ती 6500 से अधिक मरीजों का विश्लेषण किया गया और उनके आवासों में नाइट्रोजन डाईआक्साइड तथा ब्लैक कार्बन जैसे प्रदूषक तत्वों को मापा गया था। इसके बाद मरीजों की मौत , उनके आईसीयू में भर्ती होने और जीवन रक्षक उपकरणों के इस्तेमाल संबंधी जानकारियों का विश्लेषण किया गया।
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