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सुप्रीम कोर्ट में 'बांके बिहारी मंदिर प्रबंधन अध्यादेश 2025' को दी गई चुनौती, CJI करेंगे सुनवाई बेंच का फैसला

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि श्री बांके बिहारी मंदिर एक निजी धार्मिक संस्थान है, जो स्वामी हरिदास के वंशजों और लगभग 360 सेवायतों द्वारा संचालित होता रहा है। 1939 में बनाई गई प्रबंधन योजना के तहत मंदिर का संचालन होता है, जिसका यह अध्यादेश उल्लंघन करता है।

सुप्रीम कोर्ट में 'बांके बिहारी मंदिर प्रबंधन अध्यादेश 2025' को दी गई चुनौती, CJI करेंगे सुनवाई बेंच का फैसला
सुप्रीम कोर्ट में 'बांके बिहारी मंदिर प्रबंधन अध्यादेश 2025' को दी गई चुनौती, CJI करेंगे सुनवाई बेंच का फैसला फोटोः सोशल मीडिया

उत्तर प्रदेश के मथुरा के वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। श्री बांके बिहारी मंदिर प्रबंधन समिति ने यूपी सरकार के अध्यादेश 'श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश, 2025' को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सीजेआई अब यह तय करेंगे कि इस मामले की सुनवाई कौन सी बेंच करेगी।

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जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने श्री बांके बिहारी मंदिर प्रबंधन समिति की याचिका पर सुनवाई करते हुए मामले को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष भेजने का निर्देश दिया है। जस्टिस सूर्यकांत की बेंच में बताया गया कि इससे जुड़ी एक और याचिका दूसरी बेंच में लंबित है। इसके चलते कोर्ट ने मामले को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष भेजने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीजेआई अब यह तय करेंगे कि इस मामले की सुनवाई कौन सी बेंच करेगी।

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दरअसल, श्री बांके बिहारी मंदिर के वर्तमान प्रबंधन ने उत्तर प्रदेश सरकार के 'श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश, 2025' की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इस अध्यादेश के तहत मंदिर का प्रशासनिक नियंत्रण एक नवगठित ट्रस्ट को सौंपा गया है, जिसे याचिकाकर्ताओं ने मंदिर के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करार दिया है। याचिका में कहा गया है कि यह मंदिर के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप के समान है। मंदिर राज्य की संपत्ति या ट्रस्ट नहीं है।

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याचिकाकर्ताओं का कहना है कि श्री बांके बिहारी मंदिर एक निजी धार्मिक संस्थान है, जो स्वामी हरिदास के वंशजों और लगभग 360 सेवायतों द्वारा संचालित होता रहा है। 1939 में बनाई गई प्रबंधन योजना के तहत मंदिर का संचालन होता है, जिसका यह अध्यादेश उल्लंघन करता है। इस प्रबंधन अधिग्रहण को इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि अध्यादेश जारी करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। राज्य द्वारा प्रबंधन और नियंत्रण अपने हाथ में लेने के लिए कोई कारण नहीं दिया गया।

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