जौनपुर जिले के अलीखानपुर गांव के रहने वाले दिनेश को बोलेरो सवार कुछ लोगों ने बीते 13 सितंबर को घर से ही जबरिया उठा लिया। हैरान-परेशान परिवार वाले लाइन बाजार थाने पहुंचे और अपहरण का मुकदमा लिखने की मांग करने लगे। पुलिस वालों ने आपराधिक इतिहास की जानकारी खंगाली और बाद में यह कहते हुए परिवार वालों को लौटा दिया कि ‘एक-दो दिन इंतजार कर लो। नहीं लौटा, तो मुकदमा लिख देंगे।’
14 सितंबर को दिनेश सकुशल घर लौटा तो परिवार वालों ने राहत की सांस ली। युवक ने बताया कि उसे स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने संदेह होने पर उठाया था। दरअसल, एसटीएफ ने दिनेश को इसलिए उठा लिया था कि उसे बिना किसी वारंट और मजिस्ट्रेट की अनुमति के किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार है। इस अधिकार के दुरुपयोग को लेकर एसटीएफ की कार्यशैली पर सवाल रोज उठते हैं।
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फिर भी, यूपी सरकार ने बीते 13 सितंबर को एसटीएफ की ही तर्ज पर स्पेशल सिक्योरिटी फोर्स (एसएसएफ) के गठन का निर्णय लिया है। इसे बहुत सारी शक्तियां दी गई हैं। इस फोर्स को भी बिना वारंट और मजिस्ट्रेट की इजाजत के लोगों को गिरफ्तार करने का अधिकार होगा। बिना सरकार की इजाजत के यूपी एसएसएफ के अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कोर्ट भी संज्ञान नहीं लेगा।
सरकार का कहना है कि केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) की तर्ज पर इसे मेट्रो, ऐतिहासिक धरोहरों, एयरपोर्ट, धार्मिक स्थलों आदि की सुरक्षा में लगाया जाएगा। पुलिस के आला अधिकारियों की दलील है कि ‘एसएसएफ मेट्रो, ताजमहल, अयोध्या, काशी या फिर गोरखनाथ- जैसे स्थानों पर तैनात होगी। यहां संदिग्ध अवस्था में कोई मिले तो मजिस्ट्रेट या वारंट का इंतजार नहीं किया जा सकता।’
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एसटीएफ की तरह ही एसएसएफ को भी संदेह की नजर से देखने की वजह है। एसटीएफ की बीते कुछ वर्षों में हुई कार्रवाई को देखकर विरोधी इसे योगी आदित्यनाथ की ‘स्पेशल ठाकुर फोर्स’ कहकर पुकारने लगे हैं। कानपुर के माफिया विकास दूबे के कथित एनकाउंटर के बाद इन आरोपों को अधिक बल मिला है। गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन कांड के बाद चर्चा में आए डॉ. कफील खान को यूपी एसटीएफ ने जिस प्रकार मुंबई में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था, तब भी सवाल उठे थे। अब जब हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी के साथ दिए गए आदेश के बाद डॉ. कफील को जेल से रिहा किया गया, उसके बाद एसटीएफ के सियासी इस्तेमाल को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं।
वैसे, मुख्यमंत्री योगी अदित्यनाथ ने बीते 26 जून को ही एसएसएफ के गठन की घोषणा की थी। एसएसएफ पर एक साल में 1,747 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इसके लिए 1,913 पदों का सृजन किया जाएगा। जो खाका खींचा गया है, उसके मुताबिक इसमें 9,919 जवान होंगे। इसकी पांच बटालियन होंगी। लखनऊ में मुख्यालय होगा जो डीजीपी के अधीन होगा। एडीजी स्तर का अधिकारी यूपी एसएसएफ का मुखिया होगा। यूपी एसएसएफ को भी तलाशी लेने, गिरफ्तार करने, हिरासत में लेकर पूछताछ करने- जैसे अधिकार होंगे।
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सरकार की नजर में इस तरह का फोर्स बनाना सबसे जरूरी काम है। वह भी तब जब सरकारी सेवाओं में स्थायी नियुक्ति से पहले पांच साल संविदा पर रखने से लेकर कोरोना किट में करोड़ों के गोलमाल के आरोपों में फंसी यूपी सरकार जबर्जस्त आर्थिक तंगहाली में है। तब ही तो इसके औचित्य को लेकर सवाल उठ रहे हैं।
इसीलिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू आरोप लगाते हैं कि ‘केंद्र से लेकर प्रदेश तक की सरकारों ने जांच एजेंसियों को सियासी मोहरा बना दिया है। एसटीएफ का गठन संगठित अपराध पर अंकुश के लिए हुआ था। लेकिन ये अब डॉ. कफील खान जैसे चिकित्सक को गिरफ्तार करने के काम आ रही है। कुल मिलाकर, यह नया फोर्स भी आम लोगों के उत्पीड़न के लिए ही तैयार किया जा रहा है।’
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उन्होंने पूछा कि अदालत को भी कमतर साबित करके आम जनता के अधिकारों की सुरक्षा कैसे हो पाएगी? समाजवादी पार्टी ने भी कुछ इसी किस्म की आशंकाएं जताई हैं। पूर्व पुलिस अफसर भी कह रहे हैं कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह फोर्स अपने अधिकारों का दुरुपयोग न करे। यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह की सलाह है कि दुरुपयोग रोकने के लिए सरकार को उत्तरदायित्व निर्धारित करने चाहिए और वरिष्ठ अफसरों को भी एक मैकेनिज्म बनाना होगा।
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