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सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की नाम बदलो आयोग बनाने की मांग, कहा- हम अतीत में नहीं रह सकते, याचिका में उपद्रव की मंशा

सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणियों के साथ उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें एक नाम बदलो आयोग बनाने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना और इस मुद्दे को उठाना देश में उबाल लाना है और हम अतीत में नहीं रह सकते।

फोटो - सोशल मीडिया
फोटो - सोशल मीडिया 

सुप्रीम कोर्ट ने शहरों, कस्बों, सड़कों आदि के प्राचीन नामों की पहचान के लिए एक रिनेमिंग कमीशन यानी नाम बदलो आयोग बनाने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए सख्त लहजे में टिप्पणी की कि देश अतीत का कैदी बनकर नहीं रह सकता। कोर्ट ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष भारत सभी का है। देश को आगे ले जाने वाली बातों के बारे में सोचा जाना चाहिए। कोर्ट ने याचिका को उपदर्व की मंशा वाला करार दिया और कहा कि ऐसा करने से मुद्दे जिंदा रहेंगे और उबाल की स्थिति बनी रहेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, "आप इसे मुद्दे को जिंदा रखना चाहते हैं और देश को उबाल पर रखना चाहते हैं? आपकी उंगलियां एक विशेष समुदाय पर उठती हैं। आप एक विशेष संप्रदाय को निशाना बना रहे हैं। आप हासिल क्या करना चाहते हैं।"

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि "इस तरह की याचिकाओं से समाज को तोड़ने की कोशिश न करें, कृपया देश को ध्यान में रखें, किसी धर्म को नहीं।"

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इस याचिका को वकील अश्विनी उपाध्याय ने दाखिल किया था। याचिका में कहा गया था कि विदेशी आक्रांताओं ने देश पर हमला कर कई जगहों के नाम बदल दिए और उन्हें अपना नाम दे दिया। याचिका में आगे कहा गया था कि आज़ादी के इतने साल बाद भी सरकार उन जगहों के प्राचीन नाम फिर से रखने को लेकर गंभीर नहीं है। उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा कि धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व की हज़ारों जगहों के नाम मिटा दिए गए। उन्होंने मिसालें देते हुए कहा कि शक्ति पीठ के लिए प्रसिद्ध किरिटेश्वरी का नाम बदल कर मुर्शिदाबाद रखने, प्राचीन कर्णावती का नाम अहमदाबाद, हरिपुर को हाजीपुर, रामगढ़ को अलीगढ़ कर दिए गए।

याचिका में शहरों के अलावा कस्बों के नामों को बदले जाने के भी कई उदाहरण दिए थे। अश्विनी उपाध्याय ने इन सभी जगहों के प्राचीन नाम की बहाली को हिंदुओं के धार्मिक, सांस्कृतिक अधिकारों के अलावा सम्मान से जीने के मौलिक अधिकार के तहत भी ज़रूरी बताया था। याचिका में दिल्ली की कई सड़कों के नामों का भी जिक्र था, जिसमें अकबर रोड, लोदी रोड, हुमायूं रोड, चेम्सफोर्ड रोड, हेली रोड जैसे नामों को भी बदलने की ज़रूरत बताई गई थी।

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सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका में उठाई गई मांग और अन्य बातों पर हैरानी जताई। जस्टिस के एम जोसेफ और बी वी नागरत्ना की बेंच ने याचिका में लिखी गई बातों को काफी देर तक पढ़ने के बाद कहा, "आप सड़कों का नाम बदलने को अपना मौलिक अधिकार बता रहे हैं? आप चाहते हैं कि हम गृह मंत्रालय को निर्देश दें कि वह इस विषय के लिए आयोग का गठन करे?"

इस पर याचिका में खुद ही पैरवी कर रहे उपाध्याय ने कहा कि , "सिर्फ सड़कों का नाम बदलने की बात नहीं है। इससे ज़्यादा ज़रूरी है इस बात पर ध्यान देना कि हज़ारों जगहों की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को मिटाने का काम विदेशी हमलावरों ने किया।

इस तर्क पर जस्टिस जोसेफ ने कहा, "आपने अकबर रोड का नाम बदलने की भी मांग की है। इतिहास कहता है कि अकबर ने सबको साथ लाने की कोशिश की। इसके लिए उसने दीन ए इलाही जैसा अलग धर्म शुरु किया।" वहीं बेंच में शामिल जस्टिस नागरत्ना ने कहा, "हम पर हमले हुए, यह सच है। क्या आप समय को पीछे ले जाना चाहते हैं? इससे आप क्या हासिल करना चाहते हैं? क्या देश में समस्याओं की कमी है? उन्हें छोड़ कर गृह मंत्रालय अब नाम ढूंढना शुरू करे?"

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जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा, "हिंदुत्व एक धर्म नहीं, जीवन शैली है। इसमें कट्टरता की जगह नहीं है। बांटो और राज करो की नीति अंग्रेजों की थी। अब समाज को बांटने की कोशिश नहीं होनी चाहिए।"

इसके बाद अश्विनी उपाध्याय ने कोशिश की कि कोर्ट याचिका को सरकार के पास विचार के लिए भेज दे। लेकिन कोर्ट ने ऐसी इजाजत न देते हुए यह कहकर खारिज कर दिया कि, "आप सिर्फ मुद्दा गर्म रखना चाहते हैं। धर्मनिरपेक्ष संस्थाओं से ऐसा कुछ करवाना चाहते हैं जो धर्मनिरपेक्ष नहीं है। हमारा स्पष्ट मानना है कि हम अतीत के कैदी बन कर नहीं रह सकते। इस बात की अनुमति नहीं दी जा सकती कि अतीत आज के भाईचारे को खत्म करे।"

बेंच ने कहा कि इतिहास को इस तरह नहीं देखना चाहिए और न ही दिखाना चाहिए कि वर्तमान और भविष्य की पीढ़ी उससे डर जाए।

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